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Jagran Column : मुसाफिर हूं यारों : बड़े बैरी बन जाएंगे कार्ड Bareilly news

रोडवेज बसों में पेटीएम और डेबिट क्रेडिट कार्ड से टिकट के पैसे दिए जा सकेंगे। टिकट के पीछे अंकों का जो हुनर उन्होंने सीखा था उसके अस्तित्व पर संकट खड़ा हो जाएगा।

By Ravi MishraEdited By: Published: Tue, 11 Feb 2020 09:02 AM (IST)Updated: Tue, 11 Feb 2020 05:25 PM (IST)
Jagran Column : मुसाफिर हूं यारों : बड़े बैरी बन जाएंगे कार्ड Bareilly news
Jagran Column : मुसाफिर हूं यारों : बड़े बैरी बन जाएंगे कार्ड Bareilly news

अभिषेक पांडेय, बरेली : रोडवेज बसों में पेटीएम और डेबिट, क्रेडिट कार्ड से टिकट के पैसे दिए जा सकेंगे। परिवहन निगम ने अभी योजना ही बनाई कि परिचालकों के चेहरे पर फिक्र के भाव तैरने लगे। टिकट के पीछे अंकों का जो हुनर उन्होंने सीखा था, उसके अस्तित्व पर संकट खड़ा हो जाएगा। यही तो वह हुनर है जिसके जरिये दिनभर के खर्चे का इंतजाम हो जाता। यात्री से नोट लो, बचे हुए पैसे टिकट के पीछे लिखकर दुआ करो कि वह भूल जाए। कई बार दुआ कुबूल हो जाती है तो हुनर पर चार चांद लग जाते हैं। कभी-कभार बेपसंद यात्री बकाया रुपये मांग बैठें तब भी हिम्मत न हारो। यह कहकर चार-छह रुपये दबा लो कि- क्या करें, छुट्टा नहीं है। अब बस में कार्ड शुरू होंगे तो भला इस हुनर का उपयोग कैसे हो सकेगा। 21 रुपये का टिकट है तो 21 का ही पेमेंट होगा। नौ रुपये भी नहीं बचेंगे।

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तार चोर तलाशें या किसी अपने को 

चोरी कभी खुद का वजूद नहीं रखती। वो तब होती है जब आपने लापरवाही की हो या तो तब, जब कोई अपना करीबी दगा दे जाए। इस वाक्य को दिमाग में रखते हुए आगे बढ़ जाइए, एक वाकये की ओर चलते जाइए। बरेली-चंदौसी रेलखंड को इलेक्टिक किए जाने का काम चल रहा है। आगे-आगे बिजली के तार खींचने वाली टीम चल रही, पीछे-पीछे चोर। शायद ही कोई महीना ऐसा गुजरता हो जब तार न काटे जाते हों। खासी ऊंचाई पर खींचे गए तारों तक चोर कैसे पहुंच रहे, रेलवे सुरक्षा बल के लिए यह सिरदर्द बना हुआ है।

कई बार दिमाग लगाया तब भी माजरा समझ नहीं आया। एक कोने में बस इतना कौंधा कि जैसे तार लगाने के लिए चढ़ा जाता है, वैसे ही काटने के लिए भी। वे इसी को आधार बनाए बैठे हैं। कह रहे, लगाने वाला हुनर तार उतरवाने के काम में तो नहीं आ रहा।

मुनाफा पड़ौसी का, मुश्किल इनकी 

सेटेलाइट बस स्टैंड के सामने का नजारा तो देखा ही होगा। बसें 10-15 खड़ी होती हैं और टेंपो 30-40। सभी को सवारियां बैठाने की पूरी छूट। बसों के दरवाजे पर टेंपो टिक जाएं, यात्री को उतरने की जगह तक न दें तब भी कोई बात नहीं। उन्हें टोके ओर रोके भला कौन। यहां तक तो परेशानी आमजन की है। मुश्किल में परिवहन निगम वाले भी हैं। क्योंकि, टेंपो बसों के रास्ते में भी खड़े हो जाएं तो हटने को राजी नहीं। लाउडस्पीकर से टेंपो हटने की उद्घोषणा करने वाले भी अब थक चुके। कहते हैं कि टेंपो वालों ने ऐसा सिरदर्द दिया है कि दूर नहीं होता। उनसे मुनाफा तो सामने पिकेट वालों का होता है, मुश्किल हमारे लिए खड़ी होती है। महीने वाली पर्ची का खेल है, इसीलिए चंद कदम दूरी पर बाइकों का चालान काटने वाले इस टेंपो वाले से खूब वादा निभाते हैं। वो इधर नहीं आते।

उड़ तो जाने दो

बड़ी तमन्ना थी कि हम भी हवा में उड़ें। मगर, कभी रकम के अड़ंगे ने तो कभी एविशन कंपनी के रवैये ने तरसाया। सालभर उस इमारत को देखकर गुजारा, जहां से एलान किया गया था कि उद्घाटन हो गया है जल्द उड़ान शुरू होगी। खैर, जैसे-तैसे सपने देखकर वो वक्त गुजार दिया। अब तय हुआ कि 20 अप्रैल को सपना पूरा हो जाएगा। बात में दम इसलिए लग रही क्योंकि विमान खरीदने का अनुबंध हो चुका है। यहां तक तो ठीक था मगर मानवीय दिमाग है, इतर जरूर चलेगा। एलान के साथ ही कुछ लोगों ने जोड़-घटना लगाना शुरू कर दिया। बरेली से लखनऊ का किराया 16 सौ रुपये होगा, जबकि दिल्ली से लखनऊ का किराया तो 15 सौ रुपये ही है। अब उन्हें कौन समझाए कि रूट और न्यूनतम किराया भी कोई चीज होती है। वैसे भी, पहले विमान उड़ तो जाने दो। गणित उसी में बैठकर लगा लेना।


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