..हां ऐसे भी होते हैं गांव
..हां ऐसे भी होते हैं गांव..हां ऐसे भी होते हैं गांव..हां ऐसे भी होते हैं गांव..हां ऐसे भी होते हैं गांव..हां ऐसे भी होते हैं गांव..हां ऐसे भी होते हैं गांव
जगदीप शुक्ल, बाराबंकी
इकतीस दिसंबर यानी साल का अंतिम दिन। शाम करीब पांच बजे ग्राम पंचायत चंदवारा में करीब 60 यात्रियों से भरी दो टूरिस्ट बस आकर रुकती हैं। इनमें उतरते हैं देश के विभिन्न हिस्सों के रहने वाले छात्र-छात्राएं। यह किसी प्रशिक्षण पर नहीं, बल्कि एक टूर पर आए हैं। टूर पर किसी महानगर या शहरी इलाके में न जाकर एक गांव का शायद आपको आश्चर्य हुआ होगा। लेकिन छात्रों का यह दल ग्रामीण विकास का सच जानने यहां पहुंचा है। उत्सुकता इतनी कि रात में ही बिजली की रोशनी में पूरे गांव की तस्वीर देख लेना चाहते हैं। स्कूल के गेट पर लगीं हरी झाड़ियां देखकर वे बोल पड़े सरकारी स्कूल भी ऐसे होते हैं। सुबह होते ही दल में शामिल छात्र-छात्राएं अलग-अलग टुकड़ियों में गांव की सैर पर निकल पड़ती हैं। सीसीरोड, नालियां, शौचालय और जल निकासी के लिए बनाए गए नाले देखकर रुचि बोल पड़ी वाह गांव भी ऐसे होते हैं। करीब साढ़े सात बजे तक सफाई कर्मी भी झाड़ू लिए पहुंच जाते हैं। दल के सदस्यों ने गांव में सीसी रोड के निर्माण में श्रमदान भी किया। इन प्रदेशों से आए हैं छात्र-छात्राएं
देशपांडे फाउंडेशन के बैनर तले आए दल में यूपी के अलावा तेलंगाना, दिल्ली, झारखंड, बिहार, कर्नाटक, पंजाब, महाराष्ट्र आदि प्रदेशों के छात्र-छात्राएं शामिल हैं। फाउंडेशन के वाहनों पर चंदवारा विकास की ओर का लोगो भी बना है। कलाकृतियों से उकेरी विकास की तस्वीर
-छात्र-छात्राओं ने आंबेडकर पार्क की दीवारों पर कूची और पेंट से कलाकृतियां भी उकेरीं। उगते हुए सूरज के नीचे चंदवारा विकास की ओर लिखकर नए वर्ष की शुरुआत की। विनुता, विशाल, समृद्धि और मनीषा ने गांव के विकास की सीनरी, उत्कर्ष, केतकी, दिव्यम, स्वर्णिम और वैभव ने विभिन्न रंग के हाथ बनाकर यूनिटी का संदेश दिया। पीयूष, दीप्ति पांडेय और स्वस्तिका ने नो वॉटर नो लाइफ से जल के महत्व को रेखांकित किया। शहर के बजाय दल का गांव सैर पर आना हमें विकास के लिए और प्रोत्साहित करेगा। इस साल कुछ और खास करेंगे ताकि हमारा गांव शहर से कदमताल कर सके।
-प्रकाशिनी जायसवाल, प्रधान, चंदवारा।