विकास के नाम पर खाली है देवा की झोली
बाराबंकी : जिस दर पर मुरादें मांगने देश विदेश के लाखों जायरीन और विशिष्ट लोग आते हैं,
बाराबंकी : जिस दर पर मुरादें मांगने देश विदेश के लाखों जायरीन और विशिष्ट लोग आते हैं, उस सूफी संत की नगरी आज भी कई मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रही है। सरकारी घोषणाओं और पर्यटन के नक्शे पर आने के बावजूद भी यहां सुविधाओं का टोटा है।
करोड़ों की आस्था वाली सूफी संत हाजी वारिस अली की नगरी देवा शरीफ को करीब पांच वर्ष पूर्व सूफी सर्किट से जोड़ने की घोषणा हुई थी। यह योजना आज तक साकार नहीं हो सकी है। प्रतिदिन हजारों जायरीन की आमद वाले कस्बे को आज तक स्थाई बस स्टॉप भी नसीब नहीं हो सका है। प्रदेश की योगी सरकार ने बजट में कस्बे में बस स्टॉप के निर्माण की घोषणा की थी। यह योजना भी फिलहाल धरातल पर साकार नहीं हो सकी है। जिसके चलते हजारों जायरीन को जाड़ा, गर्मी और बरसात में इधर-उधर भाग कर बस पकड़नी पड़ती है। कस्बे को रेल लाइन से जोड़ने की बहुप्रतीक्षित योजना भी फाइलों के मकड़जाल में उलझी पड़ी है। सांसद पीएल पुनिया के प्रयास के बावजूद आज तक कस्बा रेल लाइन से नहीं जुड़ सका है। कस्बे में रैन बसेरों की कमी जायरीन को काफी खलती है। देवा मेला से करोड़ों की आय करने वाली मेला समिति और उसके रसूखदार मेंबर भी आज तक इस समस्या को लेकर संजीदा नही हैं। जिसके चलते उर्स, नौचंदी और मेले में आने वाले जायरीन खुले आसमान के नीचे रातें गुजारते हैं। पर्यटन स्थल के रूप में देवा को विकसित करने की योजना भी अधूरी पड़ी है। पर्यटन विभाग का कोई भी ऐसा कार्य नहीं है जिसे विभाग की उपलब्धि कहा जा सके। शौचालयों की अपर्याप्त व्यवस्था भी जायरीन को काफी खलती है।
कस्बे में स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की इमरजेंसी सुविधा को समाप्त करना, मुहल्लों में पेयजल की दिक्कतें और कस्बे के सुंदरीकरण जैसी समस्याएं आज भी कस्बे में व्याप्त है। कस्बा निवासी शहजादे आलम वारसी कहते हैं कि सांप्रदायिक सौहार्द प्रतीक इस कस्बे का आज तक अपेक्षित विकास नहीं हो सका है। जिससे कस्बा घोषणाओं के नाम पर खुद को छला महसूस कर रहा है।