UP Lok Sabha Election Results 2019: रुचि 'वीरा' न सर्व 'राज'....कश्यप ही सरताज
बदायूं के बाद मंडल में सबसे मुश्किल मुकाबला आंवला का ही माना जा रहा था।
जेएनएन, बरेली : बदायूं के बाद मंडल में सबसे मुश्किल मुकाबला आंवला का ही माना जा रहा था। जिस ढंग से गठबंधन का ताना-बाना बुना गया, महाभारत काल मेें यक्ष का सामना करने वाली सरजमीं पर सियासी सवाल एक ही था-अगला सरताज कौन होगा? रुचि 'वीरा' बनेंगी या फिर होगा सर्व 'राज'...। जब जनता जनार्दन का यक्ष जवाब गुरुवार को आया-मोदी लहर ही बेमिसाल, कश्यप फिर सरताज...।
आंवला लोकसभा सीट का हमेशा ही अपना मिजाज रहा है। कभी अगड़ों की राजनीति का केंद्र रही इस सीट पर ठाकुर प्रत्याशियों ने सबसे ज्यादा राज किया। भाजपा के दिग्गज राजवीर सिंह हों या जदयू और फिर सपा नेता रहे सर्वराज सिंह। दोनों की जीत हार के बीच ही आंवला का भाग्य बनता बिगड़ता रहा। सियासी समीकरण बदले 2009 से।
तब कांग्रेस की हवा के बावजूद पीलीभीत सीट छोड़कर आंवला आईं मेनका गांधी ने सर्वराज को शिकस्त देकर भाजपा के लिए जमीन तैयार की। तब कांधरपुर की गलियों से निकले धर्मेंद्र कश्यप सपा के टिकट पर मैदान मेें उतरे और बेहद करीबी अंतर से हार गए। तब, धर्मेंद्र बेशक हार गए थे मगर उन्होंने अपनी और कश्यप बिरादरी की सियासी ताकत का अहसास करा दिया।
मोदी सुनामी में मारा मैदान
पांच साल वनवास काटने के बाद मौका 2014 का आया। सपा में उपेक्षित महसूस कर रहे धर्मेंद्र भाजपा में चले गए। पार्टी ने न केवल भरोसा जताया बल्कि मेनका गांधी की पीलीभीत वापसी के बाद उन्हें आंवला से मैदान में उतार दिया। मोदी सुनामी का असर और जातीय समीकरण...दोनों का तालमेल काम आया और धर्मेंद्र पहली बार संसद पहुंच गए। जीत का अंतर भी कम नहीं था। एक लाख 30 हजार के पार...।
मुश्किल हालात, फिर भी मारा मैदान
2019 का चुनाव धर्मेंद्र कश्यप के लिए कांटे भरा था। गठबंधन की संभावित ताकत और जातीय समीकरण से उनकी सीट खतरे में दिख रही थी। यहां तक कि टिकट कटने के भी कयास लगाए जाने लगे मगर आखिर में पार्टी ने धर्मेंद्र पर भी भरोसा कायम रखा। गठबंधन के सामने मंडल के दूसरे सबसे मुश्किल रण में उन्हें फिर मैदान मेें उतारा।
सहज उपलब्धता और लोगों के बीच सादगी पसंद नेता की पहचान रखने वाले धर्मेंद्र के लिए मोदी लहर बड़ा सहारा बनी। शुरुआती मुश्किल मुकाबले के बाद कांधरपुर के किंग ने दूसरी बार संसद का रास्ता तय कर लिया। बाहरी प्रत्याशी रुचि वीरा को कड़े मुकाबले में पटखनी दे दी। पूर्व सांसद और कांग्रेस प्रत्याशी सर्वराज पीछे और बहुत पीछे रह गए। यही नहीं, पुराने जीत के अंतर को भी गठबंधन के असर से प्रभावित नहीं होने दिया।
धर्मेंद्र की ताकत
- भाजपा के मजबूत संगठन और मंडल में मोदी की एक मात्र देवचरा रैली का फायदा
- कश्यप के अलावा बाकी पिछड़ों के वोट भी सहेजने में कामयाब
- पार्टी से उठकर यादवों और दलितों को भी वोट पाया
- नाराजगी के बावजूद ठाकुरों ने भाजपा के नाम पर जताया भरोसा
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