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फतवा.. डिगा न सका उनका हौसला, तीन तलाक को ‘तलाक’..अभी बाकी है Bareilly News

तीन तलाक पीड़िताओं की मददगार निदा खान के खिलाफ एक साल पहले फतवा भी जारी हुआ। दूसरी ओर तीन तलाक का बिल संसद में आया पास नहीं हुआ तो अध्यादेश लाया गया।

By Abhishek PandeyEdited By: Published: Wed, 17 Jul 2019 10:59 AM (IST)Updated: Wed, 17 Jul 2019 05:36 PM (IST)
फतवा.. डिगा न सका उनका हौसला, तीन तलाक को ‘तलाक’..अभी बाकी है Bareilly News
फतवा.. डिगा न सका उनका हौसला, तीन तलाक को ‘तलाक’..अभी बाकी है Bareilly News

बरेली [अतीक खान] : फतवा..। ऐसा शब्द और दस्तावेज है, समाज में जिसके असर की कल्पना भर से कदम-जुबां और दिमाग ठिठक जाएं। एक साल पहले निदा खान ने भी ऐसे ही हालात का सामना किया था, जब उनके खिलाफ इस्लाम से खारिज किए जाने का फतवा जारी हुआ। तब, कुछ पल के लिए उनके भी कदम ठिठके..मगर,रुके नहीं। फतवा से बेफिक्र होकर चलती गईं कि अपनी और दूसर तीन तलाक पीड़िताओं की आवाज उठाती रहेंगी।

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कांवेंट स्कूल में पढ़ी-लिखी, फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने वाली सामान्य परिवार की बेटी निदा खान पांच साल पहले सुन्नी मुसलमानों के सबसे बड़े मरकज (केंद्र) आला हजरत-परिवार की बहू बनीं थीं। शीरान रजा से निकाह हुआ मगर सालभर के अंदर तलाक हो गया। रोने-गिड़गिड़ाने के बजाय उन्होंने तीन तलाक के खिलाफ लड़ाई छेड़ दी। वह जितनी तेजी से यह आवाज उठातीं, उतने ही जतन इसे दबाने के भी होते। आखिरकार 17 जुलाई 2018 को दरगाह स्थित दारुल इफ्ता से एक फतवा जारी कर निदा को इस्लाम से खारिज करने का एलान कर दिया गया। वह, फिर भी नहीं डिगीं। सामाजिक बहिष्कार की दूसरी जंग लड़ते हुए फतवे के खिलाफ भी मुकदमा दर्ज करा दिया।

देश भर में चर्चित रहा प्रकरण

फतवा और उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया गया तो इसकी चर्चा देश भर में हुई थी। राज्य अल्पसंख्यक आयोग ने स्वत: संज्ञान लेते हुए दो सदस्यीय समिति भेजकर, जांच कराई। राष्ट्रीय महिला आयोग ने भी रिपोर्ट मांगी थी। यह दीगर है कि बाद में यह आयोग भी निदा की मदद में पूरी तरह से बेबस नजर आए थे।

इस एक साल में क्या हुआ

सामाजिक बहिष्कार के फतवे ने यूं तो निदा की राह में मुश्किलों के तमाम कांटे बिछाए। पर वह उन्हें हटाते हुए आगे बढ़ती गईं। बीते एक साल में दर्जनों ऐसी घटनाएं घटीं, जिसमें उनके परिवार को समाज का विरोध झेलना पड़ा। इस सबके बावजूद वह न सिर्फ कानूनी लड़ाई लड़ रही हैं, बल्कि न्याय की जंग को अंजाम तक पहुंचाने को लेकर अडिग हैं। आला हजरत हेल्पिंग सोसायटी बनाकर वह पीड़ित महिलाओं की मदद भी कर रही हैं।

बरेली से उठी आवाज पूरे देश में गूंजी 

तीन तलाक के खिलाफ बरेली से उठी आवाज पूरे देश में गूंजी थी। पीड़िताओं की मददगार निदा खान के खिलाफ एक साल पहले फतवा भी जारी हुआ। दूसरी ओर तीन तलाक का बिल संसद में आया, पास नहीं हुआ तो अध्यादेश लाया गया। अब नई लोकसभा में फिर सरकार ने तीन तलाक पर रोक का कानून बनाने की कवायद शुरू कर दी है। यानी, तीन तलाक से पार पाने के लिए इंतजार करना होगा। इन सबके बीच तीन तलाक पीड़िताएं अपने बूते हालात से उबरने की कोशिश कर रहीं।

हलाला पीड़िता को न्याय की आस

ससुर के साथ निकाह-हलाला का मुकदमा दर्ज कराने वाली पीड़िता भी न्याय के साथ गुजर-बसर की जंग लड़ रही हैं। किला क्षेत्र की पीड़िता को शौहर ने तलाक दे दिया था। आरोप है कि बाद में ससुर के साथ हलाला कराया। गत वर्ष जुलाई 2018 में यह मुद्दा पूरे देश में छाया था। पीड़िता अनाथ है। जरी-जरदोजी के काम से न्याय और जीवन चलाने का संघर्ष कर रही हैं।

तलाक से उजड़ी कायनात

पिछले साल जगतपुर की कायनात की शादी जाहिद अब्बासी से हुई थी। शादी के 13 दिन बाद ही उसने कायनात को तलाक दे दिया। आरोप है कि अब दूसरी शादी रचा ली। न्याय के लिए कायनात ने कोर्ट का रुख किया। वहीं, गुजर-बसर के लिए काम तलाशा।

हुनर बना शबाना की जिंदगी काटने का सहारा

शहर के मुहल्ला जगतपुर की शबाना अनाथ हैं। चार साल पहले उनकी शादी जगतपुर के ही ट्रक चालक इंतजार से हुई थी। पिछले साल उसने शबाना को घर से निकाल दिया। वह किराये के कमरे में रहने लगीं तो जून में वहां पहुंचा और तीन तलाक कह दिया। शबाना, जरी-जरदोजी का काम करती हैं। शौहर की ठोकर के बाद अपने हुनर को गुजर-बसर का सहारा बनाकर जिंदगी को पटरी पर लाने का संघर्ष कर रही हैं।

जारी है संघर्ष

आला हजरत हेल्पिंग सोसायटी की अध्यक्ष निदा खान ने कहा कि अदालत से मुझे इंसाफ मिल रहा है मगर, पुलिस-प्रशासन से कभी पूरा सहयोग नहीं मिला। फतवे के मुकदमे में आज तक चार्जशीट पेश नहीं हुई, न ही चोटी काटने की धमकी देने पर मोईन सिद्दीकी पर। गुरुवार को एडीजी और एसएसपी के पास कार्रवाई की अर्जी जाऊंगी।

फतवा में कहा गया था-

वह बीमार पड़ जाएं तो कोई देखने न जाए। मर जाएं तो कब्रिस्तान में दफनाने के लिए दो गज जमीन न दी जाए। समाज उनसे सुख-दुख के सारे रिश्ते-नाते तोड़ ले।’ फतवे का असर यह हुआ कि समाज कुछ लोगों ने निदा खान के परिवार का बहिष्कार शुरू कर दिया।

अदालत से मिल रहा इंसाफ

खानापूर्ति के लिए पुलिस निदा की बात सुनती रही, मुकदमे दर्ज किए मगर कार्रवाई के नाम पर टाल मटोल होती रही। कोर्ट से उन्हें इंसाफ मिल रहा। 13 फरवरी 2018 को कोर्ट ने निदा खान को गुजारा भत्ता दिए जाने का फैसला सुनाया था।


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