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संतोष के लिए एक चुनाव में की सबसे ज्यादा सभाएं, तोड़ा था जनता दल से समझौता

केंद्रीय मंत्री संतोष गंगवार से अटल बिहारी वाजपेयी के निकट संबंध जग-जाहिर थे। समझौते में बरेली संसदीय क्षेत्र जनता दल के पास चली गई तो संतोष के लिए समझौता तोड़ दिया था।

By JagranEdited By: Published: Fri, 17 Aug 2018 12:48 PM (IST)Updated: Fri, 17 Aug 2018 03:35 PM (IST)
संतोष के लिए एक चुनाव में की सबसे ज्यादा सभाएं, तोड़ा था जनता दल से समझौता
संतोष के लिए एक चुनाव में की सबसे ज्यादा सभाएं, तोड़ा था जनता दल से समझौता

जेएनएन, बरेली। केंद्रीय मंत्री संतोष गंगवार से अटल बिहारी वाजपेयी के निकट संबंध जग-जाहिर थे। अटल जी के दोनों कार्यकाल में संतोष गंगवार मंत्री रहे। पेट्रोलियम राज्यमंत्री और फिर विज्ञान प्रौद्योगिकी, श्रम राज्यमंत्री। संतोष गंगवार 1989 में पहली बार लोकसभा चुनाव लड़े थे, तब बरेली संसदीय सीट भाजपा से समझौते में जनता दल को चली गई। उससे टिकट जयदीप सिंह बरार को मिल गया था। ऐसे में, संतोष गंगवार ने अटल जी की दामन थामा। उनके लिए भाजपा ने इस सीट पर जनता दल से समझौता तोड़ दिया और संतोष गंगवार ही चुनाव लड़े। जीते भी। हालांकि बाद में जनता दल ने भी बरार को चुनाव मैदान से नहीं हटाया।

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संतोष गंगवार का पहला चुनाव जिताने के लिए अटल बिहारी वाजपेयी ने बरेली संसदीय सीट में आठ सभाएं की थीं। किसी भी प्रत्याशी के लिए एक चुनाव में यह उनकी सबसे ज्यादा सभाएं थीं। अस्वस्थ होने के बाद 2008 में अटल जी अंतिम बार संसद में गए तो एक बिल पर मतदान में उनका हाथ पकड़कर संतोष गंगवार ने हस्ताक्षर कराए थे। केंद्रीय श्रम संतोष गंगवार ने बताया कि अटल जी का निधन बेहद दुखद क्षण है। उन्होंने देश के लिए बहुत काम किए। उनके जैसे विराट व्यक्तित्व के नेता बहुत कम होते हैं। वह देश की धरोहर थे। इंदिरा गांधी भी उनकी तारीफ किया करती थीं। देश के लिए उनके निधन से जो क्षति हुई है, उसकी भरपाई मुश्किल होगी।

--व्यक्ति नहीं, सोच बदलने पर जोर देते थे : सिंचाई मंत्री धर्मपाल सिंह ने बताया कि जनसंघ के समय की बात है। लोकसभा चुनाव चल रहे थे। संतोष गंगवार बरेली संसदीय सीट से प्रत्याशी थे। उनके समर्थन में मीरगंज के एक इंटर कॉलेज में अटल जी को जनसभा करनी थी। वह रात्रि को ही बरेली पहुंच गए थे, सुबह उनको मीरगंज लेकर जाना था। मैं और संतोष गंगवार उनको यहां से लेकर गए। जनसभा में दरी बिछी हुई थी। लोग वहीं बैठे हुए थे। अटल जी के लिए दरी पर ही चादर बिछा दी गई ताकि वह उस पर बैठ जाएं। वह बैठ भी गए लेकिन आंख मूंद कर कुछ देर शांत रहे। सबको लगा कि वह नाराज हो गए हैं। उनको सबके बीच दरी पर अपने लिए चादर बिछी होना पसंद नहीं आया। थोड़ी देर शांत रहने के बाद उन्होंने संतोष गंगवार के कान में कुछ कहा। इसके बाद संतोष गंगवार किसी को बुलाकर डांटने लगे तो अटल जी ने उनको चुप रहने को कहा। बोले- जिसने भी ऐसा किया, उसका भाव गलत नहीं रहा लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि किसी को डांटा जाए। उन्होंने उदाहरण दिया कि जूता काटने लगता है तो लोग उस जूते को नहीं काटते बल्कि उसको पैर के अनुकूल बना लेते हैं। जब जूते को इतनी तवज्जो दी जाती है तो आदमी को भी प्यार करना चाहिए। हमें व्यक्ति को नहीं बदलना चाहिए, बल्कि उसकी सोच को बदलना होगा। यह सीख अटल जी की हमने गांठ बांध ली। उनके साथ एक युग चला गया।


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