Lockdown 2.0: मोक्ष की रस्में भी ‘लॉक’, कोरोना ने बदल दी अतिम संस्कार की रस्मे
हाल-फिलहाल जिनकी भी मौत हुई है अंतिम संस्कार के बाद परिजनों ने उनकी अस्थियां श्मशान घाट की कोठरी में रखवा दी हैं।
बरेली, जेएनएन : मोक्ष यानी दुनिया से मुक्ति..। मान्यता है कि अंतिम संस्कार के बाद अस्थियां नदी में प्रवाहित होने पर ही मृत आत्मा को मोक्ष मिलता है। लेकिन कोरोना वायरस संक्रमण को रोकने के लिए जरूरी लॉकडाउन के चलते मोक्ष का रास्ता बताई जाने वाली यह रस्म भी बंद है।
हाल-फिलहाल जिनकी भी मौत हुई है, अंतिम संस्कार के बाद परिजनों ने उनकी अस्थियां श्मशान घाट की कोठरी में रखवा दी हैं। वे चाहकर भी उनकी अस्थियों को रामगंगा में प्रवाहित नहीं कर पा रहे। इसके अलावा अब न तो अंतिम यात्र और न ही चिता के आसपास अपनों की भीड़ होती है। 13 दिनों में कराया जाने वाला ब्राह्मण भोज फिलहाल चार से छह माह के लिए टाल दिया गया है।
दीवार पर नाम लिखकर भूल गए
सिटी श्मशान भूमि स्थित एक कोठरी में करीब 250 से ज्यादा अस्थि कलश रखे हैं। परिजन दीवार पर कोयले से नाम लिखकर चले गए और वापस नहीं लौटे। कई कलश टूट तक गए हैं। टूटे कलश में रखी उनकी अस्थियों को मोक्ष का इंतजार है।
तीन दिन में हो रहे श्राद्ध कर्म
अंतिम क्रियाकर्म से जुड़े पंडित अशोक महाराज ने बताया कि दस दिन के भीतर अस्थियां विसर्जन करने का नियम होता है। वर्तमान स्थिति को देखते हुए महज तीन दिन में ही श्राद्ध कर्म पूरे कर रहे हैं।
रोजाना हो रहे तीन से चार अंतिम संस्कार
हिंदूू सोशल सर्विस ट्रस्ट के अध्यक्ष विजय अग्रवाल ने बताया कि सिटी श्मशान भूमि में 33 चिताएं जलाने की व्यवस्था है। फिलहाल तीन से चार अंतिम संस्कार हो रहे। इनके भी कलश कोठरी में ही रखे हैं। अंतिम संस्कार के लिए लकड़ियां लाने वाले वाहनों को नहीं रोकना चाहिए।