Campusnama : रिटायरमेंट के बाद भी जारी है साहब का खेल Bareilly News
सारे हिसाब किताब करते हैं और खिलाडिय़ों को भी खूब हड़काते हैं। साहब की हनक आज भी वैसी ही बनी हुई है जैसी रिटायरमेंट से पहले थी।
हिमांशु मिश्र, बरेली : एक बड़े शिक्षण संस्थान के खेल विभाग से पिछले दिनों एक साहब रिटायर हुए। खिलाडिय़ों में उनका बड़ा खौफ रहता था उनका। रिटायरमेंट वाले दिन उन्होंने बड़ी पार्टी अपने साथियों और अफसरों को दी। सबने उन्हें फूल माला पहनाकर मिठाई खिलाई। उधर खिलाडिय़ों के चेहरे की चमक भी बढ़ गई। सबको लगा कि अब वे जाएंगे तो कभी कभार ही मिलने आया करेंगे, लेकिन साहब ठहरे ऊंची पहुंच वाले। रिटायरमेंट के बाद भी उनकी कुर्सी बनी हुई है। पुराने अंदाज में वह रोजाना दफ्तर पहुंचते हैं। सारे हिसाब किताब करते हैं और खिलाडिय़ों को भी खूब हड़काते हैं। साहब की हनक आज भी वैसी ही बनी हुई है जैसी रिटायरमेंट से पहले थी। उनका यह रूप देखकर अब तो साथी कर्मचारियों के भी पैरों तले जमीन खिसकने लगी है। हर कोई यही कहता फिर रहा कि आखिर ऐसा क्या है इस कुर्सी में जो साहब इसे छोड़ नहीं पा रहे।
सिस्टम में ही छेद है
प्राथमिक स्कूल के बच्चों को ठंड से बचाने के लिए स्वेटर बांटने की योजना है। इसका जिम्मा बेसिक शिक्षा विभाग को दिया गया। जिले में इन दिनों इस विभाग की मुखिया एक मैडम हैं। ठंड की शुरूआत नवंबर से ही हो गई थी लेकिन, मैडम का हिसाब दिसंबर तक नहीं बन पाया। जब बना तो जनवरी में स्वेटर बांटने लगीं। यह स्वेटर भी छेद वाले निकले। ठंड रोकना तो दूर इसमें से आर-पार झलक जाए। हल्ला हुआ तो मैडम छेद वाले स्वेटर बदलने लगीं। एक स्कूल से छेद वाले स्वेटर लेकर दूसरे को दे दिए और दूसरे से लेकर तीसरे स्कूल में भेज दिए गए। इस तरह से स्वेटर भी बदल गए और उसके छेद की जगह भी। अब जब नए छेद वाले स्वेटर पहनकर बच्चे घर पहुंचे तो उनके घरवाले भी दंग रह गए। मुंह से निकल ही गया... साहब, छेद स्वेटर में नहीं बल्कि पूरे सिस्टम में है।
शोध को बढ़ावा मिले
रुहेलखंड विश्वविद्यालय और महाविद्यालयों में शोध की हालत बेहद खराब है। करीब दो दशक बीत गए। रुहेलखंड विश्वविद्यालय और इससे जुड़े डिग्री कॉलेजों में कोई भी ऐसा शोध नहीं हो पाया, जिसे पेटेंट कराया जा सके। हो सकता है कि यहां गड़बड़ी सिर्फ सोच की हो। संभव यह भी है कि असल शोध करने वाले छात्र व कराने वाले शिक्षक न हों। जरूरत अब बड़े कदम उठाने की है। कुछ ऐसे नियम बनाने पड़ेंगे जिससे अच्छे लोगों को प्रोत्साहन मिले और कॉपी-पेस्ट करने वालों को किनारे का कोना। दुनिया के टॉप विश्वविद्यालय मेधावी शोधार्थियों को अपनी तरफ से फेलोशिप देते हैं। विवि भी ऐसी व्यवस्था शुरू करे, पैसे की कमी आए तो उस रकम से कटौती कर लें जोकि खास लोगों को विवि की ओर से बांट दी जाती है। पैमाना बनाकर नई शुरूआत करके तो देखिए। शायद कुछ बदलाव हो जाए। वैसे भी, अहम कुर्सी इसीलिए दी गई है।
कॉलेज के काबिल बाबू
एक कॉलेज में प्राचार्य के बेहद करीबी बाबू इन दिनों खूब चर्चा में हैं। आप इनके पद पर मत जाइए क्योंकि पदनाम भले ही बाबू का है लेकिन लोग इन्हें दूसरा प्राचार्य ही मानते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि कॉलेज की सारी महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां इन्हीं के कंधों पर होती हैं। इनकेआगे तो सारे कर्मचारी मानो बौने हों। प्राचार्य महोदय इनके अलावा किसी पर भरोसा ही नहीं करते। पिछले दिनों इन बाबू साहब ने तो हकीकत में खुद को प्राचार्य समझ लिया और भिड़ गए छात्रों से। खैर, छात्रों ने इनकी बाबू गिरी एक मिनट में उतार दी। जमकर लताड़ लगाई। अभी भी इनके खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं। अब तो दूसरे कर्मचारी और शिक्षकों ने भी इनको लेकर कानाफूसी शुरू कर दी है। हर कोई यही पूछ रहा कि आखिर ये ऐसा क्या करते हैं कि प्राचार्य इन बाबू साहब को ही केवल काबिल मानते हैं। बाकी सब तो बेकार हैं।