Indian Railway : पढ़िए कितने खतरनाक होते इमरजेंसी ब्रेक, क्यों हिचकिचाते है लोको पायलट
Indian Railway लोको पायलट के पास इमरजेंसी ब्रेक का विकल्प होता है। लेकिन वह उसे लगाने में हिचकिचाता है।उसका मुख्य कारण है ब्रेक लगाने के बाद उत्पन्न होने वाला खतरा है।जिसके कारण लोको पायलट जल्दी ब्रेक नहीं लगाते।
बरेली, जेएनएन। Indian Railway : ट्रेन रोकने के लिए लोको पायलट के पास इमरजेंसी ब्रेक का आप्शन होता है।लेकिन वह इस विकल्प का इस्तेमान करने से हिचकिचाते है? क्योंकि इमरजेंसी ब्रेक लगाने के कई खतरे होते है।रेलवे का लोको पायलट हर उस स्थिति में इमरजेंसी ब्रेक लगा सकता है, जिसमें उसे तुरंत गाड़ी रोकना जरूरी लगता है। सामने कुछ आ जाए, पटरी में खराबी दिखे, गाड़ी में कोई खराबी हो, कुछ भी कारण हो सकता है। इमरजेंसी ब्रेक उसी लीवर से लगता है जिससे सामान्य ब्रेक, लीवर को एक तय सीमा से ज्यादा खींचने पर इमरजेंसी ब्रेक लग जाते हैं।
यह है ब्रेकिंग सिस्टम
पूर्वोत्तर रेलवे के इज्जतनगर मंडल में तैनात जिले के एक लोको पायलट के अनुसार ट्रेन के हर डिब्बे में एयर ब्रेक पाइप होता है। इसमें पांच किलोग्राम प्रति वर्ग सेमी प्रेशर रहता है। यह प्रेशर नायलान के ब्रेक शू को आगे पीछे करता है। जैसे ही प्रेशर कम किया जाता है तो ब्रेक शू पहिए से रगड़ खाता है और ट्रेन रुकने लगती है। सामान्यत: एक बार ट्रेन को रोकने में करीब एक किलोग्राम प्रति वर्ग सेमी प्रेशर खत्म होता है। स्टेशन पर ट्रेन रुकने के बाद हर डिब्बे के नीचे लगे कंप्रेशर से एक मिनट के भीतर फिर से प्रेशर पांच केवी कर देते हैं और ब्रेक शू पहिए से अलग हो जाते हैं।
इमरजेंसी ब्रेक लगाने पर 800 मीटर दूर रुकती हैं ट्रेनें
लोको पायलट के अनुसार 22 डिब्बों की सुपरफास्ट ट्रेन अधिकतम 110 किमी प्रति घंटा की स्पीड से दौड़ती है। इस स्पीड पर लोको पायलट अगर ब्रेक लगाता है तो एयर पाइप का प्रेशर खत्म हो जाता है और पहियों पर लगे ब्रेक शू रगड़ खाने लगते हैं। ऐसे में भी ट्रेन 800 से 900 मीटर जाकर रुकती है। वहीं ईएमयू जैसी ट्रेनों की ब्रेकिंग सिस्टम और अच्छा होता है। इसमें प्रेशर ब्रेक के साथ-साथ इलेक्ट्रो न्यूमेट्रिक ब्रेकिंग सिस्टम भी काम करता है। यह गाड़ियां इमरजेंसी ब्रेक लगाने पर लगभग 600 मीटर की दूरी पर जाकर रुक जाती है।
इमरजेंसी ब्रेक की तरह है चेन पुलिंग
ट्रेन में कोई चेन पुलिंग करता है तो यह इमरजेंसी ब्रेक की तरह काम करती है। चेन खींचने पर एयर पाइप का प्रेशर खत्म हो जाता है और सभी ब्रेक शू पहिए से रगड़ने लगते हैं। ऐसे में 100 की स्पीड से दौड़ रही ट्रेन 800 से 900 मीटर पर जाकर रुक जाती है। हर डिब्बे के नीचे लगे कंप्रेशर से प्रेशर भरा जाता है, तब ट्रेन आगे बढ़ती है।