जानिए ! यहां भगवान शिव क्यों कहलाए त्रिवटीनाथ Bareilly News
वर्षो से श्री त्रिवटी नाथ मंदिर हजारों लोगों की आस्था का केंद्र है। समय-समय पर यहां धार्मिक आयोजन होते हैं तो शाम ढलते ही आस्था की बयार बहने लगती है।
जेएनएन, बरेली : वर्षो से श्री त्रिवटी नाथ मंदिर हजारों लोगों की आस्था का केंद्र है। समय-समय पर यहां धार्मिक आयोजन होते हैं तो शाम ढलते ही आस्था की बयार बहने लगती है। मंदिर खुलने के तय समय से पहले ही श्रद्धालुओं के आने का सिलसिला शुरू हो जाता है। सुबह-शाम शंख और घंटों की ध्वनि के बीच वहां पहुंचने वाले श्रद्धालुओं को आनंद प्राप्त होता है। दूरदराज से यहां आकर श्रद्धालु मनौती मांगते हैं और उनकी हर इच्छा पूरी होती है। मंदिर में हर त्योहार पर विशेष आयोजन होते हैं।
चरवाहे को भोले शंकर ने दिया था सपना
श्री त्रिवटी नाथ मंदिर का इतिहास भी काफी पुराना है। मंदिर जिस स्थान पर है वहां पर घना जंगल हुआ करता था। दूर-दूर तक इंसान नजर नहीं आते थे, वन्य प्राणियों का ही यहां निवास हुआ करता था। इस जगह के आसपास बसे गांवों के लोग यहां अपने पशुओं को चराने आते थे। वर्ष 1474 में एक चरवाहा दोपहर के वक्त वहां आराम करते हुए सो गया, जिसको भगवान भोले शंकर ने सपना दिया कि यहां तीन वट वृक्ष के बीच में उनका शिवलिंग है। चरवाहा उठा तो उसने वहां पर खोदाई कराई जहां शिवलिंग दिखा। इसके बाद आसपास के लोग वहां पर जलाभिषेक करने लगे। तीन वट वृक्षों के बीच शिवलिंग निकलने से उसको त्रिवटी कहने लगे। इसके अलावा वहां पर बड़ा टीला था। उस स्थान को पांचाल प्रदेश कहा जाता था तो टीले की वजह से उसको टीबरी कहने लगे।
150 साल पहले बाबा ने शुरू की थी सेवा
करीब डेढ़ सौ साल पहले बाबा जानकारी दास ने मंदिर की सेवा शुरू की थी। वह वहां टीनशेड डालकर रहते थे और सुबह-शाम वहां पर हवन-पूजन होता था। इसके बाद ही वहां मंदिर की स्थापना शुरू हुई। इसके बाद श्री टीबरी नाथ मंदिर कमेटी ट्रस्ट ने इसके निर्माण का जिम्मा लिया और मंदिर को बेहतर तरीके से बनवाया। मौजूदा वक्त में भी ट्रस्ट की ओर से मंदिर को और बेहतर विकसित करने का प्रयास जारी है।
अन्नकूट महोत्सव की चल रही तैयारी
मंदिर में शिवरात्रि का आयोजन मुख्य रूप से होता है। इसके अलावा सभी त्योहारों पर यहां धार्मिक आयोजन होते हैं। इस वक्त दिवाली के एक दिन बाद होने वाले आयोजन अन्नकूट महोत्सव की तैयारी चल रही है। इस महोत्सव में कथा होती है तो बिहारी जी का भोग लगता है।
तीन वट वृक्षों के बीच से प्रकटे
नाथ नगरी के नाम से देश-दुनिया में विख्यात बरेली की सांस्कृतिक विरासत काफी समृद्ध रही है। द्वापर युग में पांचाल साम्राज्य की अनमोल थाती को अपने आंचल में समेटे यह नगरी प्राचीन काल से हर धर्म और मत के अनुयायियों की आस्था का केंद्र रही है। यहां नाथ मंदिरों की श्रृंखला है तो जैन तीर्थ भी हैं। सूफी परंपरा का केंद्र खानकाह नियाजिया है तो आला हजरत की दरगाह सुन्नी मुसलमानों का मरकज (केंद्र) है। ईसाइयों की पुलिया व मैथोडिस्ट चर्च आदि सर्व धर्म समभाव का संदेश दे रहे हैं। इतने वैविध्य का प्रतिनिधित्व करते इस शहर की ऐसी विरासतों से हम आपको रू-ब-रू कराएंगे।
मंदिर खुलने का समय : सुबह पांच से दोपहर 12 बजे तक, शाम पांच बजे से रात्रि साढ़े नौ बजे तक।
1500 श्रद्धालु आते हैं रोजाना
मंदिर में करीब 1500 श्रद्धालु रोजाना आते हैं। शिवलिंग के दर्शन को वहां विशेष आयोजनों पर भक्तों की लाइन लगती है। -मनोज वर्मा
मंदिर में रोजाना 1500 के करीब श्रद्धालु आते हैं। उनकी सुविधा अनुसार मंदिर के सभी द्वार खोल दिए जाते हैं। निर्धारित समय में ही यहां दर्शन किए जाते हैं।
- पं. मनोज मिश्र, महंत त्रिवटी नाथ मंदिर।
मंदिर में समय-समय पर धार्मिक आयोजन कराए जाते हैं। साफ-सफाई का विशेष ख्याल रहता है, पॉलीथिन में प्रसाद लाना यहां प्रतिबंध कर दिया गया है।
- प्रताप चंद्र सेठ, मंत्री श्री टीबरी नाथ मंदिर कमेटी।