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आजादी की लड़ाई में यहां दिखी सर्वधर्म समभाव की ताकत

बाराबंकी जिले के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने सर्वधर्म समभाव की ताकत से आजादी की लड़ाई जीतने में अपना अहम योगदान दिया।

By JagranEdited By: Published: Sat, 10 Aug 2019 12:11 AM (IST)Updated: Sat, 10 Aug 2019 12:11 AM (IST)
आजादी की लड़ाई में यहां दिखी सर्वधर्म समभाव की ताकत
आजादी की लड़ाई में यहां दिखी सर्वधर्म समभाव की ताकत

प्रेम अवस्थी, बाराबंकी

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आजादी की लड़ाई में जिले के सभी धर्मों से ताल्लुकरखने वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने अपना अहम योगदान दिया। खिलाफत आंदोलन में जिला एक प्रमुख केंद्र-बिदु रहा।

रफी रफी अहमद किदवई, बाबू सत्यप्रेमी, कृष्णानंद खरे, फकीर शाह, गुलाम रसूल और सईद मोहम्मद मक्की जैसे क्रांतिकारियों ने खिलाफत आंदोलन को जिले का प्रमुख केंद्र बनाया। असहयोग आंदोलन का गांधी जी ने नारा लगाया तो जिले में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और खिलाफत कमेटी की शाखाएं संगठित हुईं। कुछ समय तक दोनों संगठनों ने एक साथ काम किया। बहुत से नौजवान कांग्रेस के वालंटियर बने। बड़ी-बड़ी सभाओं के जरिए विदेशी शासन और विदेशी वस्त्रों के विरुद्ध वातावरण तैयार करने का भरपूर प्रयास किया। शराब एवं विदेशी वस्त्रों की दुकानों पर धरने भी दिए गए। महिलाओं की भी एक वालंटियर कोर संगठित की गई। आंदोलन के बढ़ते जोर को देखकर वालंटियर संगठन को अवैध घोषित कर दिया। इससे आंदोलन पहले से भी और तेज हो गया। इस सिलसिले में गिरफ्तार किए गए लोगों में रफी अहमद किदवई भी थे। आंदोलन में उनकी सक्रिय भागीदारी रही। सात जनवरी से लेकर 17 जनवरी 1922 तक नवाबगंज में घंटाघर के पास बड़ी-बड़ी सभाएं आयोजित की गईं। इस पर अंग्रेजी सरकार ने 18 जनवरी 1922 को किदवई को गिरफ्तार कर एक वर्ष की कैद की सजा सुनाई थी। इससे खिलाफत के स्वयंसेवकों ने उग्र प्रदर्शन किया। आंदोलन से संबंधित स्थानीय महत्व की दो घटनाएं उल्लेखनीय रहीं। इसमें बरौली के फकीर शाह गुलाम रसूल ने यह घोषणा कर दी कि उन्हें ईश्वरीय संदेश मिला है कि इस्लाम के खलीफा शीघ्र ही दुनिया के शासक हो जाएंगे। इसलिए अंग्रेजों के खिलाफ सभी एकजुट होकर लड़ाई लड़ेंगे। ऐसे भाषण देने पर उन्हें 21 नवंबर 1921 को गिरफ्तार कर लिया गया। दूसरी घटना सईद मोहम्मद मक्की नामक नवयुवक की है। मक्की ने लखनऊ जाते वक्त रुदौली की जामा मस्जिद में सात जुलाई 1922 को धर्मस्थलों को नष्ट करने वाले अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध छेड़ने की प्रेरणा दी। 1930 में लगानबंदी के खिलाफ सविनय अवज्ञा आंदोलन की कमान तत्कालीन कांग्रेस के जिलाध्यक्ष बाबू कृष्णानंद खरे और मंत्री हरप्रसाद मिश्र सत्यप्रेमी ने आंदोलन की कमान संभाली। भयारा गांव में लोगों की पिटाई से सत्यप्रेमी के बेहोश होने पर जिले में धारा 144 लागू कर दी गई। लगानबंदी के खिलाफ भाषण देने पर रफी अहमद किदवई को 23 जनवरी 1932 को गिरफ्तार कर लिया गया।

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