बाढ़ के साथ वादे भी बह गए
बाराबंकी साल दर साल आने वाली भयंकर बाढ़ से लोगों को राहत नहीं मिल सकी है। माननीयों के वादे भी बाढ़ के पानी में बह गए।
बाराबंकी : एक ओर घाघरा की साल दर साल आने वाली बाढ़ का सिलसिला तो दूसरी ओर पीड़ितों की सब कुछ गंवा देने के बाद की कराह। यह नदी के दो किनारों जैसी ही है। यह बड़ा मुद्दा हर साल बारिश के दिनों में आमजन मानस से लेकर शासन-प्रशासन के सामने सुरसा की तरह मुंह बाये खड़ी है। सियासी दलों की ओर से आरोप-प्रत्यारोप भी लगाए जाते हैं। लेकिन, इससे निजात दिलाने के वादे बाढ़ में ही बह जाते हैं। जबकि, बाढ़ की विभीषिका से जिला ही नहीं सीतापुर, बहराइच और गोंडा के सैकड़ों गांव तबाह हैं। इस बार तो यह मुद्दा चुनावी भी नहीं रहा है।
वर्ष 2006 में चरसड़ी तटबंध बना तो बाढ़ का खतरा कुछ कम हुआ पर कटान और ज्यादा होने लगी। यहां तक कई बार तटबंध भी कटा और बाढ़ हर साल आती रही। हालांकि 2017 में ड्रेनेज सिस्टम से सनावा से करीब आठ किमी तक घाघरा की सिल्ट सफाई कराई गई तो तबाही से कुछ राहत भी मिली। घाघरा नदी की बाढ़ को नियंत्रित करने के लिए एल्गिनब्रिज-चरसड़ी तटबंध के निर्माण में अनियमितता भी चुनावों का मुद्दा रही है। नदी के बहाव का वास्तविक आंकलन किए बिना जल्दबाजी में बनाया गया तटबंध नेताओं के नजदीकी ठेकेदारों की कमाई का जरिया भी साबित हुआ है। तटबंध की मरम्मत के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च होते रहे हैं, लेकिन समस्या जस की तस है। मांझा रायपुर, परसावल, कमियार व बांसगांव के पास तटबंध कई बार कट चुका है। बांस गांव में पिछले साल तटबंध कटने से पांच हजार की आबादी प्रभावित हुई थी। जबकि परसावल के निकट गोंडा जिले के नकहरा के पास पिछले दो साल से तटबंध कट रहा है। करीब एक हजार किसान ऐसे हैं, जिनकी जमीन नदी में कटने से वह कागजी जमींदार हैं। रामनगर तहसील का अकौना व कोड़री गांव वर्ष 2008 में बाढ़ में नदी में कट गया। इस गांव के करीब डेढ़ सौ परिवार दूसरे गांवों में झोपड़ी बनाकर रह रहे हैं। जबकि पिछले साल बाढ़ में कटे कचनापुर गांव के 66 परिवारों को पड़ोस के गांव में आवासीय जमीन का पट्टा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के प्रयास से मिला है। जमीन पर पक्के आवास का इंतजार है। बाढ़ में आठ से 10 करोड़ रुपये की फसलों का नुकसान होता है। कागजी जमींदार है बाढ़ पीड़ित : बांस गांव के अवध बिहारी द्विवेदी ने बताया कि उनकी 75 बीघा कृषि योग्य भूमि सहित मकान भी नदी में कट गया। अब कागजी जमींदार हैं। सरकारी योजना का लाभ भी नहीं मिल रहा। इसी गांव के उमेश सिंह की 40 बीघा जमीन कटी है। उमेश का कहना है कि सरकार को जमीन के बदले जमीन देना चाहिए। अतरौली गांव निवासी राकेश सिंह ने बताया कि उनकी 30 बीघा जमीन नदी में कट चुकी है। सरकार की ओर से कोई मुआवजा भी नहीं मिला, इस बार यह चुनावी मुद्दा भी नहीं बना है।
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फैक्ट फाइल :
-घाघरा की बाढ़ से प्रभावित-100 गांव
-बाढ़ पीड़ितों की आबादी करीब डेढ़ लाख
-प्रति वर्ष खर्च होते हैं तटबंध मरम्मत पर करीब सात-आठ करोड़ रुपये
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कब कहां-कटा बांध
2009 -मांझारायपुर
2012 व 2014-परसावल
2017-मांझारायपुर के पास नकहरा व बांसगांव के पास