विसर्जन पर भर आई भक्तों की आंखें
शहर में चल रही दुर्गा पूजा में शुक्रवार को विजयदशमी पर मां की विदाई दी।
जागरण संवाददाता, बरेली: शहर में चल रही दुर्गा पूजा में शुक्रवार को विजयदशमी पर मां की विदाई बेला में विसर्जन की बारी आई, तो हर भक्त की आंख भर आई। घाट किनारे खड़े भक्तों ने मां को विसर्जित करते हुए हाथ जोड़ गलतियों की क्षमा मांगी। इसके साथ ही परिवार की खुशहाली और संपन्नता मांगते हुए अगले वर्ष जल्द आने की कामना की।
शहर में सजे सभी दुर्गा पंडालों में शुक्रवार को सुबह सबसे पहले विजयदशमी का पूजन हुआ। फिर दर्पण विसर्जन और सिंदूर वरण की रस्म हुई, जिसमें समाज की महिलाओं ने उत्साह से प्रतिभाग किया। दोपहर में सभी पंडालों में से मां की विसर्जन यात्रा शुरू हुई। ढोल नगाड़ों की थाप पर नाचते गाते भक्तों ने मां के साथ भी रंग गुलाल की होली खेली। रामगंगा तक मां की प्रतिमा के साथ पहुंचे। इसके बाद घाट किनारे उन्होंने फिर से मां की पूजा अर्चना की। मां की धुनूची आरती भी की, लेकिन जब प्रतिमा को लेकर विसर्जन के लिए चले, तो सभी भावुक हो गए। भक्तों ने हाथ जोड़कर मां से प्रार्थना की। घाट पर बंगाली समाज के अलावा अन्य लोगों ने भी मां की मूर्तियों का विसर्जन घाट पर किया। मां दुर्गा के साथ सेल्फी लेने का क्रेज भक्तों में गंगा घाट किनारे भी रहा।
जागरण संवाददाता, बरेली: दुर्गा मां की प्रतिमाओं का विसर्जन रामगंगा घाट पर बनाए गए गड्ढे में हुआ। उसमें किसी भक्त को उतरने की इजाजत नहीं थी, इसलिए गोताखोरों की मदद से मां की प्रतिमाओं का विसर्जन किया। भक्तों ने घाट किनारे खड़े होकर ही मां को विदाई दी।
रामगंगा घाट किनारे दुर्गा प्रतिमा विसर्जन के लिए शुक्रवार को अलग से गड्ढा बनवाया गया। दोपहर में इसमें पानी भरा गया। फिर शाम को जब देवी भक्त प्रतिमाओं के साथ घाट किनारे पहुंचे, तो गढ्डे में गोताखोर पहले से तैनात मिले। उन्होंने भक्तों से प्रतिमाएं लेकर गड्ढे में प्रवाहित की। मां की प्रत्येक प्रतिमा के विसर्जन से पहले भक्तों ने खोताखोरों को सात चक्कर लगाने को कहा, जिसके बाद घाट किनारे खड़े होकर चक्कर गिने। उसके बाद ही गड्ढे में प्रतिमाएं विसर्जित की गई।