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जयपुर से आए प्रवासी बोले भूख मिटाने में खर्च हुई पूंजी, उधारी के आठ हजार से पहुंचे घर Bareilly News

जिंदगी की गाड़ी पटरी पर आती दिख रही थी कि कोरोना वायरस ने सब तहस-नहस कर दिया। जिस ठेकेदार के लिए काम करते थे उसने मुंह मोड़ दिया।

By Ravi MishraEdited By: Published: Fri, 29 May 2020 10:45 PM (IST)Updated: Fri, 29 May 2020 10:45 PM (IST)
जयपुर से आए प्रवासी बोले भूख मिटाने में खर्च हुई पूंजी, उधारी के आठ हजार से पहुंचे घर Bareilly News
जयपुर से आए प्रवासी बोले भूख मिटाने में खर्च हुई पूंजी, उधारी के आठ हजार से पहुंचे घर Bareilly News

बरेली, [अंकित गुप्ता]। न एक बीघा जमीन और न रोजगार का जरिया, पिता का साया पहले ही सिर से उठ चुका था। मां और बहन का पेट भरने का इंतजाम करने के लिए दो भाइयों ने अपना गांव छोड़ दिया। परिचित के जरिए जयपुर पहुंचे और वहां ईट भट्टे पर मजदूरी करने लगे। कुछ दिन बाद बहन को भी वहीं ठिकाना दे दिया। जिंदगी की गाड़ी पटरी पर आती दिख रही थी कि कोरोना वायरस ने सब तहस-नहस कर दिया। जिस ठेकेदार के लिए काम करते थे, उसने मुंह मोड़ दिया। सैकड़ों किलोमीटर दूर तीनो भाई बहन ऐसी मुसीबत में फंसे कि पेट भरने का इंतजाम नहीं था।ठेकेदार ने घर लौटने को तो कह दिया मगर यह महसूस नहीं किया कि खाली जेब कैसे जा पाएंगे। कुछ लोगों से 8 हजार रूपए उधार लिए, एक ट्रक वाले को दिए तब वह बरेली छोड़ कर गया।

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इचोरिया में रहने वाले अनमोल देव प्रकाश बताते हैं कि पिता पूरनलाल की मौत के बाद कमाई का कोई जरिया नहीं बचा था इसलिए परिचित के जरिए जयपुर की कनौता में ईंट भट्टे पर काम करने चले गए कुछ दिन बाद बहन सीमा को भी वही ले गए ताकि एक पथ आई आंधी का काम ज्यादा हो और ज्यादा रुपए कमा सकें मार्च में जब लॉक डाउन हुआ तो उम्मीद थी कि कुछ दिन बाद हालांकि हो जाएंगे करीब 6000 हजार बचा कर रखें ताकि घर जाकर मां को देंगे मगर खाने आदि के इंतजाम में खर्च होते चले गए।ठेकेदार से कहा कि राशन आदि का बंदोबस्त करा दे मगर उसने इंकार कर दिया। मई का पहला सप्ताह आते-आते सारे रुपए खर्च हो चुके थे।

3 लोगों का किराया लिया 8000 हजार रूपए: कुछ लोगों से बात की तब पता चला कि पत्थर आदि माल लेकर ट्रक बरेली जाते हैं एक ट्रक चालक से संपर्क करने पर उसमें तीनों लोगों का किराया ₹8000 मांगा है चेहरे पर फिक्र के भाव लिए सेवा बताने लगी भट्टे पर काम करने के दौरान भाइयों का कुछ लोगों से अच्छा परिचय हो गया था किसी से 500 तक इसी से दो हजार सभी से रुपए और उधार मांगे तब जाकर 12 मई को 8000 हजार इकट्ठे कर सके इसके बाद उसी ट्रिक से 13 मई को बरेली आ गए।

रास्ते में समाजसेवियों ने दिया सहारा: तीनों बताते हैं कि जयपुर में मदद नहीं मिली उधार लिए सारे रुपए ट्रक वाले को दे चुके थे। इसलिए रास्ते में खाने का इंतजाम तक नहीं था। गनीमत रही कि कुछ जगहों पर समाजसेवी पंडाल लगाकर भोजन वितरण कर रहे थे। कुछ जगह फल मिल गए उसी के सहारे यहां तक आ गए। बुजुर्ग मां प्रेमवती बच्चों के चेहरे पढ़कर भावुक हो गई बोली सफर में बड़ी तकलीफ बर्दाश्त की हैं।

अन्य राजनीतिक दल सुध लेते तो न होती दिक्कतें: प्रवासियों के पलायन का एक बड़ा कारण लॉकडाउन है।अचानक ऐसी घटना किसी ने सोची भी नहीं थी। पहले 1 दिन का जनता कर्फ्यू और फिर लॉकडाउन हो गया। इसका समय बढ़ता गया तो स्थितियां भी बिगड़ती गई। लोगों का रोजगार बंद हुआ तो आर्थिक दिक्कतें खड़ी होने लगी। डॉ नवनीत कौर आहूजा, एसोसिएट प्रोफेसर, बरेली कॉलेज

उत्तर प्रदेश और बिहार के ज्यादातर लोग महाराष्ट्र, पंजाब आदि राज्यों में नौकरी कर रहे थे। लॉक डाउन हुआ और सब कुछ ठप हो गया। जनप्रतिनिधि हो या वहां के राजनीतिक दल, सभी को बढ़कर इसमें मदद के लिए आगे आना चाहिए था। विशेष रूप से वहां की सरकार को। डॉ रविंद्र बंसल, एसोसिएट प्रोफेसर, समाजशास्त्र विभाग बरेली कॉलेज

 


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