रेल बजट में जिले को मिली सिर्फ निराशा
- सिर्फ घोषणा तक सीमित रह गई परियोजनाएं संवादसूत्र, बाराबंकी : जिलेवासियों को इस बार भी क
- सिर्फ घोषणा तक सीमित रह गई परियोजनाएं
संवादसूत्र, बाराबंकी : जिलेवासियों को इस बार भी केंद्र सरकार के रेल बजट से निराशा हाथ लगी है। जिले के तराई क्षेत्र से लेकर नेपाल तक जोड़ने वाले बुढ़वल- बहराइच रेलमार्ग की मांग अर्से से बाराबंकी सहित दर्जन भर जिलों की लंबित है। इसके अलावा बहुप्रतीक्षित गनेशपुर रेलमार्ग के शुरू होने की घोषणा पर अमल नहीं हो पाया। फैजाबाद रेलमार्ग के दोहरीकरण के मामले में भी स्थिति अभी तक स्पष्ट नहीं हो सकी है। वहीं तत्कालीन रेल मंत्री पवन कुमार बंसल ने पयर्टन स्थल देवा और लोधेश्वर महादेवा तीर्थ को रेल मार्ग से जोड़ने का मसौदा रेल बजट वर्ष 2010-11 में पास किया गया था। इस परियोजना पर भी बजट में अमल नहीं किया गया।
लोग निराश: प्रदेश की राजधानी से सटे बाराबंकी जिला एक ऐसा जिला है जहां से तीन रेलवे लाइन जुड़ती है। जिला मुख्यालय से प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र को जोड़ने वाली फैजाबाद रेलमार्ग के दोहरीकरण पर स्थिति स्पष्ट न होने से लोग निराश है। दैनिक रेलयात्री राजीव सिन्हा कहते है कि बाराबंकी से फैजाबाद के मध्य रेलवे लाइन के दोहरीकरण व बिजलीकरण के कार्य कराए जाने की घोषणा की गई थी। मगर यह सब कागजों तक ही सीमित रह गया।
गोंडा से लखनऊ मेमू का इंतजार : बहुप्रतीक्षित गोंडा से वाया बाराबंकी, लखनऊ व कानपुर के लिए जाने वाले
मेमू ट्रेन के संचालन का इंतजार भी लंबा होता जा रहा है। बजट में इसके संचालन का कोई जिक्र नहीं किया गया।
फुट ओवर ब्रिज बनने की आस अधूरी: रेलवे स्टेशन पर चार प्लेटफार्म है। लेकिन इन प्लेटफार्म पर जाने के लिए रेल की ओर से निर्धारित फुट ओवरब्रिज नहीं है। पार्सल लाने व जाने वाले सकरे ओवरब्रिज से यात्रियों का आवागमन होता है। इस पर भी कोई अमल नहीं हो सका।
सवा सौ ट्रेनों का होता है आवागमन : उत्तर रेलवे के पूर्वांचल रेलवे ट्रैक पर प्रतिदिन सवा सौ से अधिक ट्रेनों का आवागमन होता है। अति व्यस्ततम रेलरूट में शामिल यह रेल पथ आजादी के पहले का है। इस रेलपथ पर ट्रेनों की संख्या हर साल बढ़ रही है। जबकि नवीन रेलवे लाइनों के बिछाने का क्रम ट्रेनों के दवाब की तुलना में बहुत कम है। बीते करीब पांच वर्ष से इस रेलवे ट्रैक पर फ्रैक्चर क्रम हर साल बढ़ता जा रहा है। रेल ट्रैक पर अस्थाई वे¨ल्डग कर प्लेट बांधकर रेलवे ट्रैक पर ट्रेनों का संचालन करवाया जा रहा है।
बदहाली की तस्वीर सफेदाबाद रेलवे स्टेशन: स्टेशन रेलवे स्टेशन बदहाल है। यहां पर पेयजल व्यवस्था धड़ाम हो गई है। बगैर बल्ब के खम्भे यहां की पहचान बन गए है। यात्रियों के बैठने के लिए लगाई गई बेंच मात्र शो पीस बनकर रह गई है। यात्री प्रतीक्षालय से लेकर कर्मचारी आवास तक का जर्जर भवन जमीदोज होने की कगार पर खड़ा है।
दुश्वारियां अधिक : दो जिलों को जोड़ने वाला दरियाबाद रेलवे स्टेशन पर मूलभूत सुविधाएं मयस्सर नहीं है। रेलवे स्टेशन पर आने वाले यात्रियों को तमाम दुश्वारियां झेलनी पड़ रही है। यहां पर साफ सफाई सिर्फ कागजों में हैं। पेयजल के लिए पानी की टंकियां कबाड़ हो चुकी हैं, शौचालय जर्जर हालात में हैं। लेकिन सरकार का ध्यान इस तरफ नही गया है।
सुविधाओं का टोटा
त्रिवेदीगंज: लखनऊ सुल्तानपुर रेलखंड पर स्थित छन्दरौली स्टेशन पर यात्री सुविधाओं का टोटा है। यहां पर यात्रियों के लिए बने प्रसाधन जर्जर हो गये हैं। जो इस्तेमाल लायक नहीं हैं। जिससे यात्रियों खासकर महिलाओं को समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।
परियोजना मात्र घोषणा बनी विशुनपुर: केंद्र सरकार के आम रेल बजट में बहुप्रतीक्षित देवा महादेवा रेलवे परियोजना का उल्लेख न होने से लोगों को फिर निराशा हाथ लगी है। नई रेलवे लाइन के लिए सर्वेक्षण भी किया गया, लेकिन तब से आज तक यह परियोजना अधर में लटकी है। उम्मीद यह जतायी जा रही थी कि जिले के यह दोनों पर्यटन स्थलों को अब मोदी सरकार में रेलवे लाइन की सौगात मिल जाएगी।