Jagran Column : कैंपसनामा : पेंटिंग से लाॅकडाउन का संदेश Bareilly News
कोरोना वायरस के प्रकोप से पूरे देश में लॉकडाउन है। फिर भी कुछ लोग इसकी गंभीरता नहीं समझ रहे।
अखिल सक्सेना । कोरोना वायरस के प्रकोप से पूरे देश में लॉकडाउन है। फिर भी कुछ लोग इसकी गंभीरता नहीं समझ रहे। ऐसे में बरेली कॉलेज में पढ़ने वाली बीए तृतीय वर्ष की छात्र अंशिका अग्रवाल ने पेंटिंग के जरिए संदेश देने का तरीका निकाला। महज कुछ घंटों में ही बनाई गई इस पेंटिंग में कोरोना वायरस की चपेट में हम कैसे आ गए.. इसे बेहतर रंगों के माध्यम से दर्शाया गया है। वहीं, ‘पेंटिंग में भारत के नक्शे में मास्क पहने लड़का-लड़की, उसके चारो ओर कोरोना वायरस और उससे लोगों का दर्द भी दिखाया है, ताकि समझा जा सके कि यह कितना खतरनाक है। अंशिका कहती हैं, ‘पेंटिंग बनाने का मकसद सिर्फ यही है। शायद कुछ लोग समझ पाएं कि बचने को लॉकडाउन ही एक मात्र जरिया है। इसलिए घर में रहें और सुरक्षित रहें। अब यह पेंटिंग सोशल मीडिया पर भी धीरे-धीरे वायरल हो रही है। कमेंट भी आ रहे हैं।
माननीय को रात में हुई दूध की टेंशन
कई बार सीधे तौर पर मांगने में संकोच लगे तो आदमी बात घुमाकर कहने की कोशिश करता है। बीते दिनों एक ऐसा ही किस्सा एक सरकारी विभाग के अफसर ने खूब मजे लेकर सुनाया। विभाग के ‘माननीय’ को बरेली मंडल आना था। लिहाजा, वह समय से पहुंच गए। लेकिन देर रात विभाग के एक अधिकारी के पास माननीय के साथ चलने वाले ‘सहयोगी’ का फोन आया। ‘बोले, साहब को दूध की जरूरत है’। यह सुन कर अधिकारी भी सकते में आ गए। उनकी हिम्मत नहीं थी कि वह कुछ पूछ पाएं। आनन-फानन में उन्होंने जिले के एक प्रशिक्षण संस्थान के प्राचार्य को व्यवस्था करने के निर्देश दिए। प्राचार्य भी दूध की व्यवस्था करके पहुंचे तो पता चला कि माननीय को दूध की जरूरत ही नहीं थी, बल्कि सहयोगी को ‘शुल्क’ चाहिए था। बेचारे जैसे-तैसे कुछ व्यवस्था करके वहां से निकल पाए। यह किस्सा सुनकर आइटीआइ कार्यालय में खूब ठहाके लगे।
नो टेंशन, अॉनलाइन कर रहे पढाई
टेक्नोलॉजी के इस युग में अब छात्र किताबों से आगे निकलकर ऑनलाइन पढ़ाई का कॉन्सेप्ट ज्यादा पसंद कर रहे हैं। लॉकडाउन के चलते हुई छुट्टियों में छात्र इसका पूरा फायदा उठा रहे हैं। बरेली कॉलेज में बीए के छात्र पीयूष हों या छात्र वाणी। कोर्स की पढ़ाई पूरी कर चुके ये सभी छात्र और छात्रएं इन दिनों यू-ट्यूब और ई-कंटेंट से आंसर लिखने के नए तरीके सीख रहे हैं। वह कहते हैं कि अच्छे नंबर लाने के लिए रटने की जगह समझना जरूरी है। ऑनलाइन कंटेंट से काफी कुछ नया सीखने और जानने को मिलता है। साथ ही छुट्टी की वजह से पढ़ाई का नुकसान भी नहीं होता। वाणी कहती हैं कि अब 21 दिन का लॉकडाउन होने की वजह से एग्जाम की तैयारी अच्छे से हो सकेगी। पढ़ाई की टेंशन भी धीरे धीरे दूर होती जा रही है। समय बर्बाद करने के बजाय ज्यादातर छात्र ऐसा कर रहे हैं।
साहब का दर्द तो लाजमी है
दूसरों का दर्द दूर करना तो अच्छा है, लेकिन कोई अपना भी तो दर्द समझने वाला हो। बात बरेली में उच्च शिक्षा विभाग के एक साहब की है। कहने को तो ‘बड़े साहब’ हैं। लेकिन न तो उनके पास सरकारी गाड़ी है न पेट्रोल-डीजल का बजट। करें भी तो क्या। जैसे-तैसे अपनी ही गाड़ी से काम निपटाते हैं। बीते सप्ताह बातों-बातों में उनका दर्द छलक उठा। कहने लगे, ‘बताइए, निर्देश आते हैं यहां चले जाओ-वहां चले आओ। नकल न होने पाए, इसलिए निरीक्षण कर लो। अरे भाई, कोई सुविधा भी तो दीजिए। हद तो ये है कि सीयूजी तक नहीं है। जबकि शिक्षा विभाग के दूसरे जूनियर अधिकारियों के पास सारी सुविधाएं हैं। कई बार से कहा जा रहा है कि गाड़ियां खरीदी जाएंगी। यह कब आएंगी, उसका पता नहीं। यह दिक्कत सिर्फ मेरी नहीं, सभी जगह की है। लेकिन ‘ऊपर’ तक पहुंचाए कौन। सबको नौकरी भी तो करनी है।