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समान नागरिक संहिता दलितों, ईसाइयों और मुस्लिमों के खिलाफ

दरगाह आला हजरत के प्रवक्ता मुफ्ती मुहम्मद सलीम नूरी ने कहा कि संविधान से मिली धार्मिक आजादी के आधार पर मुसलमानों के तलाक आदि मामले तय होते हैं।

By Nawal MishraEdited By: Published: Tue, 18 Oct 2016 08:45 PM (IST)Updated: Tue, 18 Oct 2016 09:05 PM (IST)
समान नागरिक संहिता दलितों, ईसाइयों और मुस्लिमों के खिलाफ

बरेली (जेएनएन)। तीन तलाक और समान नागरिक संहिता के मुद्दे पर दरगाह आला हजरत के प्रवक्ता एवं तहरीक तहफ्फुज-ए-सुन्नीयत के राष्ट्रीय महासचिव मुफ्ती मुहम्मद सलीम नूरी ने कहा है कि संविधान से जो धार्मिक आजादी मिली है, उसी के आधार पर मुसलमानों के तलाक आदि के मामले तय होते हैं। इसके लिए पाकिस्तान या बांग्लादेश में क्या कानून लागू है, यह हमारे लिए जरूरी नहीं। यह एक गैर जरूरी बहस है, जिसमें उलझाकर केंद्र सरकार असल मुद्दों से ध्यान हटा रही है।

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जागरण से बातचीत में उन्होंने कहा कि अगर समान नागरिक संहिता देश के हित में होती तो संविधान निर्माता उसे अनिवार्य करते। इसे नागरिकों की इच्छा पर नहीं छोड़ा जाता। दिक्कत इस बात पर है कि देश के बुनियादी कामों को नजरअंदाज करके समान नागरिक संहिता पर जोर दिया जा रहा है। केंद्र सरकार शगूफा छोड़कर देशवासियों को गुमराह कर रही है। केंद्र सरकार देश को एक गैर जरूरी बहस में उलझाकर राजनीतिक लाभ हासिल करने में लगी है। इसी वजह से इसका विरोध किया जा रहा है। समान नागरिक संहिता से दलितों पर भी जुल्म होगा। इसके आने से दलित एक्ट खत्म हो जाएगा। मजहबी आजादी भी छिन जाएगी, जो संविधान के खिलाफ होगा। इंसानों के बनाए कानून, अल्लाह के बनाए कानून के बराबर नहीं हो सकते। समान नागरिक संहिता दलितों के साथ ईसाइयों और मुसलमानों के खिलाफ है। इसे कुबूल नहीं किया जा सकता।

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सलीम नूरी ने कहा कि शरीयत में ही तीन तलाक की व्यवस्था दी गई है। अगर किसी ने तीन तलाक दे दीं तो कुरान और हदीस की रोशनी में हो जाएंगी। अपनी नाकामियों को छुपाने और शरीयत को बदनाम करने के लिए तीन तलाक का मुद्दा उछाला गया है। इसमें वही लोग बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं, जो इस्लाम और शरीयत के खिलाफ जहर उगलते रहे हैं। पाकिस्तान और बांग्लादेश समेत दर्जन भर इस्लामी मुल्क तीन तलाक की प्रथा पर रोक लगा चुके हैं तो देश भर में इसका विरोध क्यों? इस पर उन्होंने कहा कि तीन तलाक में शरीयत के उसूलों को देखा जाएगा, न कि पाकिस्तान और बांग्लादेश के कानून को। हमारे देश को पाकिस्तान या बांग्लादेश के कानून की कोई जरूरत नहीं है। हमारा संविधान हमारे लिए काफी है। तीन तलाक से महिला समानता का अधिकार कतई बाधित नहीं हो रहा। शरीयत ने पुरुषों के साथ महिलाओं को भी अधिकार दिए हैं। शरीयत में महिलाओं को भी शौहर से तलाक लेने का हक दिया गया है।

कुबूल-कुबूल-कुबूल तो तलाक-तलाक-तलाक क्यों नहीं

हम हुकूमत नहीं, कुरान के फैसले के पाबंद : नौमानी

दारुल उलूम देवबंद के मोहतमिम मुफ्ती अबुल कासिम नौमानी ने कहा है कि हम जानते हैं कि किसी भी इस्लामी मुल्क में तीन तलाक पर पाबंदी नहीं है। सऊदी अरब की धार्मिक कमेटी ने तो फैसला कर दिया है कि तीन तलाक होंगी तो तीन ही मानी जाएगी। हम हुकुमत के नहीं कुरान और शरीयत के फैसले के पाबंद है।

संविधान से धार्मिक स्वतंत्रता प्राप्त है तो फिर सरकार दखलअंदाजी कर क्यों अल्पसंख्यकों से उनका हासिल हक छीनने में लगी हुई है। इसे बिल्कुल सहन नहीं किया जाएगा। तलाक या कोई भी हमारे धर्म का मसला हमारा अपना है। अपने धार्मिक मसलों को सुलझाने में खुद सक्षम है। फिर तीन तलाक को बेवजह का मुद्दा क्यों बनाया जा रहा है। बहुत सारे काम ऐसे होते हैं जो मर्द कर सकते हैं। बहुत से काम केवल औरतें ही कर करती हैं। ऐसे में मर्द और औरत की बराबरी का सवाल बेजा है। हमारे हकों पर डाका डालने की कोशिश की जा रही है, जिसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। समान नागरिक संहिता भी किसी कीमत पर मंजूर नहीं। लॉ कमीशन का सवालनामा निष्पक्ष नहीं है।


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