जानिए ! आइवीआरआइ क्यों करवाएगा देश भर के हाथियों का ट्रंक वाश Bareilly News
क्या एलीफेंट एंडोथेलिओट्रोपिक हर्पीस वायरस (ईईएचवी) का प्रकोप दक्षिण भारत में ही है? ऐसा तो नहीं कि उत्तर भारत में भी इस जानलेवा वायरस से हाथी संक्रमित हो रहे हो?
दीपेंद्र प्रताप सिंह, बरेली : क्या एलीफेंट एंडोथेलिओट्रोपिक हर्पीस वायरस (ईईएचवी) का प्रकोप दक्षिण भारत में ही है? ऐसा तो नहीं कि उत्तर भारत में भी इस जानलेवा वायरस से हाथी संक्रमित हो रहे हो? ऐसे कई सवालों का जवाब भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आइवीआरआइ) खोजेगा। चूंकि, ईईएचवी का संक्रमण सूंड़ के जरिये हाथियों पर हमला करता है। ऐसे में आइवीआरआइ देश भर में ट्रंक वाश (हाथियों की सूंड़) धुलवाने की योजना बना रहा।
केंद्र से अनुमति लेगा आइवीआरआइ
आइवीआरआइ केंद्रीय वन विभाग से अनुमति लेगा। आइवीआरआइ निदेशक ने हाथियों के बीच इस गंभीर समस्या का व्यापक स्तर पर पता लगाने के लिए सर्वे की जरूरत बताई है, क्योंकि ओडिशा के भुवनेश्वर में नंदनकानन चिडिय़ाघर में पिछले एक महीने में चार हाथी (अवयस्क) की मौत ईईएचवी से हुई है। सर्वे के दौरान खोजा जाएगा कि कहीं दूसरी तरह का ईईएचवी भी तो भारत में नहीं है। खासकर नेपाल से सटे उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के जिले, आसोम, दक्षिण भारत के ऐसे हिस्से जहां हाथी ज्यादा हैं।
सूंड़ से निकले पानी की होगी जांच
दरअसल, हाथी के शरीर में किसी भी वायरस के पहुंचने का सबसे आसान जरिया सूंड़ है। आइवीआरआइ के सेंटर ऑफ वाइल्डलाइफ में मामले पर जांच और प्लानिंग कर रहे वैज्ञानिक के मुताबिक, हाथी सूंड़ के जरिये ही सांस लेता और पानी पीता है। इससे ईईएच वायरस सूंड़ के जरिये ही रक्त वाहिनियों में जाता है। इसलिए ईईएचवी का पता लगाने के लिए ट्रंक वाश यानी हाथी की सूंड़ के अंदर से गुजरे पानी की जांच की जाएगी।
सभी जंगल और चिडिय़ाघरों में रैंडम सर्वे
ईईएचवी के वाहक महज हाथी हैं। वहीं, यह शिकार भी केवल हाथियों को ही बनाता है। दक्षिण भारत ही नहीं देश के अन्य हिस्सों, यहां तक कि उत्तर भारत के सभी इलाकों में भी हाथियों का ट्रंक वाश सैंपल लिया जाएगा। इसमें देश के सभी प्रमुख जंगल और चिडिय़ाघर भी शामिल होंगे। वन विभाग ने अनुमति मिलने के बाद ही इस पर काम शुरू कर दिया जाएगा।
रेड एरिया में बताए जाएंगे लक्षण और बचाव
आइवीआरआइ के वैज्ञानिक बताते हैं कि वायरस से प्रभावित वयस्क हाथी के शरीर पर लाल चकत्ते हो जाते हैं। अवयस्क हाथी या कम रोग प्रतिरोधक क्षमता वाले (उम्रदराज हाथी) की इन वायरस वाहक वयस्क हाथियों के संपर्क में आने से आने से मौत हो जाती है। रेड एरिया मार्क करने के साथ पालकों या वन रेंज स्तर पर लक्षण बताते हुए जागरूक किया जाएगा। वहीं, प्रभावित हाथियों को झुंड से अलग (खासकर पानी पीते वक्त) रखने को कहा जाएगा।
देश भर में ईईएचवी की स्थिति जानने के लिए सर्वे का प्रयास है। इसके लिए पत्राचार हो रहा। अनुमति मिलते ही बड़े स्तर पर सर्वे करवाया जाएगा। जिससे हाथियों को बचाया जा सके।
-डॉ. अभिजीत पावड़े, प्रधान वैज्ञानिक और प्रभारी सेंटर ऑफ वाइल्डलाइफ