तीन तलाक के बाद पुलिस के कदम से छिड़ी नई बहस, उठ रहे सवाल
तीन तलाक के बाद हलाला को लेकर शोर मचने लगा था, लेकिन मुकदमा पहला दर्ज हुआ है।
जेएनएन, बरेली। तीन तलाक के बाद हलाला को लेकर शोर मचने लगा था, लेकिन मुकदमा पहला दर्ज हुआ है। यह मामला अहम इसलिए भी है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट में याचिका पर सुनवाई चल रही है। तीन तलाक की तरह हलाला को भी खत्म किए जाने की मांग उठ रही है।
किला की रहने वाली पीड़िता और उसे इंसाफ दिलाने की लड़ाई लड़ रही निदा खान का कहना है कि शौहर ने तलाक देने के बाद ससुर से हलाला कराया। दोनों पक्षों की तरफ से एक-दूसरे को गलत ठहराने के लिए बयानबाजी भी कई दिनों से चल रही है। पीड़िता के शौहर का कहना है कि उसने तलाक नहीं दी, फिर हलाला कैसा? ससुर भी इन्कार कर चुके हैं। दरगाह आला हजरत के स्तर से भी इस मामले में जांच के लिए तीन सदस्य कमेटी बनाई जा चुकी है। इस मुद्दे पर मुहल्ला बानखाना में निदा खान और पीड़िता का भीड़ के जरिये विरोध भी हो चुका है। तब निदा खान को भीड़ से बचाने के लिए पुलिस को हस्तक्षेप करना पड़ा था। इन तमाम बातों के बीच एसएसपी के आदेश पर किला पुलिस ने दुष्कर्म का मुकदमा दर्ज कर लिया। - पुलिस को मिली दुष्कर्म की शिकायत : पुलिस का कहना है कि मुकदमा पीड़िता की तहरीर पर किया है। हालांकि, तहरीर में महज दुष्कर्म की बात लिखी है लेकिन, पीड़िता ऐसा हलाला के चलते होने की बात कह रही है। अब देखना यह होगा कि पुलिस अपनी जांच में दुष्कर्म की परिभाषा क्या तय करती है..। - उठ सकते हैं अन्य मामले : बेशक यह पहला मुकदमा है लेकिन, अब तमाम पुराने मामले सामने आ सकते हैं। तलाक के बाद हलाला का शिकार होने वाली तमाम महिलाएं हैं। इसको लेकर ही निदा समेत तमाम महिलाएं विरोध कर रही हैं। सुप्रीम कोर्ट में मामले की तेज सुनवाई की मांग उठ सकती है।
- किसने क्या कहा
हलाला के इस पूरे मामले में आधा सच नजर आ रहा है। सबसे पहले उस मौलवी को सामने लाया जाए, जिसने बहू का ससुर के साथ निकाह पढ़वाया। इस पूरे मामले की गंभीरता से जांच हो। अगर ससुर से हलाला की बात सही है तो कड़ी कार्रवाई हो। वरना गलत आरोप लगाने वाले बेनकाब किए जाएं।
- नाइश हसन, सामाजिक कार्यकर्ता, लखनऊ हलाला शरीयत से साबित है लेकिन, इसके लिए महिला को मजबूर नहीं किया जाना चाहिए। जबर्दस्ती ऐसा कराना गलत है। बार-बार ऐसा कराने वाले को कोड़े मारे जाने चाहिए। मुकदमा दर्ज किया जाना सही हुआ है।
- फहीमा यासमीन, संस्थापक आम आवाज फाउंडेशन -हलाला का सुबूत कुरान से है, मगर इन लोगों ने जो समझा है वो हलाला नहीं है। हलाला का मतलब यह है कि जिसने तलाक दी अब वह औरत उसके लिए हलाल नहीं है। तलाक के बाद औरत आजाद हो गई। अब वह जिससे चाहे निकाह करे। उसके साथ रहे। इसमें शर्त तय नहीं होती कि किसी खास शख्स के साथ निकाह करो। इसके हम भी खिलाफ हैं।
- मुफ्ती खुर्शीद आलम, शहर इमाम -हलाला इस्लाम में है, मगर इसके लिए जबरदस्ती नहीं की जा सकती है। जब तक औरत हां नहीं करेगी, तब तक निकाह नहीं होगा। औरत नहीं चाहती तो हलाला न करें। क्या जरूरत है उस मर्द के साथ दोबारा रहने की जो एक बार छोड़ चुका है। इस्लाम ने औरत को यह बड़ा हक दिया है कि वो अपनी जिंदगी का फैसला करने को आजाद है।
- नाजमा परवीन, अधिवक्ता
-मुकदमा दर्ज हो गया, यह दीगर है। जांच में यह साबित हो जाएगा कि शौहर ने तलाक नहीं दी क्योंकि ससुर के साथ निकाह ही जायज नहीं है। न ही कहीं निकाह हुआ। फिर हलाला कैसा? शौहर के पास सारे सबूत होने के बावजूद उसे नहीं सुना गया। यह बेहद दुखद है।
- राफिया शबनम, अध्यक्ष सबका हक संस्थान - मुफ्ती खुर्शीद आलम और कलकत्ता के मौलाना में गहमागहमी : निदा को इस्लाम से खारिज करने के फतवे को लेकर एक न्यूज चैनल पर बरेली से लाइव बहस हुई। इसमें निदा खान, फरहत नकवी और शहर इमाम मुफ्ती खुर्शीद आलम ने हिस्सा लिया। फतवे के संबंध में कोलकाता के एक मौलाना और मुफ्ती खुर्शीद आलम में खूब जिरह हुई। बात तकरार तक पहुंच गई। कोलकाता के मौलाना ने फतवे को रद करते हुए मुफ्ती खुर्शीद को ही इस्लाम से खारिज करने का मुद्दा उठा दिया। वहीं, मुफ्ती खुर्शीद आलम ने कोलकाता के मौलाना के पढ़े-लिखे होने पर ही सवाल उठाए। कहा कि आप मौलाना ही नहीं हैं।