गुरु मां से मिली प्रेरणा कथक और गायन में मिला मुकाम
कथक और गायन में नाम कमाने वाले तान्या भारद्वाज अपनी मां को ही गुरु मानती हैं।
बाराबंकी : कथक और गायन में नाम कमाने वाले तान्या भारद्वाज अपनी मां को ही गुरु मानती हैं। यह कोई संस्थान में रहकर गायन और कथक नहीं सीखा बल्कि मां की शिष्या बनकर हर कठिनाई को आसान बनाती चली गई। अब वह भातखंडे की छात्रा हैं।
शहर के सत्यप्रेमी नगर की रहने वाली तान्या भारद्वाज की मां किरन भारद्वाज प्रसिद्ध गीतकार हैं। मां की अनुगामी बनकर तान्या ने कथक और गायन में कदम रखा। अपनी पांच वर्ष की आयु में ही कथक और गायन सीखने लगी थी। गोरखपुर में भव्य दुर्गा महोत्सव में अपनी प्रस्तुति दी। इसके बाद वह देवा-महादेवा में अपनी प्रस्तुति देकर अपनी गुरु मां का नाम रोशन किया। 19 वर्ष की आयु में उसने कथक और गायन तो सीख लिया लेकिन प्रमाण पत्र नहीं मिला, इसके लिए उसने भातखंडे संगीत नाट्य एकेडमी से कथक सीख रही है। तान्या बताती है कि गुरु मां के बाद नीता जोशी का बहुत सहयोग मिला। अब इन्हें गुरू मानकर शिक्षा हासिल कर रही हूं।
गुरू से बढ़कर कोई नहीं: शौर्य चक्र विजेता विक्रम बहादुर सिंह जब भी आते हैं तो मास्टर बाल गोविद से जरूर मिलते हैं। सेना में शौर्य चक्र का सम्मान हासिल करने वाले जिले के बीरापुर गांव निवासी मेजर विक्रम बहादुर सिंह ने वर्ष 2011 में पांच आंतकियों को मारा था। इसके लिए इन्हें शौर्य चक्र दिया गया था। मौजूदा समय में यह मुंबई में सेना की आपूर्ति डिपो कमांड के अधिकारी हैं। ये जिले में जब भी आते है अपने घर के अलावा शहर के गुलरिया गार्दा स्थित डीएवी स्कूल में अपने गुरू बाल गोविद से मिलने जरूर आते हैं। बाल गोविद अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं। विक्रम बहादुर बताते हैं कि मेरे गुरू घर से खाना भिजवाते। मुझे इस मुकाम तक पहुंचाने में बड़ा श्रेय रहा।