नमो देव्यै महा देव्यै : बच्चों को किताबी, अभिभावकों को पढ़ाया तकनीकी पाठ
शिक्षा है अनमोल रतन पढ़ने का कुछ करो जतन स्कूल चलो अभियान के दौरान गूंजने वाला यह स्लोगन कोरोना काल में कारगर साबित हुआ। यह अभिभावकों ही नहीं शिक्षकों की भी प्रेरणा बना।
बाराबंकी : 'शिक्षा है अनमोल रतन, पढ़ने का कुछ करो जतन' स्कूल चलो अभियान के दौरान गूंजने वाला यह स्लोगन कोरोना काल में कारगर साबित हुआ। यह अभिभावकों ही नहीं शिक्षकों की भी प्रेरणा बना। लाकडाउन में स्कूल-कालेज बंद होने पर प्राथमिक विद्यालय बड़ेल-प्रथम(अब उच्च प्राथमिक विद्यालय) की शिक्षिका दीपिका सिंह ने इसी स्लोगन को मूलमंत्र माना और अभिभावकों को तकनीक के प्रति जागरूक कर बच्चों की पढ़ाई को जारी रखा। पड़ोसियों के मोबाइल से बच्चों ने की पढ़ाई:
दीपिका बताती है कि कोरोना काल में परिषदीय स्कूलों के बच्चों की पढ़ाई जारी रखना सबसे बड़ी चुनौती थी। इनमें से ज्यादातर अभिभावकों के एंड्रायड फोन नहीं थे और जिनके पास थे भी तकनीकी रूप से दक्ष नहीं थी। इसके लिए उनके अभिभावकों से फोन पर संपर्क कर उन्हें वाट्सएप संचालन की जानकारी दी। इसके बाद अलग-अलग कक्षाओं के ग्रुप बनाकर उसमें अभिभावकों को जोड़ा। अभिभावकों के नंबर उपलब्ध कराने में विद्यालय के प्रभारी प्रधानाध्यापक वेद प्रकाश श्रीवास्तव ने अहम भूमिका निभाई। कई बच्चों के अभिभावकों के पास एंड्रायड मोबाइल नहीं थे उन बच्चों ने आसपास के बच्चों के मोबाइल पर भेजी गई सामग्री से पढ़ाई की। पाठ्य सामग्री और वीडियो अपलोड कर जारी रखी पढ़ाई
दीपिका बताती हैं कि बच्चों की पढ़ाई को जारी रखने के लिए पाठ्य सामग्री को कागज पर तैयार वाट्सएप ग्रुप अपलोड किया। इसके अलावा उन्हें विषय वस्तु को बेहतर ढंग से समझाने के लिए वीडियो बनाकर अपलोड किए। इसके लिए अलग-अलग कक्षाओं के ग्रुप बनाए। उस दौरान करीब 252 बच्चे पंजीकृत थे। प्रत्येक ग्रुप में करीब चालीस बच्चे जुड़े थे। कार्य करने के बाद बच्चे अपना होम वर्क उसी ग्रुप पर अपलोड करते थे, जिसे चेक करने के साथ ही गलत होने पर बच्चे को फोन करके समझाया जाता था।