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मुसाफिर हूं यारों: आधा शहर सन्नाटे में, आधा खतरे से बेफिक्र

सुभाषनगर में कोरोना संक्रमित मरीज पाए जाने के बाद शहर के हालात एकदम से बदले। हवा में कुछ दहशत से महसूस हुई।

By Abhishek PandeyEdited By: Published: Tue, 31 Mar 2020 09:46 AM (IST)Updated: Tue, 31 Mar 2020 05:56 PM (IST)
मुसाफिर हूं यारों: आधा शहर सन्नाटे में, आधा खतरे से बेफिक्र
मुसाफिर हूं यारों: आधा शहर सन्नाटे में, आधा खतरे से बेफिक्र

बरेली, अभिषेक पांडेय। सुभाषनगर में कोरोना संक्रमित मरीज पाए जाने के बाद शहर के हालात एकदम से बदले। हवा में कुछ दहशत से महसूस हुई। फोन कॉल और वाट्सएप के मैसेज जता रहे कि वायरस के संक्रमण की मौजूदगी को लेकर लोग शायद अब चेत रहे हैं। सलाह दी जा रही थीं, लोगों को बताया जा रहा था कि कम से कम अब तो लॉक डाउन का पालन कर लो। बेवजह घर से बाहर निकलकर लॉक डाउन तोडऩा बंद कर दो। घर में रहकर अपनी और परिवार की सुरक्षा कर लो। रविवार को पूरे दिन यह सब पढ़ा तो लगा कि शायद अब शहर के लोग ज्यादा सतर्क रहेंगे। घरों से बाहर नहीं निकलेंगे। मगर, यह सब सिर्फ शहर के तकरीबन आधे हिस्से में ही नजर आया। सोमवार को सुभाषनगर क्षेत्र में सन्नाटा पसरा था, लोग घरों में थे। बाकी हिस्से में फिर तस्वीरें दिखीं। अब तो खुद की खातिर घर में रहिए।

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सुबह छह से दस भी घेर लेगा कोरोना

हैरत की बात है कि कोरोना संक्रमण को लेकर वाट्सएप पर ज्ञान भरे संदेश खूब तैर रहेे। मगर जब बरेली में सुबह के हालात देखते हैं तो सबकुछ बेकार नजर आता है। सुभाषनगर में कोरोना संक्रमित मरीज सामने आने के बावजूद सोमवार सुबह को डेलापीर मंडी में भीड़ दिखी। ऐसा रोजाना हो रहा। एलन क्लब मंडी में भी भीड़ पहुंची। सुबह को छह बजे ही लोग मानो इस बेफिक्री से बाहर निकल पड़े कि कोरोना इस वक्त फैलेगा ही नहीं। दस बजे तक बेफिक्री से बाजार में ऐसे ही रहते हैं। अब भी समझ जाइए कि कोरोना का संक्रमण तो किसी भी वक्त हो सकता है। जहां भीड़ होगी, वहां संभावना बहुत ज्यादा है। इसलिए, सब्जी का मोह त्याग दीजिए। बेवजह सुबह को मंडी में भीड़ मत निकलिए। आप सिर्फ अपने घर में सुरक्षित हैं। बाहर निकलेंगे तो किसी भी वक्त वायरस के संक्रमण की चपेट में आ सकते हैं।

एक पैकेट के लिए दस फोटो मत खींचो ना

बड़े मुश्किल हालात हैं। घरों से सैकड़ों किमी दूर भटक रहे लोगों को अपनी चौखट पाना मुश्किल हो रही है। सैकड़ों किमी की दूरी तय कर चुके पैर जवाब दे चुके, खाली पेट दुखदायी लग रहा। ऐसे लोगों की मदद के लिए समाज के बाकी लोगों की जरूरत है। हालात को समझा, लोग खूब आगे आए। रास्ते में कई जगह सबीलें लगा दीं, फल-खाने का वितरण भी होने लगा। अधिकतर लोग वास्तविक दानदाता हैं मगर, उनके बीच कुछ ऐसे लोग भी हैं, जिन्हें इस पुण्य काम में भी फोटो खिंचाने की ललक है। क्रेडिट लेने का मोह है। जरूरतमंद को पैकेट देते वक्त फोटो खिंचाते हैं, सही न आए तो दोबारा और तीसरी बार भी ऐसा करते हैं। लेकिन, ऐसा मत करिए। फोटो की खातिर उस जरूरतमंद का उपहास मत करिए। पुण्य कार्य को मूल में ही रहने दीजिए। ईश्वर ने आपको मदद लायक बनाया तो सिर्फ मदद ही करिए।

अफरातफरी का भी फायदा उठा ले गए

लोग कोरोना को मात देने में डटे हुए हैं, बचाव के इंतजाम कर रहे। दूसरी ओर सरकारी कार्यालयों में हमेशा के खेल जारी हैं। हालिया वाकया बरेली जिले की एक नगर पालिका का है, जोकि लखनऊ रोड पर है। 23 तारीख को लोग जनता कफ्र्यू से निकलकर लॉक डाउन की खबरों में डूबे हुए थे, आसपास कोरोना संक्रमण से बचाव के रास्ते तलाश रहे थे। उसी दिन नगर पालिका वालों ने एक बड़े टेंडर का विज्ञापन छोटे अखबार में निकल दिया। इसके बाद सब चुप बैठ गए। चूंकि विज्ञापन की जानकारी चुनिंदा चंद लोगों को ही थी इसलिए ऑन लाइन टेंडर आवेदन भी उन्हीं चुनिंदा लोगों ने ही किया। तीस मार्च को टेंडर निकाल दिए गए। जब माजरा सामने आया तो नगर पालिका से जुड़े लोग हैरान रह गए। माथा पीटकर बैठ गए कि कोरोना के चक्कर में होशियार बाजी मार गए, बाकी संक्रमण से बचने में फंसे रह गए।  


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