BPed : एक प्राचार्य ने बुना ठेके पर पास कराने का तानाबाना Bareilly News
बीपीएड के चार कॉलेज हैं। सभी सेल्फ फाइनेंस हैं। मई में इसकी परीक्षा रुविवि कैंपस हुई थी। इसमें 21 छात्र-छात्राओं को यूएफएम (अनफेयर्ड मींस) में बुक किया गया।
बरेली, जेएनएन : बैचलर ऑफ फिजिकल एजुकेशन (बीपीएड) परीक्षा में कोडिंग ध्वस्त कर ठेके पर पास कराने वाले गिरोह में एक प्राचार्य का नाम बतौर सरगना सामने आ रहा है। यूएफएम की कार्रवाई में घिरे विद्यार्थी जल्द ही कुलपति के समक्ष गिरोह के नाम खोल सकते हैं। प्रोफेसर भी उन प्राचार्य की भूमिका को संदिग्ध मान रहे हैं। जांच का आधार मिलते ही कुलपति कड़ा निर्णय ले सकते हैं।
बीपीएड के चार कॉलेज हैं। सभी सेल्फ फाइनेंस हैं। मई में इसकी परीक्षा रुविवि कैंपस हुई थी। इसमें 21 छात्र-छात्राओं को यूएफएम (अनफेयर्ड मींस) में बुक किया गया, क्योंकि उन्होंने अपनी कॉपी के अंदरूनी पन्नों पर अपना-कॉलेज का नाम और रोल नंबर लिखा था। आशंका जताई गई कि ऐसा कॉपी की पहचान उजागर करने के लिए किया गया है। गत दिवस रुविवि ने बीपीएड का रिजल्ट निकाला। उसी दिन यह 21 विद्यार्थी कैंपस में धरने पर बैठ गए। इस मांग के साथ कि बीपीएड के सभी छात्र-छात्राओं ने अपनी कॉपी के अंदर नाम-रोल नंबर लिखे हैं। कार्रवाई सिर्फ हम 21 पर ही क्यों? सबकी जांच की जाए। जमकर विरोध प्रदर्शन हुआ था।
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ऐसी पहचानते थे कॉपी
गिरोह ने परीक्षा से पहले छात्रों को ट्रेंड किया। बताया कि कॉपी पर जवाब लिखते समय बीच-बीच में कॉलेज का शॉर्ट नाम लिखें। विद्यार्थियों ने ऐसा ही किया। उन्होंने कॉपी के हर पेज पर जवाब के बीच में कई जगह कॉलेज का शॉर्ट नाम-रोल नंबर लिखा। यानी परीक्षक पहचान ले कि कॉपी किस कॉलेज की है। उसी को ज्यादा अंक दिए जाने हैं।
हर कॉपी के तय रुपये
मूल्यांकन में परीक्षकों को प्रति कॉपी के रेट पर तय किया गया। प्रोफेसरों के मुताबिक मूल्यांकन के बाद उन्हें रुपये भी दिए गए हैं। इससे पूर्व की परीक्षा में भी ऐसा ही खेल होने की बातें सामने आ रही हैं।
नेताजी का बेड़ा पार हो गया
बीपीएड में नकल में घिरे एक नेताजी पहले तो काफी बेचैन थे। रिजल्ट आया तो वह कार्रवाई के मुक्त रहे। बताया जा रहा कि नकल माफिया के गिरोह ने ही विद्यार्थियों को आंदोलन के लिए उकसाया था। मगर उन्हें मामला पेचीदा होने की आशंका नहीं थी।
विद्यार्थी सहयोग करें तो गिरोह को सिखा देंगे सबक : कुलपति
'बीपीएड के विद्यार्थी किसी गिरोह के झांसे में फंसे हैं। वो जानते हैं कि इसमें कौन लोग शामिल हैं। उनके नाम बताएं, ताकि उन लोगों को ट्रेस किया जा सके। हम सुनिश्चित करेंगे कि गिरोह पकड़ा जाए। इसमें विवि के अंदर-बाहर के जो लोग शामिल होंगे। उनके विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की जाएगी। जब तक ये लोग नहीं पकड़े जाएंगे तक तक रोकथाम संभव नहीं। क्योंकि अगली बार वे रोल नंबर के बजाय कोई दूसरी पहचान का रास्ता बना लेंगे।'
एमजेपी रुहेलखंड विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. अनिल शुक्ल बीपीएड में 25-25 हजार रुपये के ठेके पर पास कराने के प्रकरण पर यह प्रतिबद्धता जाहिर करते हैं। रुविवि में शुक्रवार को विद्यार्थियों के प्रदर्शन पर उनका मानना है कि ऐसा करके विवि को विवश नहीं किया जा सकता। इसलिए क्योंकि आप आरोपित हैं। आपने भी कॉपी के अंदर पहचान बनाई है। हम अपेक्षा करते हैं कि विद्यार्थी जांच में सहयोग करेंगे।
पांच साल में टूटा सुरक्षा कवच
रुविवि की परीक्षा में नकल माफिया के राज की लंबी दास्तां हैं। जिसका चैप्टर बंद करने के लिए पांच साल पहले (2014) में रुविवि ने परीक्षा पैटर्न बदला। कॉपियों में बदलाव कर कोडिंग व्यवस्था लागू की। पांच साल के अंदर नकल माफियों ने सेंधमारी रोकने के इस कवच को तोड़ डाला। अब उन्होंने प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष दोनों तरीके से मूल्यांकन तक दखल बना ली है। इससे कोडिंग ध्वस्त सी हो चुकी है।
कोडिंग एजेंसी में बदलाव
रुविवि में पिछले कई साल से एक ही कोडिंग एजेंसी है। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) की शिकायत के बाद एक कर्मचारी के मोबाइल में गोपनीय चार्ट की कॉपी मिली थी। एबीवीपी ने एजेंसी पर प्रश्न उठाते हुए इसे बदले जाने की मांग की है। प्रोफेसर भी सहमत हैं कि एजेंसी को अधिकतम दो साल में जरूर बदला जाए। ताकि कॉलेज वाले एजेंसी से सांठगांठ न कर पाएं।
रुविवि को उठाने होंगे यह कदम
- मूल्यांकन केंद्राध्यक्ष हर साल-सेमेस्टर में बदले जाएं। ऐसा होने से नकल माफिया आसानी से कॉपी तक दखल नहीं बना पाएंगे।
- कॉपी जांचने के लिए 50 प्रतिशत परीक्षक दूसरे विश्वविद्यालयों के बुलाए जाएं। अभी विवि से संबद्ध कॉलेजों के अधिकांश परीक्षक आते हैं।
- परीक्षकों के ऊपर प्रधान परीक्षक बनाया जाए। कानपुर विवि आदि में ऐसा होता है।
- परीक्षकों की जांची गई हर बीस कॉपी में से एक कॉपी रेंडमली चेक की जाए। इसका लाभ यह होगा कि कॉपी के अंदर क्या लिखा है-परीक्षक अंक किस आधार पर दे रहे हैं।
- मूल्यांकन केंद्र पर छह-छह साल से एक ही कर्मचारी जमे हैं। उनमें हर साल बदलाव किया जाए।
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