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Sub Inspector Robbery Case : बदमाशों की गिनती में फंसा प्रेमनगर पुलिस का गुडवर्क Bareilly News

घटना के बाद पीडि़तों ने पांच से छह बदमाश होने की बात कही लेकिन बारी जब मुकदमा दर्ज होने की आई तो मुकदमे में लिखा गया- चार बदमाशों ने लूट का अंजाम दिया।

By Ravi MishraEdited By: Published: Fri, 31 Jan 2020 09:46 AM (IST)Updated: Fri, 31 Jan 2020 05:55 PM (IST)
Sub Inspector Robbery Case : बदमाशों की गिनती में फंसा प्रेमनगर पुलिस का गुडवर्क Bareilly News
Sub Inspector Robbery Case : बदमाशों की गिनती में फंसा प्रेमनगर पुलिस का गुडवर्क Bareilly News

जेएनएन, बरेली : 14 जनवरी को शास्त्री नगर में दारोगा पुष्कर सिंह के घर बदमाशों ने बंधक बनाकर डकैती डाली थी। घटना के बाद पीडि़तों ने पांच से छह बदमाश होने की बात कही, लेकिन बारी जब मुकदमा दर्ज होने की आई तो मुकदमे में लिखा गया- चार बदमाशों ने लूट का अंजाम दिया। ऐसा इसलिए, क्योंकि यदि बदमाश पांच या उससे ज्यादा लिखते तो रिपोर्ट डकैती में दर्ज करनी होती। कागजों पर क्राइम कंट्रोल का यह तरीका तब तक ही पुलिस के मुफीद साबित हो रहा था, जब तक खुलासा नहीं हुआ। जब आरोपित पकड़े गए तो गुडवर्क के उत्साह में पुलिस ने अपनी ही पोल खोल दी। घटना के बाद चार बदमाश कहने वाली पुलिस बोलने लगी- सात बदमाश थे।

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तीन दिन पहले जब जब वीडियो कांफ्रेंसिंग में डीजीपी ओपी सिंह ने इस पर सवाल खड़ा कर दिया। वारदात को सही तरीके से दर्ज क्यों नहीं किया, राजफाश में सात दर्शाए तो मुकदमे में चार बदमाश क्यों लिखे गए। डीजीपी के सवालों का स्थानीय अधिकारी ठीक से जवाब नहीं दे सके। इस बार जिले के पुलिस अधिकारी सवालों में फंस गए। मगर, इससे पहले भी कागजों पर ऐसा खेल खूब हुआ है।

इससे पहले भी किया खेल

12 मई को किराना व्यापारी पवन गुप्ता से हुई वारदात। इसमें छह बदमाश शामिल थे।

04 अक्टूबर को बिथरी में रेलवे कर्मचारी के साथ हुई वारदात। इसमें पांच बदमाश शामिल थे।

01 जनवरी को भमोरा पुलिस ने ट्रक लूट की वारदात का खुलासा डकैती में की।

तहरीर में खेल :  एफआइआर में तो सीधे वादी की बात लिखी जानी चाहिए। अनपढ़ है तो जैसा बोलेगा वैसा लिखना होगा और शिक्षित है तो उसकी तहरीर के अनुसार ही रिपोर्ट दर्ज होगी। लेकिन थानों में हकीकत इसके उलट है। तहरीर में शब्द पुलिस के जबकि महज दस्तखत पीडि़त के होते हैं। फरीदपुर में किसानों से हुई लूट के मामले में तहरीर बदलने का मामला इसका उदाहरण है।

तरमीम कर देते मुकदमा : हल्की धाराओं में मुकदमा लिखकर पुलिस कागजों पर क्राइम मिनिमाइज कर लेती है। मतलब जब ग्राफ बनेगा तो उसमें बड़ी वारदात कम होंगी। लेकिन खुलासे में मामले को खूब बढ़ा-चढ़ाकर दिखाते हैं। जिससे गुडवर्क की फाइल बड़ी हो सके। ऐसे मामलों की चार्जशीट लगाने से पहले विवेचक मुकदमा तरमीम कर धाराएं बढ़ा देता है।

अब भी दो बदमाश फरार, रिकवरी भी कम

प्रेमनगर के शास्त्रीनगर निवासी पीलीभीत के दारोगा पुष्कर सिंह के घर 14 जनवरी को डकैती हुई थी। पुलिस ने राजफाश में सात बदमाश होने की बात कही। खुद एक ही पकड़ पाई। रुड़की पुलिस पहले ही चार बदमाशों को जेल भेज चुकी थी। वहीं, दो बदमाश फरार हैं। बरामदगी भी छह लाख में से महज 22 हजार है।

मुकदमा तो पीडि़त और वादी की तहरीर पर ही दर्ज किया जाता है। वह जो लिखकर देता है उसी आधार पर धाराएं तय होती हैं। यह प्राथमिक स्तर पर होता है, विवेचना और राजफाश के दौरान धाराएं बढ़ाई जा सकती हैं।

- अविनाश चंद्र, एडीजी


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