सांस्कृतिक मंच से बही सौहार्द की बयार
प्रताप जायसवाल, देवा (बाराबंकी) : 'जो रब है वही राम है' के दर्शन को जीवंत करने वाला देवा म
प्रताप जायसवाल, देवा (बाराबंकी) : 'जो रब है वही राम है' के दर्शन को जीवंत करने वाला देवा मेला एक बार फिर प्रेम और भाईचारे की मिसाल पेश कर गया। मेले का प्रेक्षागृह भी साझी विरासत और सूफी संत के उपदेशों के फलीभूत होने का मूक गवाह बना।
दस दिवसीय देवा मेला सदियों से प्रेम सौहार्द और बंधुत्व का प्रतीक रहा है। यहां से निकलने वाला एकेश्वरवाद का संदेश आज भी लोगों को एकजुट रखे है। मेले के माध्यम से सूफी संत की विचारधारा की सुगंध एक बार फिर मेले के माध्यम से देश दुनिया में फैली। सूफी संत के वालिद सैयद कुर्बान अली शाह की याद में लगने वाले देवा में इस दौरान लघु भारत की छटा दिखी। जायरीन की भारी भीड़ ने हाजी वारिस अली शाह सहित अन्य दरगाहों की जियारत की। इस दौरान मजार परिसर सर्वधर्म समभाव का कुंभ बना रहा। जाति, धर्म और सम्प्रदाय की बेड़ियां यहां नजर नहीं आईं। विभिन्न धर्मों की पूजा पद्धतियां भी यहां एकाकार हुईं। किसी ने सजदा कर अपने वारिस पाक को मनाया तो किसी ने आरती कर अपने आराध्य की बलैयां उतारीं।
मेले का प्रेक्षागृह भी बाबा के सौहार्द के संदेशों के प्रचारित होने का मूक गवाह बना। यहां मानस सम्मेलन में रामायण की चौपाइयों के स्वर गूंजे तो सीरतुन्नवी में कुरआन पाक की तिलावत हुई। भजनों की मधुर स्वर लहरियों के साथ ही सूफी कव्वालियों की मह़िफलें भी सजीं। कवि सम्मेलन और मुशायरा भी गंगा जमुनी तहजीब के साक्षी बने। लोक संस्कृतियों को बढ़ावा देने में भी प्रेक्षागृह की अहम भूमिका रही। लोकनृत्य, अवधी, भोजपुरी, कत्थक, भरत नाट्यम जैसे लोक संस्कृतियों को भी मंच से बढ़ावा मिला। मेले के दौरान कई सितारों ने भी सूफी के संदेशों को आगे बढ़ाते हुए सर्वधर्म समभाव और सौहार्द की शिक्षा दी।