1945 में बरेली कॉलेज में हुई थी 110 दिन की हड़ताल
बरेली, अखिल सक्सेना: आजादी की लड़ाई में बरेली का भी अहम योगदान रहा है। आज भी स्वतंत्रता संग्राम की तम
बरेली, अखिल सक्सेना: आजादी की लड़ाई में बरेली का भी अहम योगदान रहा है। आज भी स्वतंत्रता संग्राम की तमाम निशानियां यहां मौजूद हैं। इन्हीं में से एक है बरेली कॉलेज की इमारत। इसके सीने में जंग-ए-आजादी की तमाम कहानियां दफन है। यहां के छात्रों के साथ शिक्षकों ने भी अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आंदोलन का बिगुल फूंका था। कॉलेज में ब्रिटिश हुकूमत के दौरान छात्र हित में सबसे बड़ी 110 दिन की हड़ताल हुई थी। इस दौरान छात्रों की पढ़ाई प्रभावित न हो, इसके लिए सीनियर छात्रों ने जूनियरों को जुबली पार्क में पढ़ाना शुरू किया, लेकिन लड़ाई भी जारी रखी। नतीजा, हड़ताल वापस हुई और छह छात्रों का निलंबन वापस लिया गया। बरेली कॉलेज के पूर्व प्राचार्य और शिक्षकों ने स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर दैनिक जागरण से अपने संस्मरण साझा किए। आजाद हिद फौज की मदद से नाराज हो गए थे कमिश्नर
मैंने 1968 में बतौर लेक्चरर बरेली कॉलेज ज्वाइन किया था। यहां के इतिहास के बारे में सुन रखा था। कॉलेज में 1939 के बाद छात्र संघ चुनाव नहीं हुआ था। 1943 में छात्र कृपा नंदन ने आवाज उठाई तो चुनाव कराए गए। जिसके बाद वह छात्र यूनियन के अध्यक्ष चुने गए। 1944 में अब्दुल फहीम अध्यक्ष चुने गए। 11 दिसंबर 1944 को यूनियन ने अपना वार्षिकोत्सव मनाया। उसमें कहा कि छात्र संघ के पैसे आजाद हिद फौज के सैनिकों के लिए भेज दिया जाए। जिससे कमिश्नर नेदर सोल नाराज हो गए थे। उनकी नाराजगी की वजह से प्रिसिपल मदन मोहन ने इस्तीफा दे दिया था। यह बात छात्र यूनियन को खराब लगी और उन्होंने 19 अक्टूबर 1945 से 9 फरवरी 1946 तक हड़ताल कर दी। इस बीच छह छात्रों को निष्कासित कर दिया गया। हड़ताल के दौरान गोविद वल्लभ पंत, पं. जवाहर लाल नेहरू और रफीक अहमद किदवई ने हस्तक्षेप किया और निष्कासन और हड़ताल दोनों वापस हुई। आजादी के बाद हुए पहले यूनियन चुनाव में मजहर उल्ला खां पहले अध्यक्ष चुने गए थे।
डॉ. एनएल शर्मा, पूर्व प्राचार्य, बरेली कॉलेज कॉलेज में थे 1700 छात्र
1941 में पीलीभीत में पैदा हुआ। तब अंग्रेजी हुकूमत थी। थोड़ा बड़ा हुआ तो देखा लोगों में भय की स्थिति थी। 1947 में आजादी मिलते ही डर की जगह उनमें जोश भर गया। 1959 में मैंने बरेली कॉलेज में एमए अंग्रेजी में दाखिला लिया था। कॉलेज में पहले अंग्रेज प्रिसिपल हुआ करते थे। जब यहां आया तो 1700 छात्र थे। कॉलेज आगरा विश्वविद्यालय से संबद्ध था। हर विषय के लिए एक एसोसिएशन होती थी, जो छात्रों की समस्याओं का निस्तारण करती थी। 26 जनवरी हो या 15 अगस्त, ऑडिटोरियम के सामने वाले मैदान में ध्वजारोहण होता था। देश की आजादी में कॉलेज के क्रांतिकारियों ने अहम भूमिका निभाई है। सौभाग्य रहा कि 1972 में इस कॉलेज में बतौर लेक्चरर बनकर आया और 2001 में सेवानिवृत्त हुआ।
डॉ. महेश चंद्र सोंधी, पूर्व विभागाध्यक्ष, समाजशास्त्र विभाग, बरेली मदर टेरेसा से मिलने की थी होड़
इस कॉलेज की स्थापना 1837 में ब्रिटिश हुकूमत के दौरान हुई थी। देश को आजादी मिली तो मैं 10 साल का था। किला स्थित तिलक इंटर कॉलेज में पढ़ता था। 15 अगस्त 1947 को आजादी के बाद जुलूस निकला था। मिठाई बंटी थी। हाथ में झंडा लेकर हम सब उत्साह मना रहे थे। बड़ा हुआ तो वर्ष 1955 में बरेली कॉलेज में बीए में दाखिला लिया। एमए भी यहीं से किया। एक बार जब मदर टेरेसा आईं तो कॉलेज के हॉकी स्टेडियम में उनके स्वागत को लेकर होड़ लग गई। उनसे मिलना हमारे के लिए सौभाग्य की बात थी। 1968 में बरेली कॉलेज में मैं राजनीति शास्त्र विभाग में प्रोफेसर बनकर आ गया था। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने वाले और अपने कार्य व निष्ठा के कारण सीमांत गांधी के नाम से मशहूर खान अब्दुल गफ्फार खान से भी मिलने का मौका मिला।
प्रो. जेएन मेहरोत्रा, सेवानिवृत्त प्रोफेसर, बरेली कॉलेज