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आपातकाल के 44 साल: खौफनाक था वो मंजर.. न अपील, न दलील और न कोई वकील : Bareilly News

कोतवाल हाकिम राय से बिना दरवाजा खटखटाए घर में दाखिल होने पर तीखी बहस हुई लेकिन उनके हाथ सरकार विरोधी नारे लिखे पोस्टरों का बंडल लग गया था।

By Abhishek PandeyEdited By: Published: Mon, 24 Jun 2019 09:22 AM (IST)Updated: Tue, 25 Jun 2019 01:15 PM (IST)
आपातकाल के 44 साल: खौफनाक था वो मंजर.. न अपील, न दलील और न कोई वकील : Bareilly News
आपातकाल के 44 साल: खौफनाक था वो मंजर.. न अपील, न दलील और न कोई वकील : Bareilly News

बरेली [अविनाश चौबे] : 25 जून 1975 को आपातकाल लग चुका था। 27 अक्टूबर की रात उप्र के बरेली शहर के थानों, कोतवाली, डीएम ऑफिस, आवास आदि पर सरकार विरोधी पोस्टर चिपकाए। इसमें एक साथी पकड़ा गया। उसकी मुखबिरी पर पुलिस 28 अक्टूबर को सहसवानी टोला स्थित मकान पर पहुंची। तत्कालीन कोतवाल हाकिम राय से बिना दरवाजा खटखटाए घर में दाखिल होने पर तीखी बहस हुई, लेकिन उनके हाथ सरकार विरोधी नारे लिखे पोस्टरों का बंडल लग गया था। उन्होंने गिरफ्तार कर लिया।

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लोकतंत्र सेनानी वीरेंद्र अटल ने बताया कि इसके बाद कोतवाल बुलेट से कोतवाली के लिए चल दिए। हमें दूसरे वाहन से कोतवाली ले जाया गया। मैंने रास्ते भर सरकार विरोधी नारा लगाया। यह शिकायत कोतवाल से हुई। उन्होंने अंदर नारे लगाने की चुनौती दी। मैंने कहा कि बाहर ले चलो। पब्लिक के सामने लगाएंगे। इस पर कोतवाल ने डंडे मारना शुरू किया। एक-एक कर सात डंडे तोड़ दिए, लेकिन वह कुछ उगलवा नहीं सके। इंटेलीजेंस की सूचना पर उन्होंने पश्चिमी उप्र के आंदोलन की जानकारी लेनी चाही। हर बार जवाब न में ही दिया।

गिरफ्तारी वाले दिन आधी रात का वक्त रहा होगा। फिर से बैरक से बाहर निकाला गया। उल्टा लटकाकर दो पुलिस वाले आमने-सामने खड़े हुए। फिर से इतनी पिटाई की कि दो डंडे तोड़ दिए। मगर कुछ भी उगलवा नहीं सके। अगली सुबह सवा नौ बजे तत्कालीन डीएम माता प्रसाद कोतवाली पहुंचे। उनके सामने पेशी हुई। सिगरेट पीते हुए उन्होंने पूछा, क्या करते हो। मैंने नहीं बोला, तो साथी ने कहा-एमएससी।

पुलिसिया अंदाज में धमकाते हुए डीएम बोले, सब बीए, एमएससी धरे रह जाएंगे। परिवार वालों को भी बंद करा दूंगा। रातभर की पिटाई से मैं आहत था, इसलिए तपाक से बोल दिया- परिवार वालों को भी बंद करा दो। डीएम ने भड़ककर कहा, बहुत बड़ा देश भक्त बनता है तो मैंने भी कह दिया कि साहब इस समय कौन किसकी सुन रहा है। इस पर उन्होंने कोतवाल को इशारा किया। कोतवाल ने कांस्टेबल से प्लास लाने को कहा। जब तक कुछ समझ में आता, उससे पहले ही कोतवाल ने प्लास से दायें हाथ का अंगूठा दबा दिया। खून निकलने लगा।

पैदल ही ले जाया गया कोर्ट 

इसके बाद चालान कर जेल भेज दिया गया। हमारे खिलाफ डिफेंस इंडियन रूल का मुकदमा चला। पुलिसकर्मियों को निर्देश थे कि कोर्ट रिक्शे से लेकर नहीं जाएं, पैदल ही कचहरी पहुंचें। वकीलों ने हौंसला अफजाई की। मुकदमा लड़ने की बात कही। अंतत: मुकदमा प्रेम बहादुर सक्सेना ने लड़ा। छह माह बाद परीक्षा के लिए जमानत मिली। अंत में अदालत ने इस मामले में बरी किया।

हमारी पीड़ा देख टूट गया साथी

वीरेंद्र अटल ने कहा, असहनीय पीड़ा पर चीख निकल गई। यह देख हमारा साथी टूट गया। उसने कहा कि वह अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के संगठन मंत्री श्रीनिवास आनंद को जानता है। वह सुभाष नगर में रहते हैं। तुरंत ही सभी लोगों को पुलिस की गाड़ी में बैठाकर सुभाष नगर पहुंचे। यहां बाजपेयी ढाल से नीचे बदायूं रोड वाले रास्ते पर उनका घर था। रास्ते में साथी को इशारा किया कि घर का पता मैं बताऊंगा। लेकिन पुलिस को गुमराह कर गलत पता बताया, जिससे श्रीनिवास आनंद हाथ नहीं आए।

फरारी पर लगी मीसा, घर की हुई कुर्की

उन्होंने बताया कि आपातकाल के जुल्म, मुकदमा से बरी होने पर भी खत्म नहीं हुए। फरार होने पर पुलिस ने मीसा लगा दी। तीन दिन बाद ही घर की कुर्की करा दी, लेकिन फिर आपातकाल हटने तक पुलिस के हाथ नहीं आया। अब भी किसी को ये किस्से सुनाता हूं, तो लोग सिहर जाते हैं। वह दौर बड़ा ही खौफनाक था। उस समय न कोई अपील, न कोई दलील और न कोई वकील वाली स्थिति थी। लोकतंत्र सेनानियों को पकड़कर सिर्फ यातनाएं दी जाती थीं।

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