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Wildlife Live : पीलीभीत टाइगर रिजर्व में कितने बेफ‍िक्र है बाघ... पढिए ये खास रिपोर्ट Pilibhit News

71 हजार हेक्टेयर क्षेत्रफल में फैला जंगल और यहां विचरण करते 65 बाघ। आंकड़े बता रहे हैं कि बीते एक साल में कुनबे में एक दर्जन बाघों की संख्या बढ़ गई।

By Abhishek PandeyEdited By: Published: Thu, 05 Dec 2019 09:36 AM (IST)Updated: Thu, 05 Dec 2019 05:52 PM (IST)
Wildlife Live : पीलीभीत टाइगर रिजर्व में कितने बेफ‍िक्र है बाघ... पढिए ये खास रिपोर्ट Pilibhit News
Wildlife Live : पीलीभीत टाइगर रिजर्व में कितने बेफ‍िक्र है बाघ... पढिए ये खास रिपोर्ट Pilibhit News

अभिषेक पांडेय, पीलीभीत : 71 हजार हेक्टेयर क्षेत्रफल में फैला जंगल और यहां विचरण करते 65 बाघ। आंकड़े बता रहे हैं कि बीते एक साल में कुनबे में एक दर्जन बाघों की संख्या बढ़ गई। लेकिन क्या इतना काफी है? बाघ सुरक्षा माह की गतिविधियों के बीच उप्र के पीलीभीत टाइगर रिजर्व से अभिषेक पांडेय की लाइव रिपोर्ट।

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यहां बाघों की गिनती अवश्य बढ़ी है, मगर सवाल यह भी है कि मानव-बाघ संघर्ष की घटनाओं के बीच बाघों को सुरक्षित-संरक्षित रखने के पर्याप्त इंतजाम किए जा चुके हैं या उनमें कोई कसर अब भी बाकी है। सवाल इसलिए भी क्योंकि भले ही कुनबा बढ़ा, लेकिन पांच सालों में आठ बाघों की मौत भी हुई है।

विशेष एप से हो रही निगरानी : उत्तर प्रदेश के उत्तर-पूर्वी और सीमाई भूभाग में स्थित पीलीभीत टाइगर रिजर्व में बड़ा वन्यक्षेत्र समाहित है। इन जंगलों में जाएंगे तो फोन नेटवर्क नहीं मिलेगा। लेकिन, वन वॉचर फोन लेकर घूमते दिखेंगे। प्रत्येक वनकर्मी के मोबाइल में एम-स्ट्राइप एप्लीकेशन (एप) दी गई है, जिसकी कमांड कंट्रोल रूम में है। वे जहां भी जाएं, लोकेशन मिलती रहती है। लिहाजा, टीम सक्रिय भी रहती है।

खासतौर से बार्डर क्षेत्र में अधिकतम गश्त का निर्देश है, ताकि यदि वहां बाघ के पैरों के निशान मिलें तो उनकी निगरानी हो सके। मई-जून में दो दर्जन से ज्यादा बार ऐसे मौके आए जब पैरों के निशान देखकर बाघों को जंगल के अंदर ही रोक लिया गया।

जंगल की चार रेंजों में आधुनिक कैमरायुक्त मोबाइल ई-सर्विलांस टावर लगाए गए हैं ताकि बाघ यदि बीमारी या किसी मुसीबत में हो तो उसे तत्काल रेस्क्यू किया जा सके। बाघ आम रास्तों पर न निकल सकें, इसके लिए ऐसी जगहों पर सोलर फेंसिंग लगाई गई है। यह लोहे का तार है।

जितना अधिक पानी-घास, उतने सुरक्षित बाघ : बाघ पूरे दिन में सामान्य तौर पर 5-7 किमी विचरण करते हैं। पीलीभीत के जंगल में माला नदी, सूतिया नाला और खरिया नहर होकर गुजरती है। 2816 हेक्टयर में ग्रास लैंड (घास) है, जिनकी ओर हिरन, नील गाय, जंगली सुअर आदि तृणभोजी आकर्षित रहते हैं। गर्मियों में पानी की कमी से बाघ जंगल से बाहर निकलते हैं। मानव-बाघ संघर्ष भी उन्हीं दिनों में सबसे ज्यादा होता है। पिछले पांच सालों में 14 ग्रामीणों को बाघ शिकार बना चुके हैं। वहीं सात बाघों के शव नदी या जंगल में मिले। बीती 26 जुलाई को ही एक बाघिन को ग्रामीणों ने मार दिया था।

गांवों में बाघ मित्र और खेतों में सगंध फसल : 275 गांव जंगल क्षेत्र में आते हैं। इनमें से सौ गांव एकदम जंगल नेपाल से सटी सीमा पर हैं। टाइगर रिजर्व प्रशासन ने प्रत्येक गांव में एक-एक बाघ मित्र बनाने की योजना तैयार की थी, ताकि वे बाघ दिखने पर ग्रामीणों को वहां जाने से रोकें और विभाग को सूचना दें। अभी 50 बाघ मित्र ही बने हैं। जंगल क्षेत्र के गांवों में गन्ने की फसल खूब होती है। बाघ जब जंगल से बाहर निकलते हैं तो यहीं छिपकर खेत पहुंचने वाले ग्रामीणों पर हमला करते हैं। इस पर लगाम लगाने के लिए ग्रामीणों को सगंध फसल (लेमन ग्रास, मेंथा, अश्वगंधा आदि) पैदा करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है ।

बाघों की सुरक्षा और संरक्षण के आधुनिक तरीकों का इस्तेमाल किया जा रहा है। गश्त के दौरान कर्मियों के जीपीएस सिस्टम से लैस रहने पर जंगल की गतिविधियों की जानकारी मिलती रहती है। पीलीभीत का जंगल, नदी बाघों के लिए मुफीद है। बाघ-मानव संघर्ष को रोकने के लिए प्रयास जारी हैं।

-नरेश कुमार, परियोजना अधिकारी, डब्ल्यूडब्ल्यूएफ


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