बाराबंकी के 79 शिक्षकों की शैक्षिक पत्रावलियां खंगाल रही एसआइटी
35 शिक्षक हो चुके हैं फरार 44 शिक्षकों की चल रही है जांच 18 शिक्षक हो चुके हैं बर्खास्त
बाराबंकी : फर्जी शिक्षकों का जाल फैला हुआ है। यहां अधिकांश शिक्षक उत्तमा, मध्यमा, प्रोविजनल डिग्री के तहत नौकरी कर रहे हैं। जो ज्यादातर शिक्षक फर्जी हैं। अब इनकी जांच स्पेशल इन्वेस्टीगेशन टीम (एसआइटी) को सौंपी गई है। 79 शिक्षकों की सूची एसआइटी को मिल चुकी है, इसके आधार पर शैक्षिक पत्रावलियां खंगाली जा रही हैं। जिले में अभी तक 44 शिक्षक ही हैं कार्यरत हैं, जबकि 35 फरार हो चुके हैं।
शासन से नामित 18 सदस्यीय टीम शिक्षकों के फर्जीवाड़े की जांच कर रही है। वहीं एसआइटी को भी 79 शिक्षकों के फर्जीवाड़े की जांच मिली है, जिसकी पत्रावलियां खंगाली जा रहीं हैं। जिले में कार्यरत 44 शिक्षकों के जरिए फर्जीवाड़े के तार खंगाले जा रहे हैं, जहां से फर्जी डिग्री बनवाकर शिक्षक की नौकरी दिलाई जा रही है। जांच के दौरान 35 शिक्षक फरार भी हो चुके हैं। जांच टीम शिक्षकों के मूल पते पर इसलिए नहीं पहुंच पा रही है कि डिग्री और अंकपत्र व प्रमाण पत्र दूसरे के हैं, जो कहीं न कहीं शिक्षक की नौकरी कर रहे हैं। नकली शिक्षकों को पकड़ पाना भी अब आसान नहीं हैं। एसआइटी अब शिक्षकों के मोबाइल फोन के जरिए उनका पता लगाने में लगी है। उम्मीद जताई जा रही है सर्विलांस के जरिए जल्द ही पकड़े जा सकते हैं।
24 से अधिक शिक्षकों के वेतन खाते सीज : जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी वीपी सिंह लगातार फर्जी शिक्षकों के पकड़े जाने का मुहिम जारी रखे हैं। जब से जिले में तैनाती हुई है, तब से 18 शिक्षकों को बर्खास्त किया है, जबकि एक दर्जन से अधिक शिक्षकों को संदिग्ध मानते हुए नोटिस दी है। बीएसए ने बताया कि अब तक नवनीता, रविशंकर त्रिपाठी, आशुतोष कुमार, जयकृष्ण दूबे, सुरेंद्र नाथ, अभिषेक त्रिपाठी, शशिकांत मिश्रा, अतुल सिंह, रजत सिंह, मौसमी सिंह, यतींद्र, प्रमोद सिंह, अर्चना पांडे सहित 24 शिक्षक हैं, जिनका वेतन खाता सीजकर रिकवरी के आदेश दिए हैं। लगभग दस करोड़ से अधिक वेतन वसूला जाना है।
सत्यापन में भी हेराफेरी : रविशंकर और जयकृष्ण दूबे को एसटीएफ ने पकड़ा था। अब यह जेल में हैं। पुलिस भी शिक्षकों की जांच कर रही है। इसमें आशुतोष दूबे का सत्यापन प्राचार्य डॉयट रामनगर गणेशपुर से हुआ। यहां से एक पत्र वाराणसी भेजकर बीएचयू से आशुतोष की डिग्री सत्यापित कराने का दावा किया गया, लेकिन यह पत्र सिर्फ रजिस्ट्री तक ही सीमित रही, वहां कोई भी पत्र पहुंचा ही नहीं। अब पुलिस अधिकारियों की इस कार्यशैली की भी जांच शुरू कर दी है कि आखिर अधिकारी इस तरह से क्यों सत्यापन कराते हैं।