Jagran Column : शहरनामा : पत्नी से संबंध तोड़ने पर राजयोग Bareilly News
इन दिनों एक ज्योतिष की शरण में हैं। उन्हें बताया गया है कि पत्नी से दूर हो जाएं तो राजयोग मिल जाएगा। शर्त यह भी है कि दोनों बच्चों को अपने पास रखना होगा।
वसीम अख्तर : वह लंबे वक्त से विधानसभा की दहलीज लांघने की कोशिश में लगे हैं। मेहनती होने का साथ मधुर भाषी भी हैं। पहले कांग्रेस और अब भाजपा में रहकर प्रयास कर रहे हैं। सफलता उनसे फिर भी छिटकी हुई है। महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए वह इन दिनों एक ज्योतिष की शरण में हैं। उन्हें बताया गया है कि पत्नी से दूर हो जाएं तो राजयोग मिल जाएगा। शर्त यह भी है कि दोनों बच्चों को अपने पास रखना होगा। इसलिए क्योंकि उनमें से एक राजयोग का माध्यम बनेगा। पत्नी से उनके रिश्ते पहले से ही खराब चल रहे हैं। लिहाजा ज्योतिष की बात मान उन्होंने उस पर अमल शुरू कर दिया। तलाक पर सहमत हो गए। कागजी औपचारिकता पूरी कर आए हैं। अब बस फैसला आना बाकी है। राजनीतिक गलियारों में हाई प्रोफाइल तलाक के साथ इस बात का भी चर्चा हो रहा है कि ज्योतिष ने उन्हें राजयोग का रास्ता बता दिया।
ओला कही जाने लगी लग्जरी कार
वह समाजवादी पार्टी के नेता हैं। पहले उन्हें पार्टी छोड़कर चले गए एक नेता का खास कहा जाता था। इन दिनों मजबूत धड़ों में किसी का भी बतौर खास उनकी गिनती नहीं हैं। ऐसे में वह सबसे मिलते-जुलते हैं। उन्होंने अपनी सक्रियता को बढ़ा दिया है। एक पूर्व पदाधिकारी के यहां तो उनका स्थायी ठिकाना है। वह उन्हें अपनी स्कार्पियो से लेकर चलते हैं। कभी दफ्तर आते हैं तो कभी किसी दूसरी जगह ले जाते हैं। पार्टी में कुछ चुहलबाज कहे जाने वाले लोगों ने उनकी लग्जरी कार को ओला का नाम दे दिया है। यही लोग दफ्तर के बाहर उनकी गाड़ी नजर नहीं आने पर कहते सुने जा रहे हैं, अभी ओला नहीं आई। इस बात का चर्चा उन तक भी पहुंच गया है। जवाब में वह बस इतना ही कहते हैं, पीठ पीछे किसने किसकी जुबान रोकी है। हिम्मत है तो कोई सामने आकर कहे।
दूसरों को पीते देखते रहे
बड़े हेल्थ अफसर के खास कर्मचारी के शाहजहांपुर मार्ग स्थित रिजॉर्ट पर महफिल सजी। मौका था बेटी की शादी की सालगिरह का। बिजनौर में तैनात अफसर भी आए थे, जिनकी वजह से वह पहचाने जाते हैं। समाजवादी पार्टी के नेता भी इस महफिल की रौनक बने थे। खातिरदारी का माकूल इंतजाम था। बीच-बीच में हंसी-ठिठौली चल रही थी। सभी के चेहरे खिले थे लेकिन एक नेता मुरझाए से दिख रहे थे। गिलास हाथ में लेकर खाने वाले उनसे कह भी रहे थे कि आप भी लें। मेजबान भी उनसे बार-बार खाने की जिद कर रहे थे। फिर भी वह खुद को रोके हुए थे। जब उन्होंने अपने पिता और भाई को भी खानपान का खुलकर लुत्फ लेते देखा तो संयम जवाब दे गया, मेजबान पर यह कहते हुए गुस्सा हो गए कि पार्टी के लिए एकादशी का दिन चुना। तब उनकी इस बेबसी पर सबकी बेसाख्ता हंसी निकल गई।
लपक लिए गए मौलाना
जब तक वह छोटे साहब की रेंज में थे, खुलकर बैटिंग कर रहे थे। नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ भारी भीड़ जुटाई और जुबां के रास्ते दिल का गुबार जमकर निकाला। बिन मौसम बादलों की तरह जितना बरस सकते थे, बरसे। गनीमत रही कि कोई बवाल नहीं हुआ। आसपास के जिले सुलगते रहे। बरेली में विरोध शांतिपूर्ण गुजर गया। शायद यही सोचकर छोटे साहब उन पर मेहरबान रहे। जब लखनऊ से लेकर नोएडा तक मुकदमों की बारिश हो रही थी, उन पर एक भी केस नहीं लदा। जैसे ही आल इंडिया इत्तेहाद-ए-मिल्लत काउंसिल के अध्यक्ष मौलाना तौकीर रजा खां डीआइजी की रेंज से निकलकर एडीजी की जद में आए और संभल जाकर महिलाओं के धरने पर जोशीले अंदाज में तकरीर की, केस दर्ज हो गया। अब भले ही सफाई दे रहे हैं कि मुकदमे जैसा कुछ नहीं कहा लेकिन समझने वाले समझ रहे हैं, इस दर्द की वजह क्या है।