Move to Jagran APP

पर्यावरण संरक्षण: बरेली व आसपास में खत्म हो गए वट प्रजाति के 70 फीसद पेड़ Bareilly News

देश के टॉप-10 प्रदूषित शहरों में बरेली छठवें स्थान पर है। उत्तराखंड जैसे पहाड़ी क्षेत्र के पास होने के बावजूद प्रदूषण बढ़ने पर बरेली कॉलेज के शिक्षक ने बड़ा खुलासा किया है।

By Ravi MishraEdited By: Published: Thu, 23 Jan 2020 09:59 AM (IST)Updated: Thu, 23 Jan 2020 01:07 PM (IST)
पर्यावरण संरक्षण: बरेली व आसपास में खत्म हो गए वट प्रजाति के 70 फीसद पेड़ Bareilly News
पर्यावरण संरक्षण: बरेली व आसपास में खत्म हो गए वट प्रजाति के 70 फीसद पेड़ Bareilly News

हिमांशु मिश्र, बरेली : देश के टॉप-10 प्रदूषित शहरों में बरेली छठवें स्थान पर है। उत्तराखंड जैसे पहाड़ी क्षेत्र के सबसे नजदीक होने के बावजूद यहां तेजी से बढ़ रहे प्रदूषण पर बरेली कॉलेज के शिक्षक ने बड़ा खुलासा किया है। बॉटनी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. आलोक खरे और उनकी टीम को एक अध्ययन से पता चला है कि पिछले दस सालों में बरेली और आसपास के इलाकों से 70 फीसद वट वृक्ष काट दिए गए। जोकि पहले शहर को शुद्ध और ताजी हवा मुहैया कराते थे। डॉ. आलोक अब अपनी इस रिपोर्ट को पर्यावरण मंत्रालय को भेजने की तैयारी में हैं। उन्होंने बताया कि अगर यही हालात रही तो आने वाला समय और भी भयावह हो जाएगा।

loksabha election banner

तीन सालों में किया अध्ययन

डॉ. आलोक और उनकी टीम ने यह अध्ययन वर्ष 2017 से 2019 के बीच बरेली और आसपास के इलाकों में किया था। इसमें मालूम हुआ कि पिछले दस सालों में सबसे ज्यादा पीपल, बरगद, पाकड़, गूलर, नीम, बेल, अशोक जैसे पेड़ काटे गए हैं। देखते ही देखते 70 फीसद वट वृक्ष गायब हो गए।

अब लगाए जा रहे सजावटी पेड़-पौधे

डॉ. आलोक बताते हैं कि अब जो पेड़ और पौधे लगाए जा रहे हैं उनमें ज्यादातर सजावटी और फल-फूल वाले हैं। ये दिखने में तो खूबसूरत लगते हैं या इनकी लकड़ी और फल का अच्छा उपयोग हो सकता है लेकिन वातावरण की शुद्धि में इनकी भूमिका ज्यादा नहीं रहती है। वट वृक्षों के मुकाबले इनमें डेढ़ से दो गुना कम ऑक्सीजन की मात्रा होती है।

हाईवे के किनारे से भी साफ हो गए वट वृक्ष

अध्ययन से सामने आया है कि दिल्ली-बरेली हाईवे, बरेली-नैनीताल रोड समेत बरेली से बाहर की तरफ जाने वाले सभी सड़कों के किनारे से वट वृक्ष काफी तेजी से कटे। इनकी जगह अब सड़क के बीच कनेर, छितवल या अन्य फूलों वाले पेड़-पौधे लगाए जा रहे हैं।

पक्षियों के पलायन का भी सबसे बड़ा कारण

डॉ. आलोक के मुताबिक, वट वृक्षों के 70 फीसद गायब होने का ही कारण है कि अब शहरों में पक्षी नहीं दिखते। तितलियों तमाम तरह के कीड़ों में भी काफी कमी आई है जो इको सिस्टम को सामान्य रखने के लिए बेहद जरूरी हैं। आश्रित रहती थीं।

समय लगता है लेकिन फायदे ज्यादा

डॉ. खरे के मुताबिक, भले ही बरगद, पीपल जैसे वट वृक्ष को पूरी तरह से तैयार होने में 20 से 25 वर्ष लगते हैं लेकिन एक बार तैयार होने के बाद लंबे समय तक इसका काफी बेहतर प्रभाव देखने को मिलेगा। पेड़ लगने के पांच से दस साल में ही इसके प्रभाव शुरू हो जाते हैं।  


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.