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गांव की गंदी नालियों को देख मन कचोटा तो जर्मनी में बैठे बरेली के साफ्टवेयर इंजीनियर ने किया ये काम

उन्हें खुद भी अंदाजा नहीं हुआ था। सरस्वती शिशु मंदिर में पढ़ाई के दौरान आचार्य ने न जाने कब उनके मन में नेकदिली की पौध बो दी। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद देश छूट गया मगर स्कूल में मिले संस्कार जीवंत रहे।

By Ravi MishraEdited By: Published: Mon, 04 Jan 2021 08:46 AM (IST)Updated: Mon, 04 Jan 2021 08:46 AM (IST)
गांव की गंदी नालियों को देख मन कचोटा तो जर्मनी में बैठे बरेली के साफ्टवेयर इंजीनियर ने किया ये काम
गांव की गंदी नालियों को देख मन कचोटा तो जर्मनी में बैठे बरेली के साफ्टवेयर इंजीनियर ने किया ये काम

बरेली, जेएनएन। उन्हें खुद भी अंदाजा नहीं हुआ था। सरस्वती शिशु मंदिर में पढ़ाई के दौरान आचार्य ने न जाने कब उनके मन में नेकदिली की पौध बो दी। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद देश छूट गया, मगर स्कूल में मिले संस्कार जीवंत रहे। साफ्टवेयर इंजीनियर अनंत विजय कोसों दूर बैठकर अपने गांव की फिक्र किया करते। गांव की मिट्टी की खुशबू उन्हें हर साल खींच लाती है। यहां आते हैं तो श्रमदान करते हैं, अपने खर्च से गांव में विकास कार्य कराते हैं।

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300 परिवारों वाले नवाबगंज के बहिर जागीर गांव के प्राइमरी स्कूल से पढ़ाई की शुरूआत करने वाले अनंत बाद में नवाबगंज के सरस्वती शिशु मंदिर में पढ़ने लगे थे। फोन पर बात हुई तो कहने लगे, आचार्य एक परोपकार करके प्रतिदिन डायरी में लिखने के लिए कहते थे। वही छोटी सी सीख आज अपने गांव के काम आ रही।

वर्ष 2006 में छोड़ना पड़ा था देश

अनंत विजय की सफलता की कहानी 2006 में अमेरिका में नामचीन कंपनी में बतौर साफ्टवेयर इंजीनियर शुरू हुई। 2013 में उन्होंने जर्मनी के म्यूखिन शहर की अमेरिकन एक्सप्रेस की सहयोगी कंपनी पेबैक में बतौर साफ्टवेयर इंजीनियर काम करना शुरू किया। इस दौरान वह अपने पैतृक गांव आते-जाते रहते।

जब अमेरिका गए थे, तभी से गांव वालों के संपर्क में रहते। छुट्टी पर आते तो गलियों में कभी बिजली के बल्ब तो कभी नल लगवा देते। यह सिलसिला वर्ष 2014 में और तेज हुआ। उस वक्त वह छुट्टी लेकर आए थे। मुख्य सड़क टूटी थी, जिसे बनवाने के लिए ग्रामीण परेशान थे। अनंत उनके साथ आमरण अनशन पर बैठ गए। आखिरकार प्रशासन को बात माननी पड़ी और एक महीने के अंदर सड़क बनने लगी।

उनसे फोन पर बात हुई तो बताने लगे कि छुट्टी के दिनों में जब गांव जाता तो वहां गंदी नालियां मन को कचोटती थीं। पता था कि यह काम सिर्फ सरकारी व्यवस्था से पूरा नहीं हो सकता। सभी को साथ आना होगा। पहल खुद की। नालियां साफ करने निकल पड़ा। विदेश से लौटकर आया इंजीनियर ऐसा कर रहा है, यह देखकर ग्रामीण साथ आने लगे। तभी से आज तक, गांव में परंपरा हो गई कि हर शख्स अपने दरवाजे के आसपास तक सफाई खुद करेगा। मंशा है कि मेरा गांव आदर्श बने।

गांव में ये काम हुए

गांव तक सोलर लाइट्स लगी हैं

गांव में फ्री वाई-फाई सुविधा है

एनजीओ के जरिए देहज प्रथा, बाल विवाह, जाति भेदभाव के लिए जागरूकता अभियान चल रहे।

डूबने के खतरे से दर्जनों गांवों को बचाया

स्ट्रीट लाइट, शौचालय बनवाने के लिए उन्होंने अपने खर्च की चिंता नहीं की। बरेली-पीलीभीत की सीमा पर बहने वाली देवहा नदी से क्योलड़िया के दर्जनों गांवों में बाढ़ के खतरे की रोकथाम के लिए कोई मदद नहीं मिल रही थी। यह बात ग्रामीणों ने फोन पर बताई तो जर्मनी में बैठकर वह संबंधित अफसरों से फोन पर ई मेल के जरिये बात करते रहे। शासन तक पैरवी की। 1.87 करोड का फंड स्वीकृत हुआ और 400 मीटर में मिट्टी से भरी बोरियों की दीवार बनाकर उन्होंने क्योलड़िया के गांवों से बाढ़ का खतरा दूर हो सका।

उनकी एनजीओ ने पीपीई किट खादी के मास्क तैयार किए

जर्मनी में रहते हुए उन्होंने अपने पैतृक गांव में ही एक एनजीओ स्थापित की। महिलाओं को रोजगार दिलाया। कोविड संक्रमण फैलने पर एनजीओ के जरिए पीपीई किट और खादी के मास्क बनवाए गए। बाद में इन्हें जरूरतमंदों को वितरित करा दिया। 


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