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मुर्गी के अंडे से बनी स्‍वदेशी दवा कुत्‍तों की जान लेने वाले खतरनाक वायरस पार्वो को मारेगी

कुत्तों के लिए जानलेवा बन चुके पार्वो वायरस को मात देने के लिए स्वदेशी दवा तैयार कर ली गई है। भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आइवीआरआइ) ने दो साल के शोध के बाद इसमें सफलता पाई है। वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. यूके डे ने पाउडर युक्त पार्वो मेडिसिन बनाई है

By Sant ShuklaEdited By: Published: Wed, 25 Nov 2020 07:24 AM (IST)Updated: Wed, 25 Nov 2020 01:55 PM (IST)
मुर्गी के अंडे से बनी स्‍वदेशी दवा कुत्‍तों की जान लेने वाले खतरनाक वायरस पार्वो को मारेगी
भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आइवीआरआइ) ने दो साल के शोध के बाद इसमें सफलता पाई है

बरेली, अखिल सक्सेना कुत्तों के लिए जानलेवा बन चुके पार्वो वायरस को मात देने के लिए स्वदेशी दवा तैयार कर ली गई है। भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आइवीआरआइ) ने दो साल के शोध के बाद इसमें सफलता पाई है। संस्थान के मेडिसिन विभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. यूके डे ने पाउडर युक्त पार्वो मेडिसिन बनाई है, जिसकी तीन डोज देने पर यह वायरस मर जाता है। चार दर्जन से ज्यादा बीमार कुत्तों पर इस दवा का सफल परीक्षण किया जा चुका है। दिसंबर या जनवरी में इस टेक्नोलॉजी को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आइसीएआर) के माध्यम से किसी कंपनी को देकर बाजार में उतारा जाएगा।
कैनाइन पार्वो वायरस सामान्य तौर पर नवंबर से मार्च के बीच पनपता है। जन्म से छह माह तक और अधिक उम्र के कुत्ते इसकी चपेट में जल्द आते हैं। यह वायरस आंत को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाता है। इससे ग्रसित कुत्तों को खांसी, उल्टियां होती हैं। दस्त के साथ खून आने लगता है। आइवीआरआइ में साल भर में करीब दो हजार ऐसे पीडि़तों को इलाज के लिए लाया जाता है।

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अभी महंगी है वैक्सीन
समय से बीमारी का पता न चलने या वायरस का नेचर बदलने के कारण पीडि़त करीब दस फीसद कुत्तों की मौत हो जाती है। विदेशी कंपनी ने इस बीमारी के इलाज की वैक्सीन देती है, जिसकी एक डोज करीब तीन हजार रुपये की आती है। बीमार कुत्ते को तीन डोज देनी होती हैं। स्वदेशी दवा के दाम अभी तय नहीं हुए हैं। वैज्ञानिक का कहना है कि यहां तैयार दवा के दाम टेक्नॉलाजी लेने वाली कंपनी तय होने के बाद ही निर्धारित हो सकेंगे। इतना तय है कि अपने देश में बनी दवा विदेशी वैक्सीन से बेहद सस्ती होगी।

2017  में मिला था प्रोजेक्ट
विदेशी वैक्सीन महंगी होने के कारण इसे अपने देश में ही बनाने की तैयारी की गई।  वर्ष 2017 में अंत में आइवीआरआइ को कहा गया कि इस पर शोध कर दवा बनाई जाए। अगले साल मेडिसिन विभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. यूके डे ने इस प्रोजेक्ट पर काम शुरू किया। उन्होंने दो साल तक शोध कर दवा तैयार की। इसके बाद उत्तर प्रदेश, दिल्ली से लेकर मिजोरम तक के कुत्तों पर इसका परीक्षण किया जोकि सफलता रहा।

वायरस व इलाज के बारे में जानें
-मुर्गियों के अंडे में पाए जाने वाले पीले रंग के पदार्थ की मदद से बनाई गई दवा
-इसे पाउडर के तौर पर बनाया गया है, जोकि इंजेक्शन की मदद से दी जाती है।
-कुत्ते की उम्र व वायरस के प्रभाव को देखकर दो या तीन डोज दी जाती है।


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