सौहार्द और सद्भाव का इतिहास समेटे है देवा मेला
प्रताप जायसवाल, देवा, बाराबंकी : करीब डेढ़ सदी पहले सूफी संत सैय्यद हाजी वारिस अली शाह
प्रताप जायसवाल, देवा, बाराबंकी :
करीब डेढ़ सदी पहले सूफी संत सैय्यद हाजी वारिस अली शाह द्वारा अपने वालिद सैय्यद कुर्बान अली शाह की याद में शुरू किया गया देवा मेला आज वट वृक्ष बन चुका है। यहां से दिया गया प्रेम और सौहार्द का संदेश पूरे विश्व में अनुकरणीय हैं।
वारिस अली शाह अक्सर सफर पर रहते थे। इससे उनके चाहने वाले काफी समय तक उनका दर्शन नहीं कर पाते थे। अपने वालिद के प्रति अगाध श्रद्धा रखने वाले हाजी वारिस अली शाह का मेले की शुरुआत करने के पीछे एक मकसद यह भी था कि इसी के बहाने उनके चाहने वाले आसानी से उनके दर्शन पा सकते हैं। बताते हैं कि शुरुआती दिनों में हाजी साहब खुद दुकानदारों को बुलवाते थे। 1925 में मेले की देखभाल का जिम्मा डीएम की अध्यक्षता वाली 12 सदस्यीय कमेटी के हाथ में आ गया। देवा मेला को कार्तिक उर्स के नाम से भी जाना जाता है। इस उर्स में प्रतिवर्ष देश-विदेश के लाखों श्रद्धालु आते हैं। करीब पांच किमी क्षेत्रफल में फैला देवा मेला आज प्रदेश के बड़े मेलों में शुमार है।
अंतरराष्ट्रीय कलाकार कर चुके प्रदर्शन : देवा मेले के सांस्कृतिक कार्यक्रम, कवि सम्मलेन और मुशायरा अपनी अलग पहचान रखते हैं। यहां के मंच पर जगजीत ¨सह, गुलाम अली, दलेर मेहंदी, कैलाश खेर, सपना अवस्थी, जावेद अली, अल्ताफ रजा, अनूप जलोटा, चंदन दास, पीनाज मसानी, राजू श्रीवास्तव, मनोज तिवारी, वडाली ब्रदर्स, साबरी ब्रदर्स जैसे काफी नामचीन और उदीयमान कलाकारों के अलावा ¨हदी और उर्दू शायरी के नामवर कवि और शायर आ चुके हैं।
ऑडिटोरियम में गूंजते हैं वेद मंत्र और कुरआन की आयतें : देवा मेला के दौरान आडिटोरियम में सीरतुन्नबी में जहां नात पाक के स्वर गूंजते हैं। वहीं मानस सम्मेलन में चौपाइयां और वेद मंत्र की गूंज सुनाई देती है। कवि सम्मेलन और मुशायरा भी गंगा जमुनी तहजीब को बढ़ावा देते हैं।