हिम्मत की कहानी, वो 'झांसी की रानी'
पटरी पर धड़धड़ाती ट्रेन के इंजन की कमान अब तक पुरुष लोको पायलट के हाथ में ही देखी होगी।
बरेली : पटरी पर धड़धड़ाती ट्रेन के इंजन की कमान अब तक पुरुष लोको पायलट के हाथ में ही देखी होगी। सोचते होंगे कि 100 किलोमीटर प्रतिघंटा से अधिक की रफ्तार से दौड़ने वाली ट्रेन चलाना किसी औरत के बस की बात नहीं है लेकिन, नीता मुन्नालाल ने इस धारणा को तोड़ डाला है। वह मुरादाबाद और बरेली रेल मंडल की पहली महिला लोको पायलट हैं। मूल रूप से झासी की निवासी होने के चलते साथी रेलकर्मी नीता को 'झांसी की रानी' पुकारते हैं।
एक सामान्य परिवार की बेटी का यह मुकाम छूना आसान नहीं था। बरेली के मारुति विहार निवासी नीता ने संघर्ष कर नई इबारत लिखी। मुरादाबाद मंडल में नौ लोको पायलट लॉबी हैं। इसमें 725 लोको पायलट हैं। नीता इनमें पहली महिला पायलट बनीं। चंद महीने पहले अंजू सिंह के रूप में उन्हें दूसरी साथी मिली। बकौल नीता चुनौतीपूर्ण जॉब ही उनकी पहली पसंद थी। पारिवारिक पृष्ठभूमि रेलवे की थी, सो सहायक लोको पायलट हुई। करीब एक साल से अब मालगाड़ी की मुख्य चालक हैं।
पति का सहयोग और पिता का नाम
नीता अपने पिता मुन्नालाल को जीवन का प्रेरणा स्त्रोत मानती हैं। दिवंगत पिता का नाम बतौर सरनेम लगाती हैं। नीता को निडर बनाने और लोको पायलट बनने में अहम रोल उनके पति सुशील कुमार का है। एनईआर में असिस्टेंट लोको पायलट सुशील कहते हैं कि पिता का जीवन में बड़ा रोल होता है। इसलिए सरनेम पर उन्हें कभी एतराज नहीं रहा
अब नहीं डराती रात और सन्नाटा
हर दूसरे दिन ट्रैक पर हिम्मत की कसौटी पर खरी उतरती हैं। सवारी गाड़ियों के व्यस्त रूट के चलते मालगाड़ी कई बार आउटर या जंगल के बीच घंटों खड़ी करनी पड़ती है। चूंकि, मालगाड़ी में स्टाफ भी बेहद सीमित होता है। ऐसे में डर लगना लाजिमी है। नीता बताती हैं कि अब उन्हें न तो अंधेरी रात का डर लगता है और न सन्नाटे का। ड्यूटी के दौरान मालगाड़ी चलाते समय 10 घंटे एकाग्र रहना होता है। कई बार आपात स्थिति में बिना छुंट्टी के दो दिन तक ड्यूटी पर रहना पड़ता है। 14 घंटे के बाद अगले दो घंटों में कभी भी अगले 72 घंटों के लिए बुलाया जा सकता है।