क्राइम रडार : बोलता नहीं महिला थाना Bareilly News
जिले में इकलौता है फिर भी महिला थाना बोलता नहीं। चाहे कप्तान साहब का संदेशा आए या वह खुद ही बोलें मगर पलटकर जवाब नहीं आएगा।
अंकित गुप्ता, बरेली : जिले में इकलौता है, फिर भी महिला थाना बोलता नहीं। चाहे कप्तान साहब का संदेशा आए या वह खुद ही बोलें मगर, पलटकर जवाब नहीं आएगा। दरअसल, रात को वहां वायरलेस रिसीव करने वाला कोई नहीं होता। किसी को हो या न हो मगर कंट्रोल वाले बाबू को इससे बड़ी दिक्कत है। जरूरी मैसेज देने की बात आती है तो पूरा जिला ‘नोट किया’ कह देता है, लेकिन महिला थाने से आवाज नहीं आती। ऐसे में उन्हें अलग से फोन कर आदेश नोट कराना पड़ता है। बीते दिनों वाकया सामने आया। बड़े साहब ने गश्ती जारी करने के आदेश दिए तो कंट्रोल रूम वाले बाबू ने इसका पालन शुरू कर दिया। वह बोलते गए और सभी थानों के मुंशी जवाब देते गए। बारी फिर महिला थाने की आई तो बाबू एक नहीं तीन बार बोले, लेकिन पलटकर कोई जवाब नहीं आया। बाबू भी झल्ला गए, बोले- महिला थाना बोलता नहीं।
वर्दी वाले मैनेजमेंट
गुरु उत्तराखंड बॉर्डर से सटे थाने की चर्चा इन दिनों पूरे जिले में है। महकमे में भर्ती के दौरान इंस्पेक्टर साहब को ट्रेनिंग तो कानून व्यवस्था सुधारने और अपराध पर लगाम लगाने की दी गई थी मगर मैनेजमेंट का हुनर उन्होंने हालात से सीख लिया। एकलव्य बनकर सीखते रहे और अब खुद ही मैनेजमेंट गुरु बन गए। फरियादी जब पहली बार मिलने जाते हैं तो बातें ऐसी मीठी-मीठी होती हैं कि उनसे अच्छा कोई नहीं लगता। दूसरी, तीसरी और चौथी मुलाकात के बाद बेचारी जनता को पता चलता है कि वे किसी काम के नहीं बल्कि मीठी गोली बांटने के माहिर हैं। क्राइम को कागजों से दूर रख सब कुछ कंट्रोल दिखा देते हैं और शिकायतबाजी भी नहीं होने देते। पब्लिक मैनेजमेंट में तो वह लाजवाब हैं ही, अफसरों को साधने में भी कोई तोड़ नहीं। इसे ऐसे भी समझ लीजिए कि उत्तराखंड बॉर्डर वाला थाना भला यूं ही मिल जाता।
डैमेज कंट्रोल ‘112’
पुलिस पर जितनी बड़ी जिम्मेदारी उतने ही ज्यादा आरोप भी लगते हैं। कभी घूसखोरी तो कभी पब्लिक पर रौब गांठने का। थानों में मुकदमा दर्ज कराना हो या किसी शिकायत पर कार्रवाई, ‘चढ़ावा’ देने की मजबूरी नई बात नहीं है। विरोध करो तो वर्दी की खनक ऐसी तेज होती है कि आवाज दूर तलक जाती है। सुनने वाले सहम न जाएं तो भला क्या करें। ये सब वर्दी को अनचाही हवा की ओर धकेलने लगा तो महकमे को डैमेज कंट्रोल की याद आई। थाने भले न सुधार सके मगर मित्र पुलिसिंग का जिम्मा यूपी-112 को सौंप दिया। यह कहते हुए कि सुरक्षा के साथ सेवा भी दें। खैर, संतोष की बात यह है कि यूपी 112 ने यह काम शुरू भी कर दिया। रात में बेटियों को घर जाना हो या सुनसान में गाड़ी खराब हो, मदद मिल रही है। मगर, उन थानों में जनता के अच्छे दिन कब आएंगे?
साहब को जांच पसंद है
जुलाई में जिले में एक महिला की जलकर मौत प्रकरण में मुकदमा तो दर्ज हुआ मगर पुलिस पर लापरवाही के आरोप भी लगे। जिस पर बड़े साहब ने अपने से छोटे वाले साहब को थानेदार की जांच सौंप दी। साहब के पास फाइल पहुंची तो मानो मन की एक और मुराद पूरी हो गई। जांच उनका सबसे प्रिय विषय है। ऐसी फाइलें हर बार कुछ न कुछ तमन्ना पूरी कर ही जाती हैं। बातों ही बातों में कह भी देते हैं कि जांच में होता क्या है। नौकरी तो सबकी चलती है भई। फिर हम अपना नुकसान क्यों करें। साहब का जांच पसंद स्वभाव थानेदार को भी पता चल गया। हाजिर हुए, बंद करने में बातचीत की, उसी में सारे आरोप सिमट गए। कुछ दिन बाद बड़े साहब के पास जांच रिपोर्ट पहुंची तो थानेदार बेदाग बताए गए। मगर उन्होंने फाइल में कुछ सूंघ लिया, अब दोबारा जांच हो रही।