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बरेली की महिमा की संघर्ष गाथा ने पिघलाया पीएम मोदी का दिल, बदल गया NEET का नियम, पढ़ें महिमा के संघर्ष की कहानी

Bareilly Girl Mahima Struggle Saga ये है बरेली की महिमा शाह की संघर्ष गाथा जिसे सुनकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दिल पिघल गया। यही नहीं उन्होंने महिला की कहानी सुनकर नीट के नियम में भी बदलाव कर दिया। आइये पढ़ते हैं महिमा शाह की कहानीः-

By Samanvay PandeyEdited By: Published: Sat, 01 Jan 2022 12:24 PM (IST)Updated: Tue, 04 Jan 2022 12:37 PM (IST)
बरेली की महिमा की संघर्ष गाथा ने पिघलाया पीएम मोदी का दिल, बदल गया NEET का नियम, पढ़ें महिमा के संघर्ष की कहानी
जन्म लेने के पहले तीन साल तक महिला ना तो बोल पाती थी और ना ही बैठ पाती थी।

बरेली, (पीयूष दुबे)। Bareilly Girl Mahima Struggle Saga : यह महज लेख नहीं है, एक संघर्ष गाथा है। ऐसी गाथा, जो दशकों में नहीं सदियों में सुनने-पढ़ने को मिलती है। हम बात कर रहे हैं बरेली की इज्जतनगर की स्वप्नलोक कालोनी में 29 अगस्त 2001 को जन्मी 80 प्रतिशत दिव्यांग महिमा शाह की। दिव्यांगता को मात देकर महिमा ने नीट परीक्षा उत्तीर्ण की और उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राइटर देने की विशेष अनुमति दी। इसी के बाद से यह आदेश पारित हो गया कि दिव्यांगों को नीट की परीक्षा में राइटर दिया जा सकता है।

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जन्म लेने के पहले तीन साल तक वह ना तो बोल पाती थी और ना ही बैठ पाती थी। उसने तीन साल की उम्र पूरी करने के बाद पहला शब्द काका बोला। इसी एक शब्द से उसने अपनी पहली प्रतिक्रिया दी। उसके शिखर तक जाने का पहला पग काका था। इसके बाद उसने महज छह माह में अच्छे से बोलना शुरू कर दिया और अंग्रेजी, हिंदी में गिनती, वर्णमाला आदि कंठस्थ कर लिया। इसके बाद एक साल के अंदर उसने बैठना शुरू कर दिया। अगर किसी ने तेज आवाज दे दी या फिर भी ताली भी बजा दी तो उसका शारीरिक संतुलन खराब हो जाता था और वह गिर जाती थी।

बहुत प्रयासों के बाद जब उसने बैठना शुरू किया तो पड़ोस में स्थित एक विद्यालय में दाखिला दिला दिया। इसके बाद उनकी मां स्कूल में साथ रहती थीं और पूरे समय क्लास में मौजूद रहती थीं, क्योंकि क्लास में बिना सहारे के वह बैठ नहीं पाती थी, लेकिन स्कूल में कोई बच्चा नहीं आता था तो उसने अपनी मां को मना कर दिया कि वह पूरे समय क्लास में ना रहें। उसने अपनी क्लास में बिना सहारे के बैठना शुरू कर दिया और पांचवीं तक की शिक्षा अर्जित की।

पांचवीं पास करने के बाद अच्छे स्कूल में एडमिशन की जिद की तो माता-पिता ने शहर के बेदी इंटरनेशनल स्कूल में एडमिशन ले लिया। वहां पर अच्छे से पढ़ाई की और छठवीं की परीक्षा में स्कूल टाप किया। इसके बाद सातवीं कक्षा में फिर से एक नई परेशानी सामने आ गई। उसकी एक्सरसाइज के दौरान बायीं ओर की जांच की हड्डी टूट गई। इससे उसकी पढ़ाई फिर से प्रभावित होने लगी। अर्द्धवार्षिक परीक्षा के अंकों के आधार पर कक्षा आठ में प्रोन्नत कर दिया गया।

करीब डेढ़ साल तक अस्पताल में रहने के बाद भी उसने पढ़ाई करने की जिद नहीं छोड़ी और अस्पताल में ही दो महीने में पूरे साल का सिलेबस पढ़ लिया। इसके बाद वार्षिक परीक्षा 75 प्रतिशत अंकों के साथ पास की। नौवीं कक्षा में सीबीएसई ने उसका रजिस्ट्रेशन करने में लापरवाही की। काफी प्रयास करने के बाद भी उसका रजिस्ट्रेशन नहीं कर रहे थे। अच्छे नंबर होने के बाद भी रजिस्ट्रेशन नहीं हुआ तो सीबीएसई के देहरादून स्थित क्षेत्रीय कार्यालय में मामले की शिकायत की। वहां पर यह टरका दिया कि अगले वर्ष आने की बात कहकर रजिस्ट्रेशन नहीं किया।

इस मामले में महिमा के पिता शैलेंद्र शाह ने नैनीताल हाईकोर्ट में अपील की। वहां पर चीफ जस्टिस यूसी ध्यानी ने मामले की गंभीरता को समझते हुए छात्रा का रजिस्ट्रेशन कराने का आदेश दिया और दिव्यांग जनों को मिलने वाली सारी सुविधाएं देने के लिए कहा। इसके बाद महिमा ने 88 प्रतिशत अंकों के साथ 2017 में दसवीं की परीक्षा पास की, जिसमें गणित और विज्ञान में 90 प्रतिशत अंक आए। इसके बाद केंद्रीय विद्यालय आइवीआरआइ से 12वीं कक्षा कक्षा परीक्षा 88 प्रतिशत अंकों के साथ 2019 में पास की।

इसमें बायोलोजी में 95 प्रतिशत अंक थे, जबकि इस विषय के उच्चतम अंक 96 थे। इसके साथ ही उसके एक और बड़े संघर्ष की शुरुआत हुई। नीट परीक्षा में किसी को राइटर नहीं मिलता था। इसके बाद महिमा ने नीट परीक्षा में राइटर देने की गुहार लगाई। मामला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संज्ञान में पहुंचा तो उन्होंने परीक्षा से एक दिन पहले ही राइटर देने की अनुमति दी गई। इसके बाद उसने नीट की परीक्षा पास कर ली।

अब नया संघर्ष शुरू : नीट में उत्तीर्ण होने के बाद 80 प्रतिशत दिव्यांग होने की वजह से मेडिकल की पढ़ाई के लिए अनफिट घोषित कर दिया। इसके बाद महिमा ने बरेली कालेज में जूलोजी, बाटनी और केमेस्ट्री के साथ दाखिला ले लिया। इसके बाद वर्ष 2020 में फिर से नीट का एग्जाम दिया, क्योंकि वह पशुओं पर शोध करना चाहती है। नीट पास करने के बाद उन्हें मेडिकल कालेज जालौन में नाम आ गया, लेकिन वहां पर मेडिकल अनफिट करते हुए उनको रिजेक्ट कर दिया। इसके साथ पंतगनगर कृषि विश्वविद्यालय, आइवीआरआइ और मथुरा पशु चिकित्सा विश्वविद्यालय में एडमिशन की सूची में नाम आ गया लेकिन वहां भी अनफिट घोषित कर दिया। इस मामले में इलाहाबाद हाइकोर्ट में केस डाल दिया है और अनुमति मिलने का इंतजार किया जा रहा है।

सिल्वेस्टर स्टेलोन है उसका हीरोः महिमा का पसंदीदा कलाकार सिल्वेस्टर स्टेलोन है, क्योंक बचपन में दिव्यांग होने के बाद उसने संघर्ष से कलाकार बनने का सफर तय किया। हम उम्र बच्चों के साथ रहने के दौरान जब उसको बच्चों ने उसकी दिव्यांगता का उलाहना दिया। इससे वह अवसाद में जाने लगी तो पिता ने उसे सिल्वेस्टर स्टेलोन की कहानी सुनाई और फिर उसकी फिल्में दिखाईं। इसी के बाद से वह उसका पसंदीदा हीरो बन गया।

20 साल की तपस्या का प्रतिफल मिलने का इंतजारः महिमा के पिता शैलेंद्र शाह और मां स्मिता शाह ने बेटी के जन्म के बाद से लेकर अब तक तपस्या की तरह अब तक संघर्ष किया। अब हाईकोर्ट में बेटी के एडमिशन के लिए संघर्ष किया जा रहा है। उनका कहना है कि हमारी तपस्या का प्रतिफल बेटी को मेडिकल में एडमिशन दिलाने के बाद ही मिलेगा।

सेरेब्रल पाल्सी की है बीमारी : महिमा को सेरेब्रल पाल्सी की बीमारी है। इस बीमारी में व्यक्ति का शरीर शिथिल हो जाता है। इससे उसके शरीर के मूवमेंट में शिथिलता आ जाती है।


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