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शिक्षक पत्नी के लिए हकीमी छोड़ने वाले शख्स की बात सुनकर भर आएंगी आखें, बोला- मेरे बच्चे नहीं तो क्या, ये भी मेरे ही हैं

Bareilly Teacher Hakeem Husband वर्ष 2016 में हकीमी छोड़ दी। तब से अब तक लगातार पत्नी के स्कूल में बच्चों को संभालने के साथ ही उन्हें पढ़ाने में बराबर सहयोग कर रहे हैं। पत्नी का स्वास्थ्य सही नहीं रहता।

By Ravi MishraEdited By: Published: Fri, 03 Sep 2021 08:51 AM (IST)Updated: Fri, 03 Sep 2021 08:51 AM (IST)
शिक्षक पत्नी के लिए हकीमी छोड़ने वाले शख्स की बात सुनकर भर आएंगी आखें, बोला- मेरे बच्चे नहीं तो क्या, ये भी मेरे ही हैं
Bareilly Teacher Hakeem Husband : शिक्षक पत्नी के लिए हकीमी छोड़ने वाले शख्स की बात सुनकर भर आएंगी आखें

बरेली, जेएनएन। Bareilly Teacher Hakeem Husband: वर्ष 2016 में हकीमी छोड़ दी। तब से अब तक लगातार पत्नी के स्कूल में बच्चों को संभालने के साथ ही उन्हें पढ़ाने में बराबर सहयोग कर रहे हैं। पत्नी का स्वास्थ्य सही नहीं रहता, ऐसे में उनका सहारा बनने के लिए उन्हें हर रोज स्कूल लेकर जाना वहां जाकर बच्चों को पढ़ाना और जरूरत पड़ने पर वह मिड डे मील में बच्चों को मिलने वाले खाने के बर्तनों को साफ करने में भी नहीं हिचकिचाते।

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शहनाज बानो प्राथमिक विद्यालय बाकरगंज में प्रभारी प्रधानाध्यापिका हैं। इससे पहले वह यहां सहायक अध्यापिका के रूप में सेवाएं दे रही थीं। लेकिन, पांच साल पहले प्रधानाध्यापिका सेवानिवृत्त हो गईं। तब से शहनाज को ही प्रधानाध्यापिका का प्रभार मिला। तब यहां बच्चों की नामांकन 284 और वह अकेली। दूसरी और हार्ट की मरीज। इस स्थिति को देख उनके पति हकीम इरफान अली ने हकीमी छोड़ पत्नी का सहारा बनने का फैसला किया। तब से अब तक वह हर रोज बच्चों को संभालने के साथ ही पत्नी का बच्चों को पढ़ाने में भी पूरा सहयोग करते हैं। कहते हैं कि पत्नी की सहायता से ज्यादा सुकून बच्चों के साथ समय बीताने में मिलता है।

मेरे बच्चे नहीं तो क्या, ये भी मेरे ही हैं

इरफान अली और शहनाज बानो कहते हैं कि हमारी अपनी औलाद भले ही न हो। लेकिन, स्कूल में आने वाला हर बच्चा हमें अपने बच्चे से बढ़कर जैसा है। हकीम बताते हैं कि कक्षाएं पूरी होने के बाद वह बच्चों पर करीब हर रोज छह से सात सौ रुपए खर्च करते हैं, जिससे उन्हें खुशी मिलती है।

प्रकृति से भी कराते हैं बच्चों का जुड़ाव

हकीम बताते हैं कि कान्वेंट स्कूल की तरह वह बच्चों को हर साल प्रकृति से रूबरू कराने के लिए उन्हें जगह-जगह के ऐतिहासिक स्थलों के साथ ही कई वादियों पर लेकर जाते हैं। ताकि बच्चों का मन और दिमाग दोनों ही चुस्त रहें। इसके लिए वह बच्चों से किसी तरह का कोई शुल्क नहीं लेते हैं। जितना कुछ करते हैं सिर्फ बच्चों की खुशी के लिए।


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