लोकसभा चुनाव 2019: आधी आबादी मांगे पूरा हक
राजनीति और महिलाएं। अब महिलाएं राजनीति का हिस्सा बन रहीं। मगर उनके जमीनी मुद्दे अभी भी नेताओं की वरीयता में शामिल नहीं हैं।
शांत शुक्ला, बरेली: राजनीति और महिलाएं। पहले यही था कि जहां परिवार के पुरुष कहते थे, महिलाएं वहीं वोट डालती थीं। अब तस्वीर बदली है, महिलाएं राजनीति का हिस्सा बन रहीं। मगर कुछ कसर बाकी है। उनके जमीनी मुद्दे अभी भी नेताओं की वरीयता में शामिल नहीं हैं। वे चाहती हैं कि महिला सुरक्षा पर सिर्फ दावे न हों, काम भी हो। महिला सशक्तीकरण तभी होगा जब रोजगार और स्वरोजगार की योजनाओं का सही तरीके से क्रियान्वयन भी हो। जागरण के सरोकार महिला सशक्तीकरण के तहत हमने मंडल की महिलाओं का मन टटोला तो उनका कहना था कि महिलाओं के मुद्दे नेताओं के लिए बड़ा मुद्दा बनें, उन पर काम हो, तब बात बनेगी। उनके मन की बात जानी दैनिक जागरण के संवाददाता शांत शुक्ला ने-
बरेली कालेज के मुख्य दरवाजे से घुसते एक पेड़ के नीचे कुछ महिलाओं, कुछ छात्रओं को खड़े देखा। महिलाएं वे जो बतौर अभिभावक आई हैं, और छात्रएं वे जो परीक्षा देकर निकली हैं। बराबर में गुजरते हुए उनकी ओर कान लगाए तो पता चला कि उनमें कुछ चर्चा हो रही... चुनाव को लेकर। पैर ठिठक गए, मन ने चाहा कि कुछ और शब्द सुन लूं। मेरी तेज रफ्तार धीमी हो चुकी थी, इस उम्मीद के साथ वे राजनीति पर अभी कुछ और बोलेंगी। मेरी उम्मीद सही जगह और सही वक्त पर थी। कानों में एक छात्र की आवाज आई... हमें आधी आबादी कहा जाता है तो हमारे हिस्से का पूरा हक भी तो मिले। समझते देर न लगी कि यह चर्चा मुङो भी शामिल होने के लिए बुला रही। मैं उनके बीच पहुंचा। पता चला कि जो हक बात कर रही थीं, वह शोभा हैं और समाजशास्त्र की पढ़ाई करती हैं। उनकी आपसी बातचीत में जो परिचय निकलकर आ रहे, मैं उन पर गौर करता हुआ एकटक उनकी मन को पढ़ने की कोशिश में लग गया... इस भाव के साथ कि अब महिलाएं खुद की फिक्र की चर्चा मंच पर करने में ङिाझकती नहीं।
आइएएस बनने का सपना लेकर बड़ी हो रही मुमुक्षी इस बहस का हिस्सा तब बन जाती है, जब वहां से गुजरते हुए वह रुककर इस बहस को सुनने लगती है। उसका सोचना है कि समाज को अभी भी बदलने की जरुरत है। आज भी समाज लड़कियों को क्या पहनना चाहिए और क्या नही पहनना चाहिए। यह तय करने में लगा है। जब समाज बराबरी की बात न करके सिर्फ महिलाओं पर नियम कायदे लादने लगता है। तब महिला सशक्तीकरण और आजादी की बात बेमानी लगते हैं।
बीसलपुर की रहनी वाली गीता देश के जीडीपी के अर्थशास्त्र को तो इतना नही समझती है लेकिन रसोई के अर्थशास्त्र को बारीकी से समझकर परिवार को चलाना अच्छी तरह जानती हैं। बात चलती है तो उनके अंदर का आक्रोश बाहर आ जाता है। कहने लगीं, मध्यम वर्ग की महिलाओं को कभी प्राथमिकता ही नहीं दी गई। उनके भरोसे रसोई तो रही लेकिन कभी अर्थशास्त्र का गणित उनके हवाले नही किया गया।
