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शाहजहांपुर में किसान और पर्यावरण का दोस्त ये पक्षी भर रहा उड़ान

अगस्त माह में हुई गणना के बाद विश्व के सबसे विशाल पक्षी की जनसंख्या में रिकार्ड वृद्धि से जनपद के पर्यावरण संरक्षण को बल मिला है।

By Ravi MishraEdited By: Published: Thu, 17 Sep 2020 04:19 PM (IST)Updated: Thu, 17 Sep 2020 04:19 PM (IST)
शाहजहांपुर में किसान और पर्यावरण का दोस्त ये पक्षी भर रहा उड़ान
शाहजहांपुर में किसान और पर्यावरण का दोस्त ये पक्षी भर रहा उड़ान

शाहजहांपुर, नरेंद्र यादव। प्रदेश के राजकीय पक्षी सारस ने जनपद की आबोहवा और पर्यावरण संरक्षण पर सकारात्मकता का मुहर लगा दी है। चौथी साल लगातार आबादी में करीब 21 वृद्धि से सारस की संख्या 1800 के पार पहुंच गई है। अगस्त माह में हुई गणना के बाद विश्व के सबसे विशाल पक्षी की जनसंख्या में रिकार्ड वृद्धि से जनपद के पर्यावरण संरक्षण को बल मिला है। दरअसल खुले कृषि क्षेत्र, दलदली भूमि, झील, तालाब, नहर, नदी के किनारे रहने वाला सामाजिक पक्षी का कुनबा साफ संदेश दे रहा है कि शाहजहांपुर के पर्यावरण संरक्षण में काफी सुधार आया है। साठा धान की खेती पर प्रतिबंध, कीटनाशी रसायनों के सीमित प्रयोग तथा जागरूकता को भी सारस संख्या वृद्धि का कारक माना जा रहा है।

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2010 में शुरू हुई थी सारस की गणना

उत्तर प्रदेश सरकार का वन एवं वन्यजीव विभाग की ओर से 2010 से गणना शुरू की गई। इसके बाद अब प्रतिवर्ष सारस की गणना की सरंक्षण के लिए सारस की गणना कराई जाती है। इसके लिए प्रदेश में सारस संरक्षण समिति का गठन किया गया है। यह समिति पानी से तर रहने वाले (वेट लैंड) स्थलों के विकास और संरक्षण के साथ सारस संख्या में वृद्धि के सभी कारकों में मदद करता है।

कटरी से तराई में चार गुना संख्या

जनपद के पांच वन रेंज में करीब 800 झील झाबर व दलदली भूमि वाले क्षेत्र है। इनमें 150 ऐसे है जिनमें सारस का कुनबा तेजी से बढ़ रहा है। सूबे में खाद्यान्न में प्रथम व सर्वाधिक वन क्षेत्र वाली खुटार रेंज को तराई का क्षेत्र माना जाता है। यहां गत वर्ष सारस की संख्या 435 थी। जबकि गंगा व रामगंगा की कटरी क्षेत्र जलालाबाद में 101 तथा तिलहर में 394 संख्या दर्ज हुई। शहर के समीपवर्ती सिंधौली में 236 तथा शाहजहांपुर में 306 सारस पाए गए। इस वर्ष अगस्त में हुई गणना में सर्वाधिक 22 फीसद के करीब तराई क्षेत्र में सारस बढ़े। जबकि अन्य क्षेत्रों में 16 से 20 फीसद।

किसानों व पर्यावरण का मित्र है सारस

नम क्षेत्रों व खेतों में रहने वाला सारस पानी में पैदा होने वाली वनस्पति व उसकी जड़ खाते हैं। मेढक, मछली, छिपकली, सांप घोंघा तथा फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीड़े मकोड़े भी इनका भोजन है। फसलों को दानों को भी यह चुगते हैं। सारस की उपस्थिति से फसल कीटों से सुरक्षित रहती है। इससे वातावरण भी सुरक्षित व संरक्षित रहता है।

दांपत्य प्रेम का पतीक है सारस

भारतीय वन्य जीव विशेषज्ञ डा. विपुल माैर्य बताते हैं कि सदैव जोड़े के साथ रहने वाला सारस (क्रेन) सामाजिक पक्षी है। यह जीवन काल में एक ही साथी बनाता है। उसके साथ अाजीवन समय व्यतीत करता है। नर सारस जब आसमान की तरफ चोंच उठाकर अावाज करता तो मादा सारस दो बार छोटे स्वर में जवाब देती है। कीटनाशी रसायनों के प्रयोग से सारस की संख्या में कमी हुई। इसलिए इसके संकटग्रस्त प्रजाति घोषित कर संरक्षण शुरू किया गया है।

24 अगस्त में सारस की गणना कराई गई। इस बार संख्या 1800 के पार पहुंच गई है। कई नए क्षेत्र में भी चिन्हित हुए हैं, जहां सारस का पहली बार प्रवास हुआ है। जो कि पर्यावरण संरक्षण के लिए शुभ संकेत है। डा. आदर्श कुमार, प्रभागीय वन अधिकारी

गणना वर्ष : वयस्क - अवस्यक - योग - वृद्धि

2017- 18 : 884 - 212 - 1096 -

2018- 19 : 1056 - 306 - 1361 - 265

2019- 20 : 1188 - 344 - 1532 - 171

2020-21 : 1502 - 352 - 1854 - 322 लगभग 


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