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'दान मांगने वाला नहीं तय करता दान की राशि'

रिशु गुप्ता, हथौंधा, बाराबंकी: रामसनेहीघाट के हथौंधा स्टेट का जुड़ाव बनारस ¨हदू यूनि

By JagranEdited By: Published: Sun, 11 Nov 2018 11:40 PM (IST)Updated: Sun, 11 Nov 2018 11:40 PM (IST)
'दान मांगने वाला नहीं तय करता दान की राशि'
'दान मांगने वाला नहीं तय करता दान की राशि'

रिशु गुप्ता, हथौंधा, बाराबंकी:

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रामसनेहीघाट के हथौंधा स्टेट का जुड़ाव बनारस ¨हदू यूनिवर्सिटी एवं उसके संस्थापक महामना पं. मदन मोहन मालवीय से दशकों पुराना है। आज भी लोग मालवीय जी के आगमन को भुला नहीं सके हैं। राजा एवं रानी की मृत्यु के बाद भी उनका चन्द्रहास भवन आज भी महामना की यादों को संजोए हुए है।

आज महामना मदन मोहन मालवीय की पुण्यतिथि है। आज के ही दिन 1946 में उनका देहावसान हुआ था। सूरजपुर स्टेट से जुड़ा चन्द्रहास भवन कोटवा सड़क से मिला हुआ हथौंधा ग्राम पंचायत से जुड़ा हुआ है। यहां एकमात्र वारिस बची महारानी शांतीदेवी की पिछले दिनों हो मृत्यु हो चुकी है। इस स्टेट के राजा स्व. पृथ्वीपाल ¨सह शिक्षा प्रेमी थे। इसीलिए उन्होंने अपने राज्य में अनिवार्य शिक्षा कानून लगा रखा था। उनके जमाने के बने विद्यालय के भवन आज भी जीर्णशीर्ण दशा में मौजूद हैं। शिक्षा प्रेमी होने के नाते जब बनारस में महामना ने ¨हदू यूनिवर्सिटी की स्थापना के समय उनसे सहयोग लेने के लिए दरबार में हाजिर हुए थे। गांव के बुजुर्गों के मुताबिक यह बात 1914-15 के आसपास की है। जब मालवीय हथौंधा आए थे और यहां के तत्कालीन अंतिम राजा पृथ्वीपाल ¨सह से मिलकर यूनिवर्सिटी निर्माण में सहयोग देने का निवेदन किया था। राज दरबार में पंडित जी राजा से मिले थे। इस दौरान उनसे जब दान की राशि के बावत पूछा तो राजा ने जवाब दिया था कि दान मांगने वाला दान की धनराशि नहीं तय करता है। उन्होंने कहा था कि धनराशि निर्धारण करने का कार्य दान देने वाला अपनी हैसियत के अनुसार करता है। मालवीय जी के ऐसा कहने के बाद राजा साहब चुप होकर पंडित जी की तरफ गौर से देखने लगे और मंत्री को आदेश दिया कि आज खजाने में जितनी धनराशि जमा हुई हो उसे दान दे दो। इसके बाद राजकोष में आई उस दिन की समस्त धनराशि राजा ने उन्हें दान दे दी थी।

श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं लोग : गांव के पूर्व प्रधान रसीद अहमद कहते हैं कि हम लोगो का सौभाग्य है कि पं. जी गांव विश्व विद्यालय के निर्माण के समय यहां पर आए थे। कमलेश वर्मा कहते हैं कि बुजुर्गों से सुना है कि पंडित जी हमारे राजा साहब के यहां विश्व विद्यालय निर्माण के लिये सहयोग मांगने आए थे। पूर्व प्रमुख प्रमुख चंद्रशेखर वर्मा का कहना है कि हमारे राजा साहब शिक्षा प्रेमी थे। इसीलिए जब पंडित जी उनके पास शिक्षा विस्तार करने के ²ष्टि से आये तो उन्होंने दिल खोल कर दान दिया था।


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