हम आगे बढ़े। अपनी मां के साथ बाजार से घर जा रहीं शालिनी त्यागी से उनका मन जानना चाहा तो बोलीं-महिला सुरक्षा को लेकर शहरों में तो स्थितियां पहले की अपेक्षा बेहतर हुई है लेकिन अभी भी गांव में अक्सर बहुत सी लड़कियों के ख्वाबों का दम दहलीज के अंदर इसलिए घुट जाता है। क्योंकि उनके अभिभावकों को अभी भी यह डर सताता है कि लड़की बाहर गई तो कोई अनहोनी न हो जाए। बाक्सिंग खिलाड़ी श्रद्धा शर्मा करती हैं। वह इस बात को लेकर निराश हैं कि गांव और छोटे कस्बों से पीवी सिंधू और साइना नेहवाल जैसी महिला खिलाड़ी क्यों नही निकल रही है।
बरेली कालेज तिराहे पर घर जाने के लिए आटो रिक्शा का इंतजार कर रही दिव्या को राजनीति में कोई दिलचस्पी नही है। लेकिन इस बात पर जरुर वो अपनी सहेली पूनम से बहस करती हैं कि जब 18 साल की लड़की को वोट देने के लिए सरकार और समाज समझदार मान लेता है तो अपना जीवन साथी चुनने के लिए क्यों नही समझदार मानता है।
महिलाओं के प्रमुख मुद्दे
सुरक्षा
महिलाओं के लिए सुरक्षा अभी भी सबसे बड़ा मुद्दा बना हुआ है। सरकार की ओर से कई हेल्प लाइन जारी की गईं मगर जब भी चर्चा हो, महिलाओं के सामने सुरक्षा फिक्र का विषय होता है। महिलाएं व लड़कियां शाम ढलने के बाद अकेले घर से निकलने में कतराती है। महिला सुरक्षा के मुद्दे पर सड़क से लेकर संसद तक कई बार बहस छिड़ी। कई बार महिला संबंधी कानून में फेरबदल किए गए। मगर नतीजा सिफर रहा।
तीन तलाक
मुस्लिम महिलाओं की बात करें तो उनका प्रमुख मुद्दा तीन तलाक है। केंद्र सरकार द्वारा इस बाबत लाए गए विधेयक से महिलाओं को कुछ सुकून मिला है। पर इसके बावजूद रुहेलखंड मंडल में अभी भी तलाक के कुछ मामले सामने आ रहे हैं।
नौकरी और स्वरोजगार
रुहेलखंड में अभी नौकरी और स्वरोजगार में नारी के हित में तमाम कोशिशें की जानी बाकी हैं। उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए बड़े कदम उठाए जाने बाकी हैं। महिलाओं को स्टार्ट अप एवं लघु उद्योगों से जोड़कर अपने पैरों पर खड़ा करने की आवश्यकता है।
मजबूत मंच
प्रियंका चोपड़ा, दिशा पाटनी आज किसी पहचान की मोहताज नहीं है। रुहेलखंड में उनकी तरह बॉलीवुड, टेलीविजन, सिंगिंग एवं अन्य क्षेत्रों में नाम कमाने का सपना हजारों लड़कियां का है। मगर अपनी प्रतिभा को दिखाने को उन्हें उचित प्लेटफार्म नहीं मिल पाता। कई बार तो परिवार की ओर से भी सपोर्ट नहीं मिलता।
स्वास्थ्य
भले ही बरेली को मेडिकल हब कहा जाता हो, मगर यह कड़वा सच है कि मंडल में महिला स्वास्थ्य आज भी बड़ा मुद्दा है। तमाम विशेषज्ञ डॉक्टरों के होने बावजूद महिलाएं स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतों से जूझने का मजबूर है। इसका कारण है, पारिवारिक बंदिशों के चलते घर की दहलीज से निकलकर उनका डॉक्टरों तक न पहुंच पाना। सरकार को एक नीति बनानी चाहिए। निश्चित समय अंतराल में महिलाओं के स्वास्थ्य का चेकअप कराना चाहिए। क्योंकि महिला स्वस्थ होगी, तभी घर परिवार की अच्छे से देखभाल कर सकेगी।