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समय के साथ मिट रहा शहर के तालाबों का अस्तित्व

खुद का नाम देकर आबाद करने वाले तालाब आज गुमनामी के अंधेरे में हैं। तमाम तालाब जहां समय के साथ गुम हो गए हैं वहीं बचे अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। प्रशासन और जनसामान्य की संवेदनहीनता के कारण कई तालाबों के दायरे तेज गति से सिमट रहे हैं। समय-समय पर शासन-प्रशासन की ओर से इन्हें जीवित करने के प्रयास सिर्फ खानापूरी तक ही सिमट कर रह गए। बुंदेलखंडवासियों के जीवन में तालाबों

By JagranEdited By: Published: Tue, 16 Apr 2019 11:26 PM (IST)Updated: Fri, 19 Apr 2019 06:11 AM (IST)
समय के साथ मिट रहा शहर के तालाबों का अस्तित्व
समय के साथ मिट रहा शहर के तालाबों का अस्तित्व

जागरण संवाददाता, बांदा : खुद का नाम देकर आबाद करने वाले तालाब आज गुमनामी के अंधेरे में हैं। तमाम तालाब जहां समय के साथ गुम हो गए हैं वहीं बचे अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। प्रशासन और जनसामान्य की संवेदनहीनता के कारण कई तालाबों के दायरे तेज गति से सिमट रहे हैं। समय-समय पर शासन-प्रशासन की ओर से इन्हें जीवित करने के प्रयास सिर्फ खानापूरी तक ही सिमट कर रह गए।

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बुंदेलखंडवासियों के जीवन में तालाबों का अहम रोल रहा है। सिर्फ किसान ही नहीं वरन यहां के हर इंसान के जीवन की मुख्य धारा तालाब से जुड़ी रही है। जिले के हर गांव में एक या उससे अधिक तालाब पाए जाते रहे हैं। लेकिन समय के साथ उनका भूगोल बदल गया है। इन तालाबों के नाम पर शहर के कई मोहल्लों की आज भी पहचान है। पत्राचार के पते में भी तालाबों का जिक्र होता है। गांवों में लोगों की शुरुआत और बच्चों की सीख का तालाब अहम हिस्सा रहे हैं। यही तालाब आज अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं। बानगी के तौर पर यदि शहर की बात करें तो परशुराम तालाब एक गड्ढे में तब्दील हो चुका है। विशालकाय इस तालाब के अधिकांश हिस्से में सैकड़ों मकान बन चुके हैं। जनप्रतिनिधियों ने भी मतदाताओं को लुभाने के चक्कर में मोहल्ले को आबाद कर दिया। इसमें सीसी मार्ग और नालियां बन चुकी हैं। हैंडपंप भी लगाए गए हैं। इन्हें हटाने या तालाब को पुनर्जीवत करने पर कोई विचार नहीं हुआ है। इस तरह के शहर में एक नहीं कई उदाहरण मौजूद हैं।

इनसेट.

शहर के तालाब व उनकी वर्तमान स्थिति :

- परशुराम तालाब - इस तालाब के नाम से मोहल्ला बसा है। तालाब कहां है यह मोहल्ले वाले भी नहीं जानते हैं।

- छाबी तालाब - सन 1960 में छविलाल अग्रवाल ने इस तालाब का निर्माण कराया था। जो कि अतिक्रमण की चपेट में है। करीब 22 एकड़ का तालाब अब 22 बीघा का बचा है।

- प्रागी तालाब - इस तालाब का निर्माण प्रागीदास गहोई ने कराया था। यह तालाब अतिक्रमण की गिरफ्त में है। तालाब का पानी गंदा और जीर्णशीर्ण हो चुका है।

- डिग्गी तालाब - रेलवे स्टेशन के समीप यह तालाब पूरी तरह अतिक्रमण से घिरा है। तालाब के ज्यादातर हिस्से में पक्के मकान खड़े हैं।

इनसेट.

नगरीय क्षेत्रों के सूखे पड़े तालाब

साहब तालाब, हरदौल तलैया, बाबूराम गोरे तालाब, सेढ़ू तलैया, राजा तालाब, नरैनी तहसील का मड़फा तालाब, बबेरू के रामबक्स तालाब, लौगाई तालाब, रावण तालाब, घसिला तालाब, अतर्रा क्षेत्र के दामू तालाब, गंगेही तालाब, तिदवारी क्षेत्र के परजुना तालाब, बड़ा ताला समेत कई हैं।

इनसेट.

क्या कहते हैं जिम्मेदार :

- तालाबों में अतिक्रमण करने वाले प्रशासन की निगाह में रहते हैं। हाल ही में शासन ने तालाबों से अतिक्रमण हटाने के निर्देश दिए हैं। इस पर कार्रवाई की जाएगी।

प्रदीप कुमार सिंह, नगर मजिस्ट्रेट

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- प्रशासन के सहयोग से अतिक्रमण हटाने का अभियान चलाया जाता है। शहर के तालाबों का पुनरुद्धार करने के लिए प्लान तैयार कराया जाएगा। मोहन साहू, नगर पालिका अध्यक्ष


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