बाजार खुले, जायरीन भी आए, पर नहीं बढ़ी बिक्री
दरगाह को जाने वाली सड़क सहित पूरे कस्बे के बाजार खुलने से दुकानें भी लगती है और जायरीन भी हाजी वारिस अली शाह के दरबार में मत्था टेकने के लिए पहुंच रहे हैं।
बाराबंकी : दरगाह को जाने वाली सड़क सहित पूरे कस्बे के बाजार खुलने से दुकानें भी लगती है और जायरीन भी हाजी वारिस अली शाह के दरबार में मत्था टेकने के लिए पहुंच रहे हैं। लेकिन, कोविड-19 के चलते मजार पर शिरीनी, चादर, फूल चढ़ाने की पाबंदी से कारोबार को गति नहीं मिल पा रही है। करीब सात माह से कारोबार को गति न मिलने से कारोबारियों के सामने रोजी-रोटी का संकट है।
आर्थिक तंगी से गुजर रहे दुकानदार : दुकानदार रेहान वारसी बताते हैं कि पहले तीन से चार हजार की बिक्री हो जाती थी। अब तीन-चार सौ की बिक्री होती है। जुनेद वारसी कहते है कि पहले दस से 12 लोगों के परिवार का खर्च आसानी से चल जाता था। आज घर के जरूरी खर्चे भी नहीं ला पा रहे हैं। राजेश कहते हैं कि विकल्प के तौर पर रेवड़ी और अन्य सामान भी रखा, पर बिक्री नहीं बढ़ रही है। सोनू वारसी, अनवर वारसी, बंटे वारसी, संतोष जायसवाल जैसे काफी दुकानदार पाबंदियों के चलते आर्थिक रूप से टूट चुके हैं। इनका कहना है कि पाबंदी में राहत या आर्थिक सहायता न मिली तो भविष्य में काफी दिक्कतें खड़ी हो जाएंगी।
फूल का व्यवसाय चौपट : मजार पर फूल चढ़ने की पाबंदी से फूल उत्पादक किसान भी बेहाल हैं। मोहम्मदपुर निवासी गया प्रसाद मौर्य का करीब एक से दो क्विंटल फूल प्रतिदिन मजार पर जाता था। जो कई महीनों से बंद है, जिससे पुष्प उत्पादक किसान भी बेहाल हैं। कई अन्य किसान भी अपनी चौपट खेती से परेशान हैं।