नर्क बन जाता है पीड़िता का जीवन
कई साल पहले मेरे सामने पांच-छह साल की एक बच्ची के साथ दुष्कर्म का मामला आया था।
कई साल पहले मेरे सामने पांच-छह साल की एक बच्ची के साथ दुष्कर्म का मामला आया था। उसके साथ गांव के ही एक शख्स ने गलत हरकत की थी। उस बच्ची की स्थिति देखकर मैं हिल गई थी। सोचिए, किस मानसिकता का रहा होगा, जिस दरिंदे ने इस मासूम बच्ची के साथ ऐसा घिनौना काम किया? वह दुष्कर्मी कानूनी शिकंजे में भले ही अपने कुकृत्य की सजा भुगतेगा लेकिन, उस बच्ची और परिवार पर क्या गुजरती होगी, उसे बयां करना भी मुश्किल है।
यहां खास बात यह है कि माता-पिता को अपनी बच्ची का संरक्षण न करने का अफसोस शायद हमेशा रहेगा। वह कह भी रहे थे कि काश, हम बिटिया पर लगातार नजर रखते तो ऐसा नहीं होता। घर से बाहर खेत पर अकेली निकली थी और वहीं द¨रदे ने उसे दबोच लिया। इसके बाद बच्ची बेहोश मिली। खून बह रहा था। इस हालात में बिटिया को देखकर उसके माता-पिता और अन्य परिवार वालों पर क्या गुजरती होगी, सोचकर कलेजा कांप जाता है। इसके बाद, थाने में रिपोर्ट, उसकी मेडिकल प्रक्रिया और मुकदमेबाजी। इस दौरान धमकी भी। सामाजिक मान-मर्यादा का डर अलग। इन सारी चिंताओं ने उस परिवार को तो तोड़कर रख दिया। ऊपर से कमजोर माली हालत।
मजदूरपेशा व्यक्ति कैसे कानूनी प्रक्रिया का खर्च उठा पाया होगा, जिसके लिए घर के भरण-पोषण की चिंता ही काफी थी। फिर भी बेटी के दुष्कर्मी को सजा दिलाने की जिद थी और उस परिवार ने कानूनी लड़ाई जमकर लड़ी। अफसोस यह कि ऐसे मामलों में इसके बाद भी चिंता खत्म नहीं होती। सबसे बड़ी दिक्कत होती है, बेटी को कटु अनुभव से उबारने और उसका मनोबल बढ़ाने की। इसके साथ ही बड़े होने पर उसके शादी-ब्याह की चिंता होने लगती है। वहीं, द¨रदों का क्या..। उनके मन और आंखें दोनों अंधे होते हैं। उनको हवस के आगे कुछ नहीं दिखता। लिहाजा ऐसे कृकुत्य करने वालों को कड़ी कानूनी सजा के साथ सामाजिक बहिष्कार भी होना चाहिए ताकि बाल यौन शोषण जैसा अपराध करने के बारे में सोच भी नहीं सके।
-माधुरी कश्यप, अधिवक्ता और आशा ज्योति केंद्र से भी जुड़ी हैं।