देर से इलाज पर बढ़ रही शिशु मृत्यु दर
शिशु मृत्यु दर पर रोक लगाने की सरकार की मंशा सरकारी तंत्र में उलझ गई है।
जागरण संवाददाता, बरेली : शिशु मृत्यु दर पर रोक लगाने की सरकार की मंशा सरकारी तंत्र में उलझ गई है। महिला अस्पताल से पुरुष अस्पताल आने वाले नवजात बच्चों को समय से इलाज नहीं मिल पा रहा है। इससे शिशु मृत्यु दर का आंकड़ा बढ़ रहा है। वहीं, मां से दूर बच्चे भर्ती होने के कारण लामा (लिविंग अगेंस्ट मेडिकल एडवाइस)के मामले भी बढ़ रहे हैं। टीएसयू की रिपोर्ट में इसकी पुष्टि हुई है।
यूपीएचएसएसपी के तहत जिला अस्पताल में बाल स्वास्थ्य पर काम कर रही टेक्निकल सपोर्ट यूनिट (टीएसयू) की रिपोर्ट हकीकत बता रही है। दरअसल, जिला महिला अस्पताल से पैदा होने के तुरंत बाद ही नवजात को पास के जिला अस्पताल में रेफर कर दिया जाता है। उसकी मां महिला अस्पताल में ही भर्ती रहती है। परिजन रेफर किए बच्चे को पहले जिला अस्पताल की इमरजेंसी में ले जाकर भर्ती कराते हैं। बाद में बच्चे को वहां से बच्चा वार्ड में शिफ्ट किया जाता है। लंबी प्रक्रिया के कारण बच्चे का इलाज देर से शुरू होता है। ऐसे में दस फीसद तक शिशुओं की मौत हो जाती है। टीएसयू के आंकड़े बताते हैं कि जुलाई में 59 और अगस्त में 50 बच्चे महिला अस्पताल से जिला अस्पताल में भर्ती कराए गए।
लामा हो रहे मरीज
ऐसे मामलों में प्रसूता महिला अस्पताल में होती है, जिस कारण बच्चा वार्ड में भर्ती उसके बच्चे को दूध पिलवाने के लिए वहां लाना पड़ता है। ऐसे में कई बार तीमारदार वापस बच्चे को वार्ड में नहीं लाते। इससे मरीजों के लामा और फरार होने के मामले बढ़ गए हैं।
महिला अस्पताल में ही भर्ती होंगे नवजात
मामला एडी हेल्थ डॉ. प्रमिला गौड़ के पास पहुंचने पर उन्होंने अधिकारियों की बैठक कर उन्हें महिला अस्पताल में ही बच्चे भर्ती किए जाने के निर्देश दिए। जरूरत पड़ने पर बाल रोग विशेषज्ञ को कॉल पर बुलाने को भी कहा। सीएमएस डॉ. साधना सक्सेना ने बताया कि फिलहाल दो वार्मर और एक फोटो थैरेपी मशीन के साथ भर्ती शुरू कर रहे हैं। गंभीर शिशुओं को ही रेफर करेंगे। वर्जन
-महिला अस्पताल के पास संसाधन हैं। उनसे अपने अस्पताल में एक वार्ड बच्चों के लिए शुरू करने को कहा है। जरूरत पड़ने पर जिला अस्पताल से डॉक्टर को बुला सकते हैं।
डॉ. प्रमिला गौड़, एडी हेल्थ