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एंबुलेंस चालकों ने विरोध का खोजा नया तरीका, लाइव केस और क्लोजिंग बंद कर पहुंचा रहे आर्थिक नुकसान Bareilly News

खटारा एंबुलेंस देने और तीन माह से वेतन नहीं मिलने पर एंबुलेंस चालकों ने विरोध का नया तरीका अपनाया है। एंबुलेंस का संचालन कर रही कंपनी को नुकसान पहुंचाने का काम शुरू कर दिया।

By Ravi MishraEdited By: Published: Thu, 12 Mar 2020 09:46 AM (IST)Updated: Thu, 12 Mar 2020 01:46 PM (IST)
एंबुलेंस चालकों ने विरोध का खोजा नया तरीका, लाइव केस और क्लोजिंग बंद कर पहुंचा रहे आर्थिक नुकसान Bareilly News
एंबुलेंस चालकों ने विरोध का खोजा नया तरीका, लाइव केस और क्लोजिंग बंद कर पहुंचा रहे आर्थिक नुकसान Bareilly News

बरेली, जेएनएन : खटारा एंबुलेंस देने और तीन माह से वेतन नहीं मिलने पर एंबुलेंस चालकों ने विरोध का नया तरीका अपनाया है। उन्होंने एंबुलेंस का संचालन कर रही कंपनी को नुकसान पहुंचाने का काम शुरू कर दिया है। एंबुलेंस चालकों ने रेस्पांस टाइम बिगाड़ दिया है और क्लोजिंग भी नहीं कर रहे हैं। इससे कंपनी के ऊपर आर्थिक भार बढ़ रहा है।

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सोमवार को 102 एंबुलेंस हादसे में चालक अजयवीर की मौत हो गई जबकि इमरजेंसी मेडिकल टेक्नीशियन आदेश और प्रसूता व उसके परिवार वाले घायल हो गए थे। इसके विरोध में चालकों और ईएमटी ने हंगामा किया। उन्होंने स्टेयरिंग जाम होने के चलते हादसा होना बताया। यह भी बताया कि दर्जन भर वाहन खटारा हैं। मेंटीनेंस के नाम पर गड़बड़ियां हो रही हैं। जीवनदायिनी एंबुलेंस संघ के जिलाध्यक्ष नीरज यादव ने बताया कि घटना के विरोध में रिपोर्ट दर्ज कराई जा रही है। इसके साथ ही उन्हें तीन महीने से वेतन न मिलने के चलते उन्होंने एंबुलेंस संचालन करने वाली जीवीकेईएमआरआइ कंपनी का विरोध शुरू कर दिया है।

इस तरह कर रहे विरोध : कंपनी के शासन से अनुबंध के मुताबिक 108 एंबुलेंस का रेस्पांस टाइम 15 मिनट और 102 एंबुलेंस का 20 मिनट है। इससे देर पर एंबुलेंस पहुंचने पर 60 रुपये प्रति मिनट आर्थिक भार कंपनी पर लगेगा। इसी तरह किसी भी मरीज या महिला को अस्पताल पहुंचाने के बाद उस केस को बंद करके रिपोर्ट भेजनी होती है, जिसके बाद ही कंपनी को भुगतान किया जाएगा।

एंबुलेंस चालकों ने रेस्पांस टाइम बढ़ा दिया है और क्लोजिंग भी नहीं कर रहे हैं। जिले में 102 की 43 एंबुलेंस और इतनी ही 108 एंबुलेंस भी हैं। इसके अतिरिक्त दो एडवांस लाइफ सपोर्ट (एएलएस) भी है। इनमें से करीब दर्जन भर एंबुलेंस का पुरानी और खटारा हो चुकी हैं। ढाई लाख किलोमीटर चलने के बाद एंबुलेंस को कंडम मान लिया जाता है, लेकिन यहां कई ऐसी एंबुलेंस चल रही हैं।

हादसे का शिकार हुए चालक के परिजनों को आर्थिक मदद दी जा रही है। चालकों ने लाइव केस और क्लोजिंग बंद कर दी है। उनसे बात करके हल निकाला जा रहा है। - इंद्रजीत सिंह, प्रोजेक्ट मैनेजर, जीवीके ईएमआरआइ


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