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ससुर से निकाह हलाला के जुल्म से टूटी, अब कुछ भी हो इंसाफ चाहिए

नशे का इंजेक्शन देकर बदायूं के किसी मौलाना को बुलाकर ससुर से मेरा निकाह कराया गया। इस जुल्म तक मैं टूट चुकी थी। अब कुछ भी हो इंसाफ चाहिए।

By Nawal MishraEdited By: Published: Wed, 18 Jul 2018 07:17 PM (IST)Updated: Wed, 18 Jul 2018 09:13 PM (IST)
ससुर से निकाह हलाला के जुल्म से टूटी, अब कुछ भी हो इंसाफ चाहिए
ससुर से निकाह हलाला के जुल्म से टूटी, अब कुछ भी हो इंसाफ चाहिए

बरेली (अतीक खान)। शादी का पहला साल सुकून से गुजरा। लेकिन, इसके कुछ दिन बाद ही औलाद (बच्चे) न होने पर कलह शुरू हो गई। एक ऐसा मनहूस दिन आया जब शौहर ने मारपीट की। फिर तो रोज के झगड़े, मारपीट, तानों से जिंदगी नर्क बन गई। नशे के इंजेक्शन लगाए जाने लगे। शादी के तीसरे साल 2011 में मुझे तीन तलाक देकर घर से निकाल दिया गया। यह दर्द बयां किया ससुर से जबरन निकाह हलाला कराने का आरोप लगाने वाली पीडि़त महिला ने। कहा कि बहुत बदनामी हो गई, अब कुछ भी हो इंसाफ चाहिए। 

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ससुर से निकाह कराया

दैनिक जागरण से बातचीत में पीड़िता ने बताया कि नशे का इंजेक्शन देकर बदायूं के किसी मौलाना को बुलाकर ससुर से निकाह कराया गया। इस जुल्म तक मैं टूट चुकी थी। मेरे पास कोई रास्ता नहीं था। मजबूरी में मैंने फिर ससुर से हलाला के बाद शौहर से निकाह किया। छह साल तक साथ रहे। इस बीच भी औलाद नहीं हुई। ससुराल वालों के जुल्म जारी रहे। 2017 में फिर तलाक दे दिया। तीन दिन घर में कैद रखा। मेरी मां मुहल्ले की कुछ औरतों के साथ आईं तब तीसरी बार रखने के लिए देवर के साथ हलाला की शर्त रख दी गई। 

निदा मिलीं तो दर्ज हुआ मुकदमा

दोबारा तलाक के बाद मैं मुकदमा कराने के लिए चार महीने भटकती रही। पुलिस ने नहीं सुनी। मुझे किसी ने बताया कि निदा खान तलाकशुदा औरतों की मदद करती हैं। मैं उनके पास पहुंची। वह थाने लेकर गईं। मुकदमा दर्ज कराया। रिश्तेदारों ने मना किया कि ससुर के साथ हलाला का जिक्र न करना। बदनामी होगी। 

रसूले पाक की शरीयत पर कायम 

मुझसे तलाक, हलाला का सुबूत मांगा जा रहा है। मेरे पूर्व शौहर कहते कि मैंने तलाक नहीं दिया। इस सूरत में अगर मैं शौहर के साथ रहने लगूं, तो यह सबसे बड़ा गुनाह होगा। तलाक के बाद बीवी शौहर पर हराम हो जाती है। कौन उलमा इस गुनाह की जिम्मेदारी लेंगे। मैं शरीयत पर कायम हूं, इसलिए मैंने कबूला कि मेरा तलाक हुआ है। इस्लाम ने औरत को यह हक दिया है। शरीयत के खिलाफ नहीं हूं बल्कि इसकी आड़ में जो गलत हुआ उसके खिलाफ मुंह खोला है। 

भाई-रिश्तेदारों ने फेरा मुंह 

मेरे दो भाई नाराज हैं। रिश्तेदारों ने मुंह फेर लिया। सिर्फ बहन का सहारा है। घर से निकलते ही ताने मिलते हैं कि शरीयत को बदनाम कर दिया। कोई मेरा दर्द नहीं समझता कि मैं कैसे जी रही हूं? मैं सिले हुए कपड़ों की तुरपाई करती हूं। एक सूट के सात रुपये मिलते हैं। राशन कार्ड बना था। उससे अनाज मिल जाता। इस बार राशन भी नहीं लाई। कर्ज लेकर मुकदमा लड़ रही हूं। क्या खाऊंगी? कैसे न्याय का खर्च उठाऊंगी? इस घुटन में जीना मुश्किल है। पर अब मैं हार नहीं मानूंगी। इंसाफ लेकर रहूंगी। 


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