Jagran Column : अफसरों के फरमान से खुश है 56,000 वाले डॉक्टर साहब Bareilly News
जिला अस्पताल की ओपीडी में डॉक्टर नहीं मिलते ऐसी शिकायतें बढ़ती गईं तो विभाग के आला अधिकारियों ने फरमान सुना दिया कि सभी डॉक्टर रजिस्टर में दर्ज मरीजों की संख्या बताएं।
अशोक आर्या, बरेली : जिला अस्पताल की ओपीडी में डॉक्टर नहीं मिलते, ऐसी शिकायतें बढ़ती गईं तो विभाग के आला अधिकारियों ने फरमान सुना दिया कि सभी डॉक्टर रजिस्टर में दर्ज मरीजों की संख्या बताएं। उस सूची को अपने चैंबर के आगे चस्पा भी करें। अधिकतर डॉक्टर को सोच में पड़ गए, क्योंकि कुछ को घर के काम निपटाने से फुर्सत नहीं तो कुछ छुट्टियों के अधिकार का भरपूर इस्तेमाल करते रहे। मगर, इस फरमान ने डॉक्टर वागीश वैश्य के चेहरे पर चमक बढ़ गई। साल भर के रजिस्टर की गिनती इकट्ठी की तो पता चला कि अब तक 56 हजार से अधिक मरीजों को देख चुके हैं। साहब के फरमान से यह डॉक्टर साहब खुश हैं। बाकी चक्कर में पड़े हैं कि रजिस्टर की गिनती कैसे पूरी करें। उन्हीं से पूछ बैठते हैं, और भई 56 हजार वाले डॉक्टर साहब। अपनी गिनती कैसे पूरी होगी। जवाब आता है-छह घंटे ओपीडी में बैठना सीखो।
पर्दे के पीछे क्या ?
स्वास्थ्य महकमे में जिले की सबसे बड़ी कुर्सी पर बैठने वाले साहब को यहां आए करीब ढाई साल हो गए। बोलते बड़ा मीठा हैं और दूसरों को सुनते भी खूब हैं। स्थितियां चाहे प्रतिकूल हों या अनुकूल, चेहरे की भंगिमाएं सब जाहिर कर देती हैं। यह तो रही उनके स्वभाव और कामकाज की बात जोकि जगजाहिर है। लेकिन, उनके कार्यालय में पर्दे के पीछे का राज आज तक नहीं खुला। दरअसल, साहब के कक्ष बना कमरा दोस्तरीय सुरक्षा से घिरा हुआ है। पहले एक दरवाजा लगा है, फिर पर्दे की आड़। जनता, कर्मचारियों की समस्याएं सुनने के बीच साहब अक्सर वहां बैठ जाते हैं। हां, यह बात अलग है कि उस कमरे तक कोई पहुंच नहीं पाता। कार्यालय में तलाशते हुए उस कमरे की ओर आने वालों को वह पहले ही देख लेते हैं। अब परिसर के कुछ कर्मचारी माथापच्ची में लगे रहते हैं कि पर्दे के पीछे क्या है।
कंधे झुके...थके नहीं
उम्र का तकाजा फिलहाल उन्होंने खुद पर हावी नहीं होने दिया। सरकार उन्हें बुजुर्ग मान चुकी लेकिन वह स्वीकारने को तैयार नहीं। बालों की सफेदी को अनुभव की कढ़ाही में पका मानते हैैं। सुबह आठ बजे अस्पताल आना फिर दो बजे तक मरीजों को देखना 62 साल की उम्र में भी जारी है। मूंछों पर ताव देकर बोलते हैं, बेटा कंधे झुके जरूर हैं लेकिन खराब बिलकुल नहीं हुए। कुछ दिनों से इन कंधों पर भार दिखाई देने लगा है। साथ के दूसरे डॉक्टर पिछले महीने रिटायर हुए। उनके जाने के बाद इनके कंधे कुछ कष्ट में हैं। ओपीडी में मरीजों की संख्या दोगुनी हो गई है। पहले जहां वह सौ मरीज देखते थे अब उन्हें अकेले दो सौ से अधिक मरीज देखने पड़ रहे हैैं। भार ऐसा बढ़ा कि डॉक्टर साहब के चेहरे पर अब चमक कम ही दिखाई देती है। सांस के मरीजों की सेवा में जुटे हैं।
मशीन हंसी उड़ा रही
वो शायर हैं, जिम्मेदार शहरी थी। प्रो. वसीम बरेलवी एमएलसी बनाए गए तभी तय कर लिया कि निधि का अधिकतम हिस्सा लोगों की सेहत के इंतजाम में खर्च करेंगे। ऐसा किया भी। जिला अस्पताल में गंभीर बीमार बच्चों के लिए वेंटीलेटर का इंतजाम नहीं था तो इसकी खरीद कराने पर हामी भर दी। ढाई साल पहले जिला अस्पताल के बच्चा वार्ड में वेंटीलेटर खरीदकर रखवा दिया गया। मगर, प्रोफेसर साहब ने जैसा चाहा, वैसा नहीं हो सका। अस्पताल में बीमार बच्चे लंबी सांसे भरते रहे और मशीन एक कोने में पड़ी व्यवस्था पर हंसती रही। वेंटीलेटर चले, इसके लिए किसी में इच्छा शक्ति नहीं जागी। अस्पताल वाले कभी डॉक्टर, कभी टेक्नीशियन, तो कभी व्यवस्था की कमी का लबादा ओढ़े रहे। साल भर में बच्चा वार्ड में करीब 85 बच्चे इलाज के दौरान मौत के मुंह में समा चुके। वेंटीलेटर काम कर रहा होता तो शायद कुछ की जान बच जाती।