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देश की शीर्ष नौकरियों में भेदभाव नहीं, इस बार 61 मुस्लिम अभ्यर्थियों का आइएएस में चयन

हमारी कौम को नाकामी के डर से बाहर निकलने की जरूरत है।

By Edited By: Published: Sun, 18 Nov 2018 08:01 PM (IST)Updated: Mon, 19 Nov 2018 01:21 PM (IST)
देश की शीर्ष नौकरियों में भेदभाव नहीं, इस बार 61 मुस्लिम अभ्यर्थियों का आइएएस में चयन
देश की शीर्ष नौकरियों में भेदभाव नहीं, इस बार 61 मुस्लिम अभ्यर्थियों का आइएएस में चयन

बरेली(जेएनएन)। हमारी कौम को नाकामी के डर से बाहर निकलने की जरूरत है। देश की शीर्ष नौकरियों में किसी तरह का भेदभाव नहीं है। इस बार आया आइएएस का रिजल्ट इसका गवाह है। इसमें 61 मुसलमानों का चयन हुआ है। आज हमें जरूरत है क्वालिटी एजुकेशन है। इसके जरिये हम देश के पॉलिसी मेकर में जगह बना सकते हैं। दुनिया जानती है कि ताजमहल आपके पूर्वजों ने बनवाया है। उसे भूल जाइए और अब विश्वविद्यालय तामीर कीजिए। क्योंकि शिक्षा से ही मुसलमानों के मसाइल हल हो सकते हैं। रविवार को पैगाम-ए-इंसानियत की ओर से आइएमए हॉल में आयोजित तालीमी कांफ्रेंस में एएमयू के पूर्व उप-कुलपति व ब्रिगेडियर सय्यद अहमद अली ने ये बातें कहीं।

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उन्होंने कहा कि हमें अपनी बहन, बेटी और बीवी को उच्च शिक्षा दिलाने की जरूरत है। बेटियां अपने वालिद से कहें कि बेशक जिस भी उम्र में उनकी शादी कर दीजिए, पर पढ़ाई से मत रोकिए। क्योंकि जब महिलाएं कमाएंगी तभी मुसलमान गरीबी से बाहर निकलेंगे। जब तक घर का एक सदस्य कमाएगा पांच खाएंगे, तब तक गरीबी दूर नहीं होगी। कनाडा से आए प्रोफेसर इदरीस सिद्दीकी ने भी क्वालिटी एजुकेशन पर जोर दिया। वैज्ञानिक मुनीर खान को डॉ. एजाज हसन मैमोरियल अवार्ड से नवाजा किया। बोर्ड, कंप्टीशन एग्जाम में बेहतरीन प्रदर्शन करने वाले छात्र-छात्राओं को भी पुरस्कृत किया गया। इस दौरान सुहेल फारुक, डॉ. शारिक वदूद, सय्यद वजाहत हुसैन, सय्यद इकराम, डॉ. सय्यद नोमान ने शिक्षा पर रोशनी डाली। इस दौरान संस्था के संस्थापक डॉ. एजाज हसन खां को याद किया गया।

आखिरत जरूरी, दुनिया भी संवारे

मुसलमानों ने आखिरत (मृत्यु के बाद का हिसाब) संवारने के लिए दुनिया छोड़ दी। जबकि कुरान में करीब 146 बार आखिरत और दुनिया का जिक्र है। यह कुरान का पैगाम है कि आखिरत और दुनिया, दोनों को संवारें। कुछ लोग अंग्रेजी-विज्ञान पढ़ने से मना करते हैं। उनसे पूछिए कि वे अपने बच्चों को क्यों विदेशों में पढ़ाते हैं।

कौम को एक रहनुमा की जरूरत

आज फिरकों में बंटी कौम को फिर एक रहनुमा की जरूरत है, जिसकी आवाज सब सुनें। किसी का राजनीतिक इस्तेमाल न हों, अपनी सोच का दायरा बढ़ाएं।


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