हमने सुना है:: नजारत विभाग के बाबू ढूंढ रहे हिसाब, कहां मरम्मत में खर्च हुए 25 लाख Bareilly News
कलेक्ट्रेट के नजारत विभाग में खलबली मची हुई है। पिछले दिनों जब डीएम नितीश कुमार ने वहां का निरीक्षण किा तो कक्षा संख्या सात के पीछे वाले जर्जर कमरों पर निगाह पड़ गई।
जेएनएन, शांत शुक्ला। कलेक्ट्रेट के नजारत विभाग में खलबली मची हुई है। पिछले दिनों जब डीएम नितीश कुमार ने वहां का निरीक्षण किा तो कक्षा संख्या सात के पीछे वाले जर्जर कमरों पर निगाह पड़ गई। गंदगी जमा देख डीएम ने नजारत के बाबुओं से सवाल किया तो जवाब आया कि कमरों में कबाड़ भरी हुई है। इस पर डीएम ने कहा कि इसे नीलाम करा दो, इसके साथ ही पिछले एक साल का हिसाब भी लेकर आना कि मेंटीनेंस के लिए कहां कितना खर्च किया गया है। अब नजारत विभाग में खलबली मची हुई है। बताया जा रहा है कि मरम्मत और सफाई के नाम पर करीब 25 लाख रुपये खर्च किए जा चुके हैं। कहां खर्च हुए, यह पता नहीं चल रहा। अब नजारत वाले बड़ी मुश्किल में हैं। कागजों पर खर्च दिखा नहीं सकते क्योंकि हकीकत डीएम के सामने आ चुकी है। 25 लाख के हिसाब की बड़ी टेंशन है।
रिपोर्ट सच बोलेगी
निर्वाचन कार्यालय में आजकल आडिट रिपोर्ट को लेकर चर्चा जोरों पर हैं। दरअसल पिछले महीने निर्वाचन कार्यालय में 2012 और 2014 में हुए चुनाव खर्च को लेकर विशेष आडिट हुआ था। जिसमें कई तरह की गड़बडिय़ां मालूम चली थीं। पता चला कि चुनाव के नाम पर खूब खर्च किया गया मगर, उसे लिखा पढ़ी में शामिल नहीं किया। सवाल उठे कि आखिर ऐसे कौन से खास खर्चे थे जोकि लिखा पढ़ी में नहीं लाए जा सकते थे। खैर, अब रिपोर्ट आने वाली है। जाहिर है कि चुनावी मौसम में मलाई खाने वाले बाबू इसमें फंसेंगे। यह तो रही हेराफेरी करने वालों की बात। वहीं दूसरी ओर कुछ बाबूओं को इस कार्रवाई का बेसब्री से इंतजार है। क्योंकि पुराने वाले फंसे तभी नए वालों को उस मलाईदार कुर्सी पर बैठने का मौका मिल जाएगा। ठीक भी है, कार्रवाई का डर तो बाद में सताएगा, पहले वहां बैठने का मौका तो मिले।
साहब की खींचतान
खाद्य विभाग में आज कल मंडल और जिले के साहब के बीच छत्तीस का आंकड़ा है। जिले के साहब को मंडल के साहब से इस बात की नाराजगी है कि वह विभाग की खबरें खबरनवीस को लीक कर देते हैैं। जब उनका इससे जी नहीं भरता है तो वह टीम लेकर खुद ही छापा डालने के लिए चले जाते हैं। यहां यह बात गौर करने वाली है कि कभी-कभार वह छापेमारी के लिए जाते हैं तो मिलावटखोर पकड़ लिए जाते हैं, जबकि जिले वाले साहब सैंपल भरकर ही लौट आते हैं। मंडल वाले साहब को इसी बहाने मौका मिलता है और उन्हें कस देते हैं। दोनों के बीच खींचतान बढ़ती चली गई तो काम ठप हो गया। अब कार्रवाई नहीं होती, शब्दों के तीर एक दूसरे के लिए चलते हैं। यह सब उनकी अपनी परेशानी है मगर जनता का नुकसान क्यों कर रहे। तीन महीने से कार्रवाई बंद पड़ी है।
कंबल सर्दी के बाद
सरकारी सिस्टम मौसम के हिसाब से थोड़े ही देखता है, वह तो कागजों पर चलता है। फिर चाहें शीतलहर में गरीब ठिठुरते ही क्यों न रहें। वाकया पिछले सप्ताह का का है। भीषण ठंड में गरीब कंबल के लिए गुहार लगा रहे थे, दूसरी ओर अधिकारी सूची बनाने में डटे थे। तहसीलों से डिमांड पर डिमांड मांगी जा रही थी। कहा जा रहा था कि फाइलें पूरी हो जाने दो, तब वितरण शुरू कराएंगे। यह सब करते-करते अब जनवरी का आखिरी सप्ताह आ चुका है। एक चरण में ही कंबल बंटे, बाकी के बांटे जाने अभी बाकी हैं। बड़ी संख्या में गरीब जरूरतमंद भले ही सरकारी मदद न पा सके हों मगर कंबल के नाम पर शासन से आए तीस लाख रुपये ठिकाने लग गए। अब सवाल उठ रहा कि इतनी रकम किसके काम आई। जरूरतमंदों को भीषण ठंड से बचाने के लिए या कागजों का पेट भरने के लिए